देहरादून: उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में विजिलेंस की जांच के बाद अब विश्वविद्यालय के अधिकारियों पर कानूनी शिकंजा कस सकता है. उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय की जांच करीब 10 महीने बाद अपने अंजाम पर पहुंचती भी नजर आ रही है. पिछले साल मई 2022 में विजिलेंस जांच के आदेश दिए गये थे. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली को लेकर लगाए गए तमाम आरोपों के बिनाह पर इसकी जांच के आदेश दिए थे. जांच आदेश होने के करीब 10 महीने बाद अब विजिलेंस ने जांच रिपोर्ट शासन को भेजी है. इस मामले में जांच रिपोर्ट शासन को भेजे जाने की पुष्टि विजिलेंस निदेशक अमित सिन्हा ने की है, जबकि अब विजिलेंस को शासन की जांच के आधार पर अग्रिम कार्रवाई के लिए अनुमति का इंतजार है.
साल 2017 से 2020 के बीच के कार्यों पर जांच:गौर हो कि, आयुर्वेद विश्वविद्यालय की जांच साल 2017 से 2020 के बीच हुए कार्यों की हुई है, इस दौरान अनुदेशकों की नियुक्ति के दौरान हुई गड़बड़ियों समेत सामान की खरीद मामले पर भी वित्तीय अनियमितता सामने आई हैं. माना जा रहा है कि अबतक जो मामले सामने आए हैं उसमें करीब ₹250 करोड़ तक की गड़बड़ी हुई है.
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लंबे समय से विवादों में रहा है विवि:उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय पिछले लंबे समय से तमाम विवादों के चलते चर्चाओं में रहा है. विश्वविद्यालय की विभागीय और शासन स्तर पर भी कई बार जांच हो चुकी है, लेकिन पिछले दिनों मामले में विजिलेंस जांच के आदेश दिए गए थे. विजिलेंस जांच में नियुक्तियों के साथ ही आयुर्वेद विश्वविद्यालय के लिए हुई खरीद और टेंडर पर भी जांच की गई. जानकार बताते हैं कि नियुक्तियों में नियम विरुद्ध प्रक्रिया आगे बढ़ाई गई. साथ ही विश्वविद्यालय के लिए हुई खरीद में भी गड़बड़ी की गई. इस मामले में विजिलेंस ने अपनी जांच पूरी कर ली है और अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी है. अब इस मामले में मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली सतर्कता समिति की मंजूरी का इंतजार है, जिसके बाद विश्वविद्यालय में हुए वित्तीय अनियमिता के इस मामले में मुकदमा दर्ज किया जाएगा.
हरक सिंह रावत के मंत्री काल की जांच:खास बात ये है कि जिस समय की यह जांच हो रही है उस दौरान आयुर्वेद विभाग के मंत्री के तौर पर पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत जिम्मेदारी संभाल रहे थे. हालांकि, उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय एक ऑटोनॉमस बॉडी है और विश्वविद्यालय में कुलपति समेत पूर्व रजिस्ट्रार पर भी तमाम आरोप लगते रहे हैं. जांच के दौरान पाया गया कि तमाम नियुक्तियों से लेकर खरीद तक के मामलों में शासन की अनुमति नहीं ली गई थी. यही नहीं, एक ही पद के लिए कई बार संशोधित विज्ञप्तियों के निकलने की बात भी सामने आई है.
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नियम विरुद्ध नियुक्ति के भी लगे हैं आरोप: इससे पहले कुलपति की नियुक्ति को लेकर भी विवाद होते रहे हैं. कुलपति की नियम विरुद्ध नियुक्ति और कुलपति द्वारा प्रोफेसर पद पर नियम विरुद्ध प्रमोशन व वित्तीय अनियमितता के आरोप लगाए गए थे. कई बार विश्वविद्यालय के कुलपति और शासन के बीच भी तल्खियां बेहद ज्यादा रही है. शायद यही कारण है कि शासन स्तर पर भी इस मामले के लिए कई बार जांच के आदेश दिए जा चुके हैं. लेकिन कभी भी जांच अपने अंतिम अंजाम तक नहीं पहुंच पाई. ऐसे में विजिलेंस जांच के पूरा होने के बाद अब माना जा रहा है कि विश्वविद्यालय ने पुराने सभी मामलों में हुई गड़बड़ियों को लेकर कार्रवाई हो सकेगी.