देहरादून: प्राचीनकाल से ही उत्तराखंड के लोग पराक्रम, शौर्य और देशभक्ति के लिए जाने जाते हैं. प्रथम विश्व युद्ध में दरबान सिंह और गबर सिंह जैसे वीर सैनिकों ने जहां अपनी वीरता पर तत्कालीन सर्वोच्च सैनिक सम्मान विक्टोरिया क्रास प्राप्त कर विश्वभर में नाम कमाया. वहीं द्वितीय रायल गढ़वाल के हवलदार चंद्र सिंह भंडारी ने 1930 में निहत्थे देशभक्त पठानों पर गोली चलाने से इनकार कर साम्राज्यवादी अंग्रेजों की जड़ें हिलाकर रख दी थीं. इसी दिन उन्होंने अंग्रेजों को संदेश दे दिया था कि वे अब अधिक दिनों तक भारत पर अपना शासन नहीं कर सकेंगे.
सांप्रदायिक सौहार्द के मिसाल
पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल थे. पठानों पर हिंदू सैनिकों द्वारा फायर करवाकर अंग्रेज भारत में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच फूट डालकर आजादी के आंदोलन को भटकाना चाहते थे. लेकिन वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने अंग्रेजों की इस चाल को न सिर्फ भांप लिया, बल्कि उस रणनीति को विफल कर वह इतिहास के महान नायक बन गए.
गढ़वाली के जीवन दर्शन पर प्रख्यात लेखक राहुल सांकृत्यायन ने 60 के दशक में लिखी गई पुस्तक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली में इस बात को जोरदार तरीके से उठाया है. इसमें गढ़वाली के हवाले से कहा गया है कि 23 अप्रैल, 1930 को पेशावर में होने वाली पठानों की रैली से पहले अंग्रेजों ने गढ़वाली सैनिकों को इस बात के लिए प्रेरित किया था कि मुस्लिम भारत के हिंदुओं पर अत्याचार कर रहे हैं. इसलिए हिंदुओं को बचाने के लिए उन पर गोली चलानी पड़ेगी, लेकिन अंग्रेजों की चाल को पहले से भांपने के बाद चंद्र सिंह ने चुपके से गढ़वाली सैनिकों से कहा कि हिंदू मुसलमान के झगड़े की बातें पूरी तरह से गलत हैं. यह कांग्रेस द्वारा विदेशी माल को बेचने का विरोध है. कांग्रेसी विदेशी माल बेचने वाली दुकानों के बाहर धरना देंगे. जब कांग्रेस देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ रही है, ऐसे में क्या हमें उन पर गोली चलानी चाहिए. उन पर गोली चलाने से अच्छा होगा कि हम खुद को ही गोली मार लें.
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अगले दिन 23 अप्रैल को पेशावर के किस्साखानी बाजार में कांग्रेस के जुलूस में हजारों पठान प्रदर्शन कर रहे थे. गढ़वाली सैनिकों ने जुलूस को घेर लिया था. अंग्रेज अफसर ने प्रदर्शन के सामने चिल्लाकर कहा कि तुम लोग भाग जाओ वर्ना गोली से मारे जाओगे, लेकिन पठान जनता अपनी जगह से नहीं हिली.