देहरादूनःउत्तराखंड आपदा राहत कार्यों में यूं तो अभी तक हेलीकॉप्टर क्रैश होने के साथ ही कई बार इमरजेंसी लैंडिंग भी करानी पड़ी है लेकिन ऐसे कई मामलों में राहत कार्य में लगे लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ती है. अभी 21 अगस्त को ही राहत कार्य में लगे एक हेलीकॉप्टर के क्रैश होने से तीन लोगों की मौत हो गई थी. वहीं, उस हादसे के दो दिन बाद 23 अगस्त को एक बार फिर वैसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा. पायलट इमरजेंसी लैंडिंग करवाना चाहते थे लेकिन हेली पत्थरों पर आकर क्रैश हुआ. हेलीकॉप्टर में मौजूद पायलट और को-पायलट की जान बाल-बाल बची.
दरअसल, 23 अगस्त को हुआ ताजा मामला उत्तरकाशी नगवाड़ा गांव का है. यहां आपदा राहत कार्यों में लगाये गये हेलीकॉप्टर के संचालन की जिम्मेदारी कैप्टन सुरेंद्र जाना की थी. उन्हीं की सूझबूझ से दोनों लोगों की जान बच सकी. कैप्टन जाना ने 21 अगस्त के हादसे के बाद ईटीवी भारत से खास बातचीत की थी और सरकार से गुजारिश की थी कि घाटियों में लगे ट्रॉली के तार हेलीकॉप्टर से दिखायी नहीं देते हैं. लिहाजा राज्य सरकार, विदेशों की तर्ज पर उत्तराखंड की इन घाटियों में लगे केबलो की मार्किंग कर दें, ताकि इन केबलों की वजह से कोई और हेलीकॉप्टर के साथ हादसा न हो.
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कैप्टन जाना ने सरकारी सिस्टम से पर्वतीय क्षेत्रों में वैलीपार कराने वाली केबल तारों की मार्किंग करने का अनुरोध करते हुए बताया था कि पर्वतीय क्षेत्रों की रैलियों में नदी के एक छोर से दूसरे छोर तक कुछ सामान पहुंचाने या लोगों को नदी पार कराने के लिए जो केबल लगाई जाती है उनकी मार्किंग विदेशों की तर्ज पर बैलून लगाकर करनी चाहिए. ताकि भविष्य में आपदा जैसे हालात पैदा होने के बाद राहत और बचाव कार्यों में हेलीकॉप्टर के पायलटों को इस तरह की परेशानियों से दो-चार ना होना पड़े. साथ ही उनका कहना था कि स्थानीय प्रशासन को इस तरह की केबल वायर की व्यवस्थाओं को ऑपरेशन से पहले ही सुनिश्चित कर लेना चाहिए, क्योंकि लोगों की जान बचाने के जुनून के वक्त चॉपर उड़ाने वाले जांबाज पायलट समय की बाध्यता के कारण जिस दौरान फ्लाई कर रहे होते हैं, उस वक्त आसमान से केबल दिखनी चाहिए, लेकिन कई बार केबल न दिखने की वजह से इस तरह के हादसे हो जाते हैं.