देहरादून: उत्तरांचल उत्थान परिषद ने एक विचार संगोष्ठी (Seminar organized in Dehradun) आयोजित किया. जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, संघ के केंद्रीय अधिकारी अशोक बेरी, सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता नरेंद्र यादव तथा स्वरोजगार विशेषज्ञ उपस्थित कमल नयन बड़ोनी उपस्थित रहे. इस दौरान उत्तरांचल उत्थान परिषद ने कहा स्वरोजगार और पुनर्वास से ही ग्रामीण विकास के द्वार खुलेंगे.
स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर उत्तराखंड का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए उत्तरांचल उत्थान परिषद प्रतिवर्ष राज्य स्थापना दिवस पर जनसंवाद गोष्ठी का आयोजन कर आम नागरिकों को राज्य के विकास की दिशा एवं दशा तय करने में सम्मिलित करती है. यह राज्य विशिष्ट भौगोलिक परिस्थिति के कारण अस्तित्व में आया था. सीमांत गांवों की कठिनाइयों तथा सामान्य मानवीय आवश्यकताओं के अभाव से वहां के नागरिक गांव छोड़कर निकट के कस्बों, जिला केंद्रों व देश के बड़े नगरों-महानगरों में बस रहे हैं. जो किसी भी नवोदित राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं है. यदि आबादी ही नहीं होगी तो सीमाएं संवेदनशील हो जाएंगी, उत्तरांचल उत्थान परिषद उत्तराखंड के पलायन को राष्ट्रीय आपदा के रूप में देखती है.
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राज्य गठन के बाद सरकारी स्तर पर विकास के ढांचे का कमोवेश विस्तार गांव-गांव तक तो अवश्य हुआ है, किंतु जिस समाज के लिए विकास की बुनियादी सुविधाएं गांव तक ले जाई जा रही है. वह समाज वहां से चिंताजनक तरीके से पलायन कर चुका है. इसका मूल कारण यह भी लगता है कि समाज ने भी अपने उत्तरदायित्व के प्रति उदासीनता अपना ली. उत्तरांचल उत्थान परिषद इस राज्य के विकास को क्रमशः तीन चरणों में देखती है.
सर्वप्रथम स्वरोजगार के लिए अनुकूलता एवं सरलता के आधार पर युवाओं को आकर्षित करना होगा, जब स्वरोजगार की दिशा में युवा शक्ति आगे बढ़ेगी, तभी पुनर्वास के लिए अनुकूलता का सृजन होता दिखाई देगा. जब इन दोनों आयामों के साथ हम आगे बढ़े तो समग्र ग्राम विकास का लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे.
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युवाओं को आकर्षित करने के लिए उत्तरांचल उत्थान परिषद ने प्रवासी पंचायतों की श्रृंखला देश के विभिन्न भागों में आरंभ की है. इस वर्ष यह कार्यक्रम 13 नवंबर को भोपाल मध्य प्रदेश में होना निर्धारित है. प्रवासी समाज के सहयोग के बिना भी हम उत्तराखंड में ग्राम विकास का पूर्ण लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सकते इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए उनकी सहभागिता प्राप्त करने के लिए परिषद उनके पास जा रही है. प्रवासी पंचायतों के माध्यम से उनसे मेरा गांव मेरा तीर्थ अभियान में सहभागी होने का आग्रह किया जाता है.