देहरादून:जिस राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर ना तो उत्तम चिकित्सीय उपकरण हो और न ही चिकित्सक और नही स्वास्थ्य संबंधी स्टाफ. ऐसे राज्य में यदि अमेरिका और स्पेन जैसे देशों को हिला देने वाला वायरस पहुंच जाए, तो हालातों को समझा जा सकता है. यूं तो साल 2019 में ही कोरोना वायरस ने चीन में अपनी दस्तक दे दी थी, लेकिन इसके बाद दूसरे देशों में भी इसके फैलाव ने वायरस के खतरे को भारत तक को हिला दिया. पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में 15 मार्च को पहला मामला आया. स्टडी टूर पर गए प्रशिक्षु आईएफएस अधिकारियों में से एक अधिकारी कोरोना संक्रमित पाया गया. बस इसी पहले मामले से शुरू हुए इस वायरस ने आज 86000 से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है. उत्तराखंड में ये कोरोना वायरस की शुरुआत थी, ये पहला फेज था, जब चिकित्सकों ने कोरोना की आधी अधूरी जानकारी के साथ इससे बचाव और मरीजों के इलाज की जिम्मेदारी संभाली थी. इसके बाद तीन से चार ऐसे चरण आए, जब स्वास्थ्य विभाग की दिक्कतें बढ़ती हुई दिखाई दी.
आपसी तालमेल से कोरोना की जंग जीत रहा उत्तराखंड. संक्रमण के मामलों की शुरुआत के बाद इन को नियंत्रित करने की कोशिश की गई. लेकिन इसके बाद जमातियों का बड़ी संख्या में पॉजिटिव आना स्वास्थ्य विभाग की नई चुनौती बन गया. इन स्थितियों से स्वास्थ्य विभाग ने कुछ राहत ली, तो इसके बाद घर वापसी करने वालों में कोरोना के मामले आने से फिर एक बार स्वास्थ्य विभाग की परेशानी बढ़ गई. इस बार परेशानी ज्यादा थी, क्योंकि अब अस्पतालों में बेड कम पड़ने लगे थे. इस दौरान सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया और निजी चिकित्सालयों को भी कोविड-19 का इलाज करने की परमिशन दे दी. इसके बाद हालात सुधरते हुए नजर आए. राज्य की जेलों में बंद बड़ी संख्या में कैदियों का कोरोना पॉजिटिव आना परेशानी बनने लगा.
हालांकि कोरोना संक्रमण को लेकर अब तक काफी कुछ अनुभव लेने के चलते इसे आसानी से नियंत्रित कर लिया गया, लेकिन अगली चिंता और परेशानी त्योहारों को लेकर थी, जब अनलॉक के आदेश हुए और त्योहारों में लोगों के बीच कम होते डर और कोविड-19 के नियमों का पालन नहीं होने से फिर मामले बढ़े. इसको लेकर अब भी लगातार जिला प्रशासन के स्तर पर अभियान चलाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है और हालात को नियंत्रित रखने की कोशिश की जा रही है.
उत्तराखंड में कोरोना की दस्तक के दौरान राज्य के पास न तो आरटी पीसीआर और एंटीजन टेस्ट की सुविधा थी और न ही इसकी जांच को लेकर कोई लैब. ऐसे में शुरुआती दौर में कोरोना वायरस की जांच के लिए सैंपल चेन्नई तक भेजे गए. इस दौरान अस्पतालों में डॉक्टर्स की कमी थी. साथ ही नर्सेज, पैरामेडिकल स्टाफ और स्वास्थ्य कर्मियों का भी विभाग में अकाल था, देश भर में 22 मार्च को लॉकडाउन घोषित करने के बाद लोगों को घरों से बाहर निकलने पर पाबंदी तो लगा दी गई, लेकिन कोविड-19 से लड़ने के लिए राज्य के पास अब भी पर्याप्त वेंटिलेटर, ऑक्सीजन सिलेंडर, पीपीई किट, मास्क और सैनिटाइजर समेत दस्ताने भी मौजूद नहीं थे. इसी दौरान निर्णय लिया गया कि स्वास्थ्य महानिदेशक समेत कोविड-19 के रूप में अधिकृत 5 अस्पतालों में प्रिंसिपल्स को खरीदारी का अधिकार दिया जाएगा. इस दौरान पूरे प्रदेश में 100 वेंटिलेटर भी नहीं थे. इसके बाद ताबड़-तोड़ फैसले लिए गए और आज हालात ये है कि राज्य के 38 अस्पताल कोविड-19 का इलाज कर रहे हैं. 422 कोविड केयर सेंटर भी मौजूद है. इस वक्त कोविड-19 मरीजों के लिए 30,000 से ज्यादा बेड की उपलब्धता है. राज्य में कोरोना के मामले बढ़ने के बाद न केवल स्कूल बल्कि निजी होटल और सरकारी भवनों तक को क्वारंटाइन सेंटर के रूप में स्थापित किया गया, उधर कई क्षेत्रों को कंटेनमेंट जोन भी बनाया गया.
कोरोना के दर्ज अब तक मामले ये भी पढ़ें :शिवालिक एलीफेंट रिजर्व को खत्म करेगी त्रिवेंद्र सरकार, जल्द जारी हो सकता है शासनादेश कोविड-19 के शुरुआती दौर में एक बड़ी परेशानी मरीजों को दी जाने वाली दवाई को लेकर भी थी क्योंकि दुनिया के लिए ये वायरस नया था. ऐसे में कौन सी दवाई मरीजों को दी जाए, यह बड़ा सवाल था. हालांकि आईसीएमआर की तरफ से गाइडलाइन जारी की गई. लेकिन इससे हटकर राज्य को आसानी से और इफेक्टिव दवाइयों को लेकर खुद से भी अध्ययन करना था. इसलिए प्रदेश के चिकित्सकों ने दुनिया भर के देशों में इस्तेमाल की जा रही दवाइयों और दूसरे राज्यों में मरीजों को फायदा दे रही औषधियों का अध्ययन किया. इन दवाइयों के चयन के बाद सरकार के सामने डिमांड रखकर इन्हें बनाने का काम किया गया. राज्य के चिन्हित केवल 5 कोविड-19 के लिए अधिकृत अस्पतालों पर तब दबाव कम हुआ, जब सरकार ने निजी अस्पतालों को भी इसके इलाज की परमिशन दे दी.
राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल दून मेडिकल कॉलेज में कोरोना संक्रमण को लेकर मरीजों का शुरुआती दौर से इलाज कर रहे एचओडी मेडिसिन नारायण जीत सिंह बताते हैं कि एक समय था जब आईसीयू बेड मेडिकल कॉलेज के पास महज 5 थे. आज इनकी संख्या 100 हो चुकी है. इसी तरह ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी वाले मेडिकल कॉलेज में आज 2 ऑक्सीजन प्लांट लगाए जा चुके हैं. मौजूदा समय में उत्तराखंड में चिकित्सकों और नर्सों की कमी को भी दूर करने के प्रयास लगातार जारी हैं. खास बात ये है कि अब तक 400 से ज्यादा चिकित्सकों की भर्ती भी की जा चुकी है. उधर 728 चिकित्सक और 1238 स्टाफ नर्सों की भर्ती भी प्रक्रिया में चल रही है.
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उत्तराखंड में कोरोना वायरस को लेकर एलोपैथी के साथ होम्योपैथी और आयुर्वेद विभाग ने भी बचाव के लिए अपने पूरे प्रयास किए गए हैं. इस कड़ी में होम्योपैथिक विभाग की तरफ से आर्सेनिक एल्बम 30 दवा का मुफ्त वितरित हुआ तो आयुर्वेदिक विभाग ने आयुष क्वाथ नाम की दवा को मुफ्त वितरित करते हुए लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का प्रयास किया. खास बात ये है कि इस दौरान लोगों ने भी आयुर्वेद और एलोपैथी पर विश्वास किया और बाजारों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेद और होम्योपैथी से जुड़ी दवाओं की खूब खरीदारी की गई. उत्तराखंड में 15 मार्च को पहला मामला आने के 284 दिन बाद 88376 लोग कोरोना की चपेट में आ चुके हैं. इतने ही समय में 1458 से ज्यादा लोगों ने अपनी जिंदगी भी खोई है, हालांकि 80 हजार से ज्यादा लोग इस वायरस से लड़कर जीत हासिल कर चुके हैं.