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आर्थिक संकट से जूझ रहा उत्तराखंड परिवहन निगम, कर्मचारियों की हो सकती छंटनी

रोडवेज ने पिछले माह जून से कुछ रूट पर बसों को चलाना शुरू किया था, लेकिन सवारियां न मिलने के कारण यह फैसला भी घाटे का सौदा साबित हुआ. रोडवेज को किराया बढ़ाने का फायदा भी नहीं मिला.

देहरादून
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Published : Jul 25, 2020, 3:23 PM IST

देहरादून: देश ऐसा कोई सेक्टर नहीं है, जिस पर कोरोना का असर न पड़ा है. यही कारण है कि कई सेक्टर आर्थिक तंगी से गुजर रहे है, जिसमें से एक है उत्तराखंड परिवहन निगम भी है. ऐसे में कोरोना संक्रमण के चलते उत्तराखंड परिवहन निगम पर भी संकट बादल छाए हैं. जिस कारण अब परिवहन निगम संविदा पर कार्यरत ड्राइवर-कंडक्टर और दैनिक तकनीकी कर्मियों की छंटनी करने की तैयारी कर रहा है.

इसके साथ ही उत्तराखंड रोडवेज 500 बसें भी सरेंडर करने की तैयारी में है. जिस पर आगामी सोमवार तक फैसला होने की उम्मीद है. साथ ही ये भी बात कहा जा है कि परिवहन निगम की वित्तीय स्थिति सुधारने के बाद इन्हें दोबारा बुलाया जाएगा. निगम में संविदा, विशेष श्रेणी और दैनिक तकनीकी कर्मचारी मिलाकर कुल 3800 लोग है. इनमें से 1300 संविदा ड्राइवर-कंडक्टर और दैनिक तकनीकी कर्मचारी हैं, जबकि 2500 के करीब विशेष श्रेणी के ड्राइवर और कंडक्टर है. जिनका मामला कोर्ट में चल रहा है.

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ऐसे में अब आर्थिक संकट से जूझ रहा परिवहन निगम कुछ संविदा ड्राइवर-कंडक्टर और दैनिक वेतन भोगी तकनीकी कर्मचारियों को हटाने की तैयारी में है. इसके साथ ही आर्थिक संकट से जूझ रहा उत्तराखंड रोडवेज अपने बेड़े की 50 फीसदी बसों को सरेंडर करने पर विचार कर रहा है. हालांकि, इससे पहले रोडवेज करीब 300 अनुबंधित बस मालिकों को बस सरेंडर करने की अनुमति पहले ही देख चुका है, जो बसें एक अगस्त से नहीं चलेंगी. बसें सरेंडर करने के बाद चालक को निगम को मोटर व्हीकल टैक्स नहीं देना पड़ेगा. मौजूदा समय में 75 लाख रुपए रोड टैक्स देने के बाद रोडवेज डीजल का खर्च भी नहीं निकल पा रही है. ऐसे में अब उत्तराखंड रोडवेज 500 बसें सरेंडर करने जा रही है, ताकि मोटर व्हीकल टैक्स बचा जा सके.

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