देहरादून:उत्तराखंड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग पेपर लीक (UKSSSC Paper Leak Case) मामले में ताबड़तोड़ सफलता हासिल करने वाली उत्तराखंड STF को तीन अन्य भर्ती घोटालों की जांच भी सौंपी गई है. इनमें सचिवालय रक्षक और कनिष्ठ सहायक (ज्यूडिशरी) के अलावा 2020 फॉरेस्ट गार्ड भर्ती घोटाला शामिल है.
हालांकि, 2020 फॉरेस्ट गार्ड भर्ती घोटाले (2020 forest guard recruitment scam) की फिर से परीक्षण जांच STF के लिए किसी टेड़ी खीर ने कम नहीं होगी, क्योंकि इस केस में पहले ही हरिद्वार और पौड़ी पुलिस 50 आरोपियों को गिरफ्तार कर चुकी है, जिसके बाद ये मामला हाई कोर्ट में पहुंचा था लेकिन दोनों पक्षों की ओर से (नकल करने और करवाने वाले) कोर्ट के बाहर ही समझौता कर लिया गया था, जिसके बाद हाईकोर्ट से ये केस निस्तारित कर दिया गया.
हालांकि, उत्तराखंड पुलिस (Uttarakhand Police) इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी पहुंची थी लेकिन वहां से भी जांच को गति नहीं मिल सकी और पूरा केस कंपाउंड कर निस्तारित हो चुका है. ऐसे में अब एक बार फिर से फॉरेस्ट गार्ड भर्ती मामले की री-इन्वेस्टीगेशन करना एसटीएफ के लिए बेहद कठिन चुनौतीपूर्ण है. इस भर्ती में नियुक्ति भी हो चुकी हैं और भर्ती गड़बड़ी से जुड़े तमाम सबूत भी मिटाए जाने की भी खबर है.
2020 फॉरेस्ट गार्ड भर्ती घोटाले की फिर से जांच क्यों? UKSSSC पेपर लीक केस में उत्तराखंड STF लगातार कड़ियों से कड़ियां जोड़ते हुए जांच में काफी आगे बढ़ गई है. अब तक उत्तरकाशी जखोल के जिला पंचायत सदस्य हाकम सिंह सहित 20 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है. वहीं, हाकम सिंह की गिरफ्तारी (Hakam Singh arrest) के बाद 2020 फॉरेस्ट गार्ड भर्ती घोटाला फिर जांच के दायरे में आ गया है. दरअसल, हाकम सिंह से पूछताछ में फॉरेस्ट गार्ड भर्ती घोटाले से जुड़ी कुछ कड़ियां STF के हाथ लगी हैं. ऐसे में फॉरेस्ट गार्ड भर्ती घोटाला फिर से जांच के दायरे में आ गया है. सूत्रों के मुताबिक, फॉरेस्ट गार्ड भर्ती घोटाले में भी कहीं न कहीं हाकम सिंह का हाथ सामने आ रहा है.
फॉरेस्ट गार्ड भर्ती गड़बड़ी को डिकोड करने की कोशिश: उधर STF इस बात को मान रही है कि किसी भी परीक्षा के कुछ समय बाद उससे जुड़े सबूत एवं इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस को एक अथक मेहनत से जुटाया जा सकता हैं. लेकिन जिस परीक्षा के दो साल बाद उनमें गड़बड़ी करने के अन्य सबूत मिटाने के प्रयास भी नजर आ चुके हैं. ऐसे में इस केस को पुनः परीक्षण कर गड़बड़ी के सबूतों को जुटाना बेहद मुश्किल रहने वाला है. इसके बावजूद ये मामला राज्य के बेरोजगार छात्रों के भविष्य से जुड़े होने के चलते बेहद संवेदनशील है.