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Monday Special: उत्तराखंड में कराटे के नाम पर सरकारी खजाने को लगाया 'चूना', RTI में बड़ा खुलासा - monday special story

उत्तराखंड खेल विभाग पर कराटे से जुड़े लोगों ने गंभीर आरोप लगाए हैं. विभाग पर कराटे के नाम पर हर साल दिए जाने वाले ग्रांट की बंदरबांट का आरोप लगाया गया है. विभाग द्वारा सूचना का अधिकार में दिए गए दस्तावेज भी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं.

उत्तराखंड खेल विभाग
उत्तराखंड खेल विभाग

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Published : Nov 28, 2022, 10:08 AM IST

Updated : Nov 30, 2022, 4:29 PM IST

देहरादून: कराटे कोच अश्विनी कुमार ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि उनके द्वारा उत्तराखंड खेल विभाग में कराटे के नाम पर हर साल की जा रही लाखों के ग्रांट की अनियमितता को लेकर सूचना के अधिकार में जानकारी मांगी गई. जानकारी में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. सूचना के अधिकार में सामने आई जानकारी के अनुसार उत्तराखंड खेल विभाग कुछ खास लोगों से जुड़ी संस्थाओं को हर साल लाखों की ग्रांट यानी कराटे के लिए धनराशि जारी कर रहा है. आरोप है कि ये संस्थाएं ना तो केंद्रीय खेल मंत्रालय और ना ही इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन से एफिलिएटेड हैं.

कराटे के नाम पर बड़ा गड़बड़झाला!: कराटे के जानकारों का आरोप है कि उत्तराखंड खेल विभाग से ग्रांट लेने वाली तीन कराटे एसोसिएशन और एक किक बॉक्सिंग एसोसिएशन में एक ही व्यक्ति महासचिव की भूमिका में है. यही नहीं इस व्यक्ति द्वारा एक और विधा किक बॉक्सिंग की संस्था भी संचालित की जा रही है. सूचना के अधिकार में प्राप्त हुए दस्तावेजों में इस व्यक्ति का नाम संजीव कुमार जागड़ा बताया गया है.

उत्तराखंड में कराटे के नाम पर सरकारी खजाने को लगाया 'चूना'

एक ही व्यक्ति द्वारा संचालित 3 कराटे एसोसिएशन
1 - उत्तरांचल स्पोर्ट्स कराटे एसोसिएशन
2- उत्तराखंड कराटे डू फेडरेशन
3- उत्तराखंड कराटे एसोसिएशन
कराटे के अलावा दूसरी विधा में भी एसोसिएशन
1- उत्तराखंड किक बॉक्सिंग एसोसिएशन

एक व्यक्ति और तीन एसोसिएशन !

नेशनल स्पोर्ट्स कोड की परवान नहीं: आपको बता दें की 'नेशनल स्पोर्ट्स कोड 2011' के अनुसार किसी एक व्यक्ति द्वारा खेल से जुड़ी 1 से ज्यादा संस्थाओं में कोई पद नहीं होना चाहिए. इन संस्थानों में भी अध्यक्ष केवल 3 बार और महासचिव केवल 2 बार रिपीट किए जा सकते हैं. एक और महत्वपूर्ण नियम यह भी है कि एक विधा से जुड़ा व्यक्ति दूसरी विधा के खेल की एसोसिएशन नहीं बना सकता है. ऐसा करना पूरी तरह स्पोर्ट्स कोड का उल्लंघन है. खेलों में लगातार हो रही धांधली और घोटालों के चलते 2011 में केंद्रीय खेल मंत्रालय ने नई खेल नीति के तहत ये 'नेशनल स्पोर्ट कोड-2011' को लागू किया था. लेकिन उत्तराखंड खेल विभाग केंद्रीय मंत्रालय के इन नियमों का कितना पालन कर रहा है, इसकी बानगी सूचना के अधिकार में मांगी गई वो सूचनाएं दे रही हैं, जिसमे खेल विभाग ने लगातार इन एसोसिएशन पर पैसा लुटाया है.
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सूचना का अधिकार में हुआ बड़ा खुलासा:उत्तराखंड में कराटे खेलों से जुड़ी अन्य संस्थाओं और जानकारों ने जब उत्तराखंड खेल विभाग की इस खुली बंदरबांट को देखा तो उनके द्वारा आवाज उठाई गई. सूचना का अधिकारी के तहत तमाम जानकारी ली गई. जिसमें खुलासा हुआ है कि लगातार कुछ खास लोगों वाली इन खास एसोसिएशन को हर साल लाखों का बजट दिया जाता है. लेकिन विभाग कई सालों का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट नहीं दिखा पाया. विभाग द्वारा केवल वर्ष 2021 में जारी किए गए 2 लाख के ग्रांट का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट दिखाया जा रहा है, जिसमें भी बढ़ी खामियां हैं.

एक व्यक्ति और तीन एसोसिएशन !

कोविड के दौरान दिखा दिया ऑल इंडिया टूर्नामेंट!: कोविड महामारी के चलते लॉकडाउन में जब बारी खेल की गतिविधियों पर प्रतिबंध था, उस समय भी ऑल इंडिया टूर्नामेंट दिखाया गया है. कराटे खेल से जुड़े लोगों का आरोप है कि इस पूरे खेल में संजीव कुमार जागड़ा का सबसे बड़ा हाथ है, जो कि ऊंची पहुंच रखने वाला है. अश्वनी कुमार का आरोप है कि अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर जागड़ा पिछले कई सालों से उत्तराखंड में कराटे खेल के हुनर और कौशल पर डाका मार कर विभागीय लोगों के साथ मिल कर इस पैसे की बंदरबांट कर रहा है.

खेल निदेशक मामले से अंजान!: वहीं इस पूरे मामले पर पर जब हमने खेल विभाग के निदेशक जितेंद्र सोनकर से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि यह मामला उनके संज्ञान में नहीं है. हालांकि यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट में गड़बड़ी को लेकर खेल निदेशक जितेंद्र सोनकर ने जरूर कहा कि यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट की बिल्कुल सही तरीके से जांच की जाएगी. इस मामले में अगर कोई गड़बड़ी हुई है, तो उस पर सख्त कार्रवाई की जायेगी.

RTI से मिली जानकारी

संजीव जागड़ा ने दी ये सफाई: वहीं इस पूरे मामले में सबसे ज्यादा आरोपों से घिरे संजीव कुमार जांगड़ा से भी हमने उनका पक्ष जाना. जांगड़ का कहना है कि वह अलग-अलग संस्थाओं में अलग-अलग समय में पदाधिकारी रहे हैं. फिलहाल वह अभी केवल राष्ट्रीय स्तर की कराटे इंडिया ऑर्गनाइजेशन और राज्य स्तरीय उत्तराखंड कराटे एसोसिएशन में जनरल सेकेट्री हैं. इसके अलावा वह पहले दूसरी संस्थाओं में रहे हैं. वहीं इसके अलावा 'नेशनल स्पोर्ट्स कोड 2011' के उल्लंघन और खेल विभाग से मिलने वाली ग्रांट पर उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में यह लागू नहीं होता है. उत्तराखंड खेल विभाग 'नेशनल स्पोर्ट्स कोड 2011' को नहीं मानता है और कभी भी किसी को ग्रांट दे देता है इसके कोई मानक नहीं हैं.
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जांच होगी तो खुलेंगे कई राज: कुल मिलाकर देखा जाए तो दस्तावेजों में गड़बड़ी साफ देखी जा सकती है. जानकारों का मानना है कि इस मामले में सख्त जांच हो तो पूरे खेल का पर्दाफाश हो पाएगा. सूत्रों की मानें तो आगे अभी इस मामले में कई खुलासे होने बाकी हैं, जिसमें खिलाड़ी से ज्यादा कोच को भुगतान, खेल विभाग के अधिकारी का एसोसिएशन में पदाधिकारी होना और एक ही खेल में विजेताओं को अलग अलग प्राइज मनी को लेकर भी मामले सामने आने बाकी हैं. लगातार इस मामले पर हमारी भी हड़ताल जारी है.

RTI से मिली सूचना

क्या है 'नेशनल स्पोर्ट्स कोड 2011': राष्ट्रीय खेल संहिता का एकमात्र उद्देश्य राष्ट्रीय खेल संघों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही की संस्कृति विकसित करना है. पूर्व में यह भारत के राष्ट्रीय खेल विकास कोड के रूप में जाना जाता था. इसकी नीतियां राष्ट्रीय खेल निकायों की स्वायत्तता का खंडन या हस्तक्षेप नहीं करती हैं.

खेल संहिता का कर्तव्य NSF को खेलों को विनियमित करने और खेल में नस्लवाद को रोकने, डोपिंग को खत्म करने, उम्र की धोखाधड़ी को रोकने, एथलीटों के अधिकारों की रक्षा करने, बाल शोषण और खेल में यौन उत्पीड़न को रोकने, लिंग भेद की रक्षा करने जैसी बुराइयों को दूर करने के अपने कर्तव्यों का पालन करना है. समानता, खेलों में सट्टेबाजी और जुए को रोकना भी इसका मकसद है.

अश्विनी कुमार की आरटीआई में ये खुलासा हुआ

पदाधिकारियों के कार्यकाल की सीमा को बहाल करना:राष्ट्रीय खेल संहिता के माध्यम से सरकार द्वारा की गई प्रमुख पहलों में से एक एनएसएफ में पदाधिकारियों के कार्यकाल को सीमित करना है. नियम के मुताबिक कोई भी पदाधिकारी 12 साल से ज्यादा किसी पद पर नहीं रह सकता है. प्रफुल्ल पटेल ने अपने कार्यकाल को पार कर लिया था और नए सिरे से चुनाव कराने से इनकार कर दिया था, जिसके कारण अंततः उनका निष्कासन हुआ था.

नेशनल स्पोर्ट्स कोड 2011

राष्ट्रीय खेल संघों की वार्षिक मान्यता: वे संगठन जो राष्ट्रीय खेल संहिता का पालन करते हैं और जिनके संविधान दिशा निर्देशों का पालन करते हैं, भारत सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न सुविधाओं/रियायतों का आनंद लेते हैं. ऐसा करने में विफलता राष्ट्रीय टीमों का चयन करने और किसी भी अंतरराष्ट्रीय आयोजन में भारत का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार खो देती है. यदि एनएसएफ संहिता के अनुरूप नहीं आते हैं, तो उन्हें अपने नाम में 'भारत' शब्द का उपयोग करने की अनुमति नहीं है. उदाहरण के लिए - अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ. यदि यह खेल संहिता के मानदंडों का उल्लंघन करता है तो यह देश में संबंधित खेल को विनियमित और नियंत्रित करने का अधिकार खो देगा.

एजेंसियों के लिए भूमिकाएं और जिम्मेदारियां निर्धारित करना: राष्ट्रीय खेल संहिता युवा मामलों और खेल मंत्रालय (MYAS), राष्ट्रीय खेल संघों (NSF) और भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) जैसी एजेंसियों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को भी पूरा करती है. MYAS अन्य कर्तव्यों के बीच NSF की मान्यता के लिए पात्रता शर्तों को निर्धारित करता है.

खेल निदेशक ने जो कहा

परिभाषा के अनुसार, NSFs समग्र प्रबंधन, दिशा, नियंत्रण, विनियमन, पदोन्नति, विकास और अनुशासन के प्रायोजन के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार और जवाबदेह हैं. जिसके लिए उन्हें संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संघ द्वारा मान्यता प्राप्त है. अंत में, SAI बुनियादी ढांचे और अधिक के प्रावधान सहित खिलाड़ियों की पहचान, प्रशिक्षण और कोचिंग के लिए NSF को आवश्यक सहायता प्रदान करता है. भारत में खेलों की बेहतरी के लिए एमवाईएएस, एनएसएफ और साई को खेल संहिता में दिए गए कई और कर्तव्यों का पालन करना चाहिए.

एनएसएफ की वार्षिक मान्यता: इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि एनएसएफ के आंतरिक कामकाज के संबंध में बुनियादी मानक, मानदंड और प्रक्रियाएं हों. उन्हें संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संघों द्वारा निर्धारित कानूनों के अनुरूप होना चाहिए. हर साल, एनएसएफ को मान्यता प्रदान करने के लिए विस्तृत दस्तावेज जमा करने होंगे. ऐसा करने में विफल होने पर मान्यता और इसके साथ आने वाले लाभों/अधिकारों की हानि होगी.

आरोपी संजीव जागड़ा का पक्ष.
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दीर्घावधि विकास योजनाएं (एलटीडीपी): स्पोर्ट्स कोड स्पष्ट करता है कि सरकार से सहायता प्राप्त करने के लिए, एनएसएफ को एलटीडीपी (Long Term Development Plan) जमा करना होगा. स्पोर्ट्स कोड में एलटीडीपी जमा करने के दिशा-निर्देशों को स्पष्ट किया गया है. जिसमें उन्हें खिलाड़ियों के विकास, कोचिंग, कार्यवाहक, भागीदारी, प्रसारण, क्लबों के विकास, घरेलू टूर्नामेंट, शेड्यूल, अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भागीदारी, मेजबानी जैसे क्षेत्रों में विस्तृत योजना शामिल करनी चाहिए. प्रमुख कार्यक्रम, प्रबंधन का व्यावसायीकरण, वित्तीय प्रबंधन, विपणन, पदोन्नति, खेल विज्ञान, सुविधाएं, उपकरण और विशेष परियोजनाएं शामिल हैं.

Last Updated : Nov 30, 2022, 4:29 PM IST

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