देहरादूनः अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अपनी जान बचाकर उत्तराखंड लौटे लोगों को अब रोजगार की चिंता सताने लगी है. इससे पहले उनके पास खाड़ी देशों में सिक्योरिटी से लेकर अन्य तरह की काम धंधे के रास्ते खुले हुए थे. लेकिन अफगानिस्तान के ताजा हालात को देखते हुए उनके रोजगार के विकल्प लगभग खत्म हो गए हैं. इतना ही नहीं खाड़ी देशों में नौकरी तलाशने वाले लोग काफी खौफजदा हैं. उनके अंदर इस कदर खौफ है कि उन देशों का नाम लेकर भी वो सिहर जाते हैं.
विदेशों में नौकरी कर अपने परिवार की माली हालत सुधारने का सपना देखने वाले लोगों का कहना है कि इससे पहले उनके पास अफगानिस्तान, इराक, कुवैत, ईरान, ओमान, कतर जैसे देशों में सिक्योरिटी से लेकर अन्य तरह के जॉब करने के विकल्प थे. लेकिन तालिबानियों की दहशत से खाड़ी देशों में काम करने के लिए सोचना पड़ रहा है. इन्हीं लोगों में अजय छेत्री भी शामिल हैं, जो अफगानिस्तान में नौकरी करते थे, जिन्हें जान बचाकर भारत लौटना पड़ा है.
अफगानिस्तान से उत्तराखंड लौटे लोगों को रोजगार की चिंता. ये भी पढ़ेंःअफगानिस्तान से लौटे भारतीय की आपबीती, 'तालिबान को 60 हजार डॉलर देकर बचाई जान'
गौर हो कि देहरादून (प्रेमनगर) निवासी अजय छेत्री बीते 12 सालों से अफगानिस्तान में नाटो और अमेरिकी सेना के साथ नौकरी कर रहे थे. अफगानिस्तान में अचानक बदले हालात के कारण उन्हें जान बचाकर अपने घर लौटना पड़ा है. वो बीते 18 अगस्त को किसी तरह काबुल से जान बचाकर उत्तराखंड लौटे थे. अजय छेत्री ने ईटीवी भारत से विदेशों में नौकरी करने वाले लोगों की चुनौतियों को साझा किया है.
उनका कहना है कि एक विकल्प भूतपूर्व सैनिकों के लिए अफगानिस्तान और खाड़ी देशों में नौकरी करने का बचा था. अब वह भी लगभग खत्म नजर आ रहा है. भले ही वो अपने परिवार से दूर, रेड जोन इलाके में नौकरी कर रहे थे, लेकिन वहां अच्छी खासी मिलने वाली पेमेंट से अधिकांश लोगों के परिवार की माली हालत साल दर साल सुधर रही थी, लेकिन यह विकल्प भी बंद हो गया है.
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उनका कहना है कि कम पढ़े लिखे, बेरोजगारों और भूतपूर्व सैनिकों के लिए यूरोपियन देशों के रास्ते भी बहुत मुश्किल भरे हैं. क्योंकि, वहां अधिकांश वैकेंसी पढ़े-लिखे और तकनीकी रूप से सक्षम लोगों के लिए ही अधिक होते हैं. ऐसे में कम शिक्षित लोगों को सिक्योरिटी जैसी छोटी-मोटी नौकरी करनी पड़ती है. वो भी अब पैदा हुए हालात ने छुड़ा दिया है.
अजय छेत्री के मुताबिक, विदेशी कंपनियों के साथ अच्छी खासी नौकरी चल रही थी. साल या 6 महीने में छुट्टी में आते थे. डॉलर में मिलने वाली पेमेंट से घर परिवार का गुजारा हो रहा था. अजय छेत्री कहते हैं कि भले ही अच्छी नौकरी छूट गई, लेकिन गनीमत है कि वो सुरक्षित लौटे आए हैं. जो जीवन की सबसे बड़ा उपलब्धि है. आगे क्या करना है? इसके बारे में वो कुछ सोच नहीं पा रहे हैं.
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खाड़ी देशों में भूतपूर्व सैनिकों के रोजगार के रास्ते हुए मुश्किलः साल 2010 से अफगानिस्तान जैसे देश में शांति बहाली के रूप में नाटो सेना के साथ काम करने वाले अजय छेत्री बताते हैं कि वहां नौकरी छूटने से हजारों बेरोजगार और भूतपूर्व भारतीय सैनिकों का नुकसान हुआ है. क्योंकि, उनके पास खाड़ी देशों में ही सिक्योरिटी गार्ड जैसी नौकरी में जाने का एडवांटेज था. जो अब लगभग बंद हो गया है.
नए विकल्प की जद्दोजहद में संजयःअफगानिस्तान जैसे देश में 7 साल की नौकरी कर साल 2019 में अपने घर पर लौटे संजय की मानें तो अपने देश में अत्यधिक जनसंख्या होने के कारण हर किसी को नौकरी मिलना संभव नहीं है. ऐसे में अफगानिस्तान, इराक जैसे देशों के रास्ते रोजी-रोटी जुटाने के लिए खुले थे, लेकिन अब वो भी खत्म है.
उन्होंने बताया कि अफगानिस्तान जैसे देश में जान-जोखिम में डालकर जो रकम 7 साल में जुटाई थी, वो बच्चों की पढ़ाई, शादी ब्याह में काफी काम आए, लेकिन अब फिर से बेरोजगार हो गए हैं. ऐसे में अब यूरोपियन देशों में काम धंधे की तलाश का रास्ता खोजा जा रहा है, लेकिन वह बेहद ही मुश्किल भरा है.
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खाड़ी देशों में जाना तो दूर सोचना भी अब पसंद नहीं:अफगानिस्तान से 9 साल की जटिल नौकरी कर देहरादून लौट चुके कृष्ण बहादुर भी इन दिनों अपनी बेरोजगारी को लेकर हताश हैं. उनकी मानें तो अब वो कभी भी किसी खाड़ी देश में जाना तो दूर उसके बारे में सोचना भी पसंद नहीं करेंगे, लेकिन उम्र के 50 साल के पड़ाव में आकर वो अपने परिवार की माली हालत को सुधारने के लिए लगातार चिंतित हैं.
परिवार ने रिश्तों का हवाला देकर किया मनाः वहीं, अफगानिस्तान में 9 साल की नौकरी करने के बाद जनवरी 2021 में देहरादून लौटे भूतपूर्व सैनिक संजीव कुमार का कहना है कि जैसे हालात अफगानिस्तान में हैं, उसे देखते हुए उनकी पत्नी-बच्चों ने रिश्तों का हवाला देकर अब विदेश जाकर किसी भी तरह की नौकरी के लिए पूरी तरह मना कर दिया है. क्योंकि परिवार ने कहा है कि जान है तो जहान है.