देहरादून/शिमला:अलग राज्य बनने से पहले उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा था. यहां मैदान और पहाड़ के अपने-अपने मसले थे. पहाड़ की जनता अपना अलग राज्य चाहती थी और लंबे संघर्ष के बाद ये सपना पूरा भी हुआ. ये अलग बात है कि उत्तराखंड में सियासी स्थिरता नहीं रही और विकास इस पहाड़ी प्रदेश में रफ्तार नहीं पकड़ पाया.
हालांकि वहां देहरादून, हरिद्वार और रुड़की में उद्योग व अन्य संस्थानों के होने से कई लाभ भी हैं, लेकिन ठेठ पहाड़ी लोग अभी भी विकास को तरस रहे हैं. ऋषिकेश सरीखे आध्यात्मिक नगरों के राज्य उत्तराखंड में देश ही नहीं विदेश से भी योग व अध्यात्म के इच्छुक आते हैं. ऐसे में पहचान को लेकर तो उत्तराखंड के पास कोई संकट नहीं है, लेकिन एक ऐसा संकट जरूर इस राज्य में है, जिसे लेकर यहां की जनता आवाज उठाने लगी है.
उत्तराखंड के लोग भी अब अपने यहां हिमाचल जैसा सख्त भू-सुधार कानून चाहते हैं. कारण ये है कि उत्तराखंड की बेशकीमती जमीनों पर बाहरी लोग बस रहे हैं. धन्नासेठ यहां मनमानी जमीन का चयन कर उसका सौदा करते हैं. यहां ऐसी कोई बंदिश नहीं है कि जमीन खरीदने से पहले कानूनी जटिलताएं पार करनी हैं. हिमाचल में ऐसा नहीं है. हिमाचल में कोई भी बाहरी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता. यहां के भूमि सुधार कानून में लैंड सीलिंग एक्ट और धारा-118 के कारण राज्य की भूमि पर धन्नासेठ मनमाना कब्जा नहीं कर पाए हैं.
क्यों चाहिए हिमाचल जैसा कानून
पहचान का संकट सभ्यता का सबसे बड़ा संकट होता है. उत्तराखंड की पहाड़ी संस्कृति भी अपनी पहचान बनाए रखना चाहती है. देश के विभिन्न हिस्सों से आए लोग यदि उत्तराखंड में बेरोट-टोक जमीन खरीद करते रहेंगे तो यहां के सीमांत व छोटे किसान भूमिहीन हो सकते हैं. हिमाचल ने इस संकट को अपने अस्तित्व में आने पर ही पहचान लिया था. प्रदेश निर्माता और पहले मुख्यमंत्री डॉ. वाईएस परमार ने ऐसे कानूनों की नींव रखी कि हिमाचल की भूमि बाहरी लोग न ले पाएं. यहां बाहरी राज्यों के लोग जमीन नहीं खरीद सकते.
यदि किसी को जमीन खरीदनी हो तो उसे भू-सुधार कानून की धारा-118 के तहत सरकार से अनुमति लेनी होती है. यही कारण हैं कि हिमाचल में बाहरी राज्यों के धन्नासेठ या फिर प्रभावशाली लोग न के बराबर जमीन खरीद पाए हैं. प्रियंका वाड्रा जैसे केस न के बराबर हैं. ऐसे प्रभावशाली लोगों को धारा-118 के तहत अनुमति मिलने में खास रुकावट नहीं आती. फिर भी प्रभावशाली से प्रभावशाली व्यक्ति को भी हिमाचल में कृषि योग्य जमीन खरीदने की अनुमति नहीं मिलती.
इंडस्ट्री के लिए चाहते हैं मनमानी जमीन