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अलविदा 2019: उत्तराखंड के इन सपूतों ने दी शहादत, पहाड़ों में आज भी गूंज रहे वीरता के किस्से

देश की सरहद पर शहीद हुए वीर जवानों को ईटीवी भारत श्रद्धांजलि दे रहा है. चलिए, जानते इन वीरों की शौर्य गाथा और बलिदान की कहानी को.

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वीरों की शौर्य गाथा

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Published : Dec 29, 2019, 10:03 AM IST

देहरादून:वीरों की भूमि उत्तराखंड का देश की रक्षा में हमेशा से ही अहम योगदान रहा है. साल 2019 में प्रदेश को साल की पहली शहादत की खबर तब मिली, जब विधानसभा में उत्तराखंड का बजट सत्र चल रहा था. 14 फरवरी को हुए पुलवामा आतंकी हमले में देश के 40 जवान शहीद हो गए, जिनमें 2 जवान उत्तराखंड से थे. देश की सरहद पर शहीद हुए वीर जवानों को ईटीवी भारत श्रद्धांजलि दे रहा है. चलिए, जानते हैं इन वीरों की शौर्य गाथा और बलिदान को.

शहीद ASI मोहन रतूड़ी
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में उत्तरकाशी जिले के बनकोट गांव के निवासी मोहनलाल रतूड़ी 14 फरवरी को शहीद हो गए थे. मोहनलाल रतूड़ी सीआरपीएफ में एएसआई पद पर तैनात थे. मोहनलाल रतूड़ी साल 1988 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे. उनके परिवार में पत्नी सरिता, तीन बेटियां और दो बेटे हैं. मोहनलाल को 2024 में सेवानिवृत्त होना था. वे रिटायरमेंट के बाद गांव में रहना चाहते थे. लेकिन आतंकवादियों के नापाक इरादों ने उन्हें हमसे और अपने परिवार से हमेशा के लिए दूर कर दिया.

पहाड़ों में आज भी गूंज रहे शहीदों के वीरता के किस्से.

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शहीद कॉन्स्टेबल वीरेंद्र सिंह
सेना में हमेशा अग्रिम पंक्ति के शूटर रहे सीआरपीएफ जवान कॉन्स्टेबल वीरेंद्र सिंह भी पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हो गए थे. ये उत्तराखंड के लिए दूसरा झटका था. अचूक निशानेबाजी में महारथ रखने वाले शहीद वीरेंद्र हमेशा बटालियन की पेट्रोलियम में सबसे आगे रहते थे. उनकी फुर्ती के कई किस्से चर्चित हैं. एक किस्से का जिक्र करते हैं. 2012 में छत्तीसगढ़ में आईईडी ब्लास्ट की घटना में वीरेंद्र चार कमांडेंट और चालक के साथ सुरक्षित बच निकले थे. जबकि उन्होंने नक्सली कैंप को ध्वस्त कर दिया था. शहीद कॉन्स्टेबल वीरेंद्र उधम सिंह नगर जिले के रहने वाले थे.

मेजर चित्रेश बिष्ट
पिछली 2 शहादतों से उत्तराखंड पहले ही सहमा हुआ था. लेकिन फिर एक और खबर ने पूरे उत्तराखंड को हिला कर रख दिया. ये खबर थी उत्तराखंड के सपूत देहरादून में रहने वाले 24 वर्षीय मेजर चित्रेश बिष्ट से जुड़ी. चित्रेश बिष्ट के घर में उनकी शादी की तैयारियां चल रही थीं. लेकिन जिस बेटे ने अपने मां-बाप से कई वादे किए थे वो तिरंगे में लिपट कर घर पहुंचा. चित्रेश आईईडी ब्लास्ट में शहीद हुए थे. लिहाजा उनके घरवाले उनका अंतिम दर्शन भी ठीक से नहीं कर पाए. इस घटना के बाद पूरा उत्तराखंड रोया, क्योंकि प्रदेश ने अपना एक जवान बेटा खो दिया था.

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मेजर विभूति ढोंडियाल

तीन वीर सपूतों की चिंताएं अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि एक और शहादत की खबर ने पहले से ही दर्द में कराह रहे उत्तराखंड को एक ओर जख्म दे दिया. पौड़ी जिले से आने वाले देहरादून निवासी विभूति ढौंडियाल पुलवामा हमले में शामिल आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हो गए. मेजर विभूति की शहादत की खबर जब उत्तराखंड पहुंची तो लोगों में दर्द भी था और गुस्सा भी. इसका सबूत तब देखने को मिला, जब उनके पार्थिव शरीर के स्वागत में सड़क पर बड़ा हुजूम देखने को मिला. कुछ ही दिनों बाद मेजर विभूति धौंडियाल की शादी की पहली सालगिरह थी और उन्होंने अपने दोस्तों के साथ-साथ अपनी पत्नी को एक बड़ी पार्टी का वादा किया था.

लांसनायक संदीप थापा
देश की रक्षा करते हुए देवभूमि उत्तराखंड का एक और लाल 17 अगस्त को देश की सरहद पर शहीद हो गया. जम्मू-कश्मीर के राजोरी जिले के नौशेरा सेक्टर में पाकिस्तानी सेना की ओर से गोलाबारी में देहरादून के रांझावाला सहसपुर निवासी लांसनायक संदीप थापा शहीद हो गए. वह तीसरी गोरखा राइफल में तैनात थे.

राइफलमैन भीम बहादुरपुर
जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा इलाके में पेट्रोलिंग करते हुए देवभूमि ने एक और जवान खोया. इस हादसे में 2 जवान शहीद हुए थे. जिसमें देहरादून के विजयपुर अनारवाला गांव निवासी राइफलमैन भीम बहादुरपुर एक थे. 27 साल के भीम बहादुरपुर अपने माता-पिता के इकलौते बेटे थे.

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