उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

उत्तराखंड में ढहा कई दिग्गजों का किला, जानें हॉट VIP सीटों का परिणाम - lost to CM Dhami Khatima

उत्तराखंड चुनाव परिणाम आने के बाद प्रदेश में बीजेपी की वापसी तय हो गई है. ऐसे में प्रदेश की कई ऐसी वीआईपी सीटों पर पूरे प्रदेश की नजर थी. जिसके परिणाम ने सबको चौंका दिया. जहां भाजपा की शानदार जीत के बावजूद सीएम धामी अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे. वहीं, हरीश रावत की हार के साथ उनके सियासी सन्यास की चर्चायें तेज हो गई है.

UTTARAKHAND HOT VIP ASSEMBLY SEAT RESULTS
VIP सीटों पर जानें क्या रहा परिणाम

By

Published : Mar 10, 2022, 9:41 PM IST

देहरादून:उत्तराखंड में आये चुनाव परिणामों के साथ ही 70 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला हो गया. 2022 की चुनावी दंगल में किसी प्रत्याशी ने अपना परचम लहराया तो, किसी को हार का सामना करना पड़ा. वहीं, मिथक को तोड़ते हुए उत्तराखंड में बीजेपी ने एक बार फिर से शानदार वापसी की है. हालांकि, इस चुनाव में कई दिग्गज अपनी साख बचाने में नाकामयाब रहे. ऐसे में आइए हम आपको बताते हैं कि किस सीट से किस दिग्गज को जीत मिली और किसे हार का मुंह देखना पड़ा.

खटीमा विधानसभा सीट: प्रदेश में जहां एक बार फिर से कमल खिला है, वहीं, सीएम पुष्कर सिंह हार के साथ मुरझाये नजर आये. खटीमा विधानसभा सीट सूबे की सबसे हॉट सीट में शुमार थी. क्योंकि पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ये सीट सुर्खियों में थी. जिस कारण सभी की निगाहें इस सीट पर टिकी हुई थी. इस सीट पर पुष्कर धामी और कांग्रेस प्रत्याशी भुवन कापड़ी के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली है. हालांकि, भुवन कापड़ी ने पुष्कर धामी को 6579 वोटो के बड़े अंतर से हराया.

खटीमा विधानसभा सीट के राजनीतिक अतीत की बात करें तो 2002 और 2007 के चुनाव में कांग्रेस के एडवोकेट गोपाल सिंह राणा विधायक निर्वाचित हुए थे. 2012 के चुनाव में बीजेपी ने भगत सिंह कोश्यारी के मुख्यमंत्री रहते समय उनके ओएसडी रहे पुष्कर सिंह धामी को उम्मीदवार बनाया. बीजेपी के पुष्कर सिंह धामी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस के देवेंद्र चंद्र को 5,394 वोट से हरा दिया और पहली बार विधायक निर्वाचित हुए.

ये भी पढ़ें:'मैं सीएम रहूं या नहीं, नई सरकार में जल्द लागू होगा यूनिफॉर्म सिविल कोड'

लालकुआं विधानसभा सीट: यह विधानसभा सीट उत्तराखंड के कद्दावर नेताओं में शुमार हरीश रावत की वजह से सुर्खियों में थी. पिछले चुनाव में दो सीटों से हारे हरीश रावत इस बार भी अपनी सीट बचाने में नाकामयाब रहे. लालकुआं की लड़ाई स्थानीय बनाम सीएम के चेहरे की बतायी जा रही थी. लालकुआं सीट पर हरीश रावत और बीजेपी प्रत्याशी मोहन बिष्ट के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली, लेकिन मोहन बिष्ट ने हरदा को 17527 वोटो से कड़ी शिकस्त दी है.

विधानसभा सीट के तौर पर लालकुआं इस बार यह तीसरा चुनाव देख रहा है. लालकुआं विधानसभा सीट साल 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. पूर्व सीएम हरीश रावत के मैदान में आने से इस सीट पर अब पूरे प्रदेश की नजर थी. 2012 के चुनाव में दुर्गापाल 25 हजार से अधिक वोट लेकर यहां निर्दलीय चुनाव जीते थे. 2017 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर नवीन दुम्का विधायक चुने गए. लालकुआं विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरणों की बात करें तो इस विधानसभा क्षेत्र में हर जाति-वर्ग के लोग रहते हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण और राजपूत बिरादरी के मतदाताओं की बहुलता है. अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति के मतदाता भी लालकुआं विधानसभा सीट का चुनाव परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

गंगोत्री विधानसभा सीट:प्रसिद्ध गंगोत्री धाम के नाम वाली इस सीट पर राज्य गठन के बाद हुए चुनावों में जनता ने भाजपा और कांग्रेस को बारी-बारी से मौका दिया है. इस बार आम आदमी पार्टी के सीएम चेहरा कर्नल अजय कोठियाल के गंगोत्री सीट से चुनाव मैदान में उतरने से यह वीआईपी सीट बनकर उभरी थी. इस बार गंगोत्री सीट पर आप प्रत्याशी अजय कोठियाल, बीजेपी प्रत्याशी सुरेश चौहान और कांग्रेस नेता विजयपाल सजवाण के बीच त्रिकोणीय मुकाबला था, लेकिन भाजपा प्रत्याशी सुरेश सिंह चौहान ने बाजी मारी और 17527 वोटो से कोठियाल को पटखनी दी.

गंगोत्री विधानसभा सीट का मिथक यूपी से लेकर उत्तराखंड बनने के बाद से अब तक जारी है. स्वतंत्रता के बाद से पिछले चुनाव तक जिस भी पार्टी का प्रत्याशी जीत कर आया उसकी सरकार बनी है और इस बार भी यह मिशक सुरेश चौहान की जीत के साथ बरकरार रही.

उत्तराखंड बनने के बाद 2002 में हुए चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर विजयपाल सजवाण ने जीत दर्ज की थी. 2007 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर गोपाल सिंह रावत चुनाव जीते और प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी. 2012 के चुनाव में कांग्रेस के विजयपाल सजवाण चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. 2017 के चुनाव में बीजेपी से गोपाल रावत चुनाव जीते थे.

ये भी पढ़ें:हरीश रावत की बेटी अनुपमा ने लिया पिता की हार का बदला, लेकिन हरदा नहीं बचा पाए साख

चकराता विधानसभा सीट:उत्तराखंड के देहरादून जिले की एक विधानसभा सीट चकराता भी है. चकराता ब्रिटिशकालीन शहर होने के साथ ही मशहूर पर्यटन स्थल भी है. चकराता अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही नृत्य कला, अपने पर्व और अनूठी संस्कृति के लिये भी देश-दुनिया में अलग पहचान रखता है.

चकराता विधानसभा सीट पर उत्तराखंड राज्य गठन के बाद कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है. 2002 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के प्रीतम सिंह विधायक बने. 2002 से लेकर अब तक लगातार प्रीतम सिंह ही विधायक हैं. प्रीतम सिंह ने 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अपने प्रतिद्वंदी उम्मीदवारों को चुनावी रणभूमि में पटखनी दी. कांग्रेस का ये मजबूत किला भारतीय जनता पार्टी कभी भेद नहीं पाई. हालांकि इस बार बीजेपी ने बॉलीवुड के मशहूर गायक जुबिन नौटियाल के पिता रामशरण नौटियाल पर अपना दांव खेला था, लेकिन नौटियाल प्रीतम का तिलिस्म तोड़ने में कामयाब नहीं हो पाये.

श्रीनगर विधानसभा सीट: श्रीनगर विधानसभा सीट इसीलिए हॉट सीट में तब्दील हो गई. क्योंकि इस सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल और बीजेपी के कद्दावर नेता डॉ. धन सिंह रावत के बीच कड़ी टक्कर थी. इस कांटे की टक्कर में आखिरकार बाजी धन सिंह रावत ने बाजी मार ली.

श्रीनगर के लोगों का भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में गहरा जुड़ाव रहा. यहां पर 1930 में जवाहर लाल नेहरू और विजयलक्ष्मी पंडित जैसे नेताओं का आगमन हुआ था. इस सीट पर 2002 में कांग्रेस से सुंदर लाल मंद्रवाल ने जीत दर्ज की थी. 2007 में भाजपा से बृजमोहन कोतवाल ने 13,551 मतों के साथ कांग्रेस के सुंदर लाल मंद्रवाल को हराया था.

2012 में इस सीट पर कांग्रेस के गणेश गोदियाल ने 27,993 मतों के साथ भाजपा के डॉ. धन सिंह रावत को हराया था. 2017 में भारतीय जनता पार्टी से डॉ. धन सिंह रावत ने कांग्रेस के गणेश गोदियाल को 8698 मतों के अंतर से हराया था.

डॉ. धन सिंह रावत उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं और पौड़ी जिले के पैठनी गांव के रहने वाले हैं. धन सिंह रावत राम जन्मभूमि आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं. उत्तराखंड राज्य के लिए आंदोलन में भी वो काफी सक्रिय थे. इस आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.

ये भी पढ़ें:कुमाऊं में जीत ने BJP को सौंपी सत्ता की चाभी, दो महारथियों को न भूलने वाला जख्म भी दिया

चौबट्टाखाल विधानसभा सीट:उत्तराखंड में 2022 के चुनाव में यह सीट काफी चर्चाओं में रहा. इसका सबसे बड़ा कारण सतपाल महाराज का यहां से चुनावी मैदान में होना है. इस सीट के समीकरण में बदलाव हुए हैं. 2002 से लेकर 2012 तक इस सीट का ज्यादातर हिस्सा बीरोंखाल विधानसभा क्षेत्र में शामिल था.

बीरोंखाल सीट से 2002 और 2007 में सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत लगातार विधायक रहीं. 2012 के परिसीमन के बाद चौबट्टाखाल पहली बार अस्तित्व में आया और यहां से भाजपा के तीरथ सिंह रावत पहले विधायक बने.

2016 में मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश के लिए सतपाल महाराज कांग्रेस से भाजपा में आ गए. हालांकि यहां भी उन्हें मुख्यमंत्री का पद नहीं मिल सका. 2017 के चुनाव में सतपाल महाराज ने यहां से जीत तो हासिल की लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बन पाए. इस सीट की बात करें तो यहां पूर्व सैनिक ज्यादा संख्या में मतदाता हैं. इस बार कांग्रेस ने पिछली बार नंबर दो पर रहे प्रत्याशी को बदलकर नए चेहरे पर दांव लगाया था और केसर सिंह नेगी को चुनावी मैदान में उतारा, लेकिन इस बार भी सतपाल महाराज ने जीत हासिल कर कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेर दिया.

हरिद्वार विधानसभा सीट: धर्मनगरी हरिद्वार मां गंगा और राजा दक्ष की नगरी की वजह से आस्था का केंद्र है. हरिद्वार विधानसभा सीट भाजपा का मजबूत किला है, जिसमें पिछले 20 सालों से भाजपा का कब्जा रहा है और बीजेपी के टिकट पर लगातार मदन कौशिक जीतते रहे हैं.

मदन कौशिक ने राजनीतिक पारी बीजेपी से ही शुरू की थी. वे 2000 में हरिद्वार से जिला महामंत्री और फिर जिला अध्यक्ष बने. इसके बाद 2002 में हरिद्वार सीट से विधायक चुने गए. तब से वे लगातार चार बार जीत हासिल कर चुके हैं. मदन कौशिक राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं. यही वजह है कि वे हरिद्वार सीट पर पिछले 20 सालों से एकतरफा कब्जा जमाए हुए हैं.

ये भी पढ़ें:धार्मिक समीकरण: केदारनाथ सीट पर फिर हुआ बीजेपी का कब्जा, कांग्रेस ने छीनी बदरीनाथ सीट

साल 2022 के चुनाव में हरिद्वार सीट से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक 5वीं बार जीत के रिकॉर्ड के लिए मैदान में उतेर और जीत हासिल कर अपना दबदबा कायम रखा हैं. इस बार मदन कौशिक के सामने कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी मैदान में थे. 2002 में हुए चुनाव में बीजेपी के मदन कौश‍िक के सामने कांग्रेस के पारस कुमार जैन थे. तब मदन कौशि‍क ने 2900 से अध‍िक मतों से जीत दर्ज की.

2007 में हुए दूसरे चुनाव में मदन कौश‍िक ने सपा के अंबरीश कुमार को 26 हजार से अध‍िक मतों से हराया. 2012 में मदन कौशि‍क ने सतपाल ब्रह्मचारी को 8 हजार से अध‍िक मतों से हराया. 2017 के चुनाव में मदन कौश‍िक ने कांग्रेस के ब्रह्मस्‍वरूप ब्रह्मचारी को 35 हजार से अध‍िक मतों के हराया. इस तरह मदन कौशिक का इस सीट पर रिकॉर्ड दबदबा रहा है.

बाजपुर विधानसभा सीट:उत्तराखंड की राजनीत‍ि में यशपाल आर्य क‍िसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. उत्तराखंड की दल‍ित राजनीत‍ि का बड़ा चेहरा माने जाने वाले यशपाल आर्य अपनी सौम्‍यता के ल‍िए भी लोकप्रि‍य हैं. कांग्रेस एवं बीजेपी सरकार में कैब‍िनेट मंत्री का दाय‍ित्‍व न‍ि‍भा चुके यशपाल आर्य की वजह से ये सीट चर्चाओं में था. इस बार की चुनावी दंगल में एक बार फिर से यशपाल आर्य ने जीत हासिल किया है.

2022 के चुनाव से ठीक पहले यशपाल आर्य अपने बेटे के साथ वापस कांग्रेस में शामिल हो गए. ऐसे में इस बार आर्य कांग्रेस के टिकट पर चुनावी ताल ठोंक कर रहे थे. परिसीमन में बाजपुर विधानसभा क्षेत्र कुंडेश्वरी तक विस्तारित हुई और इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया. पूर्व सीएम एनडी तिवारी भी बाजपुर से जीत हासिल करते रहे थे.

2012 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुई बाजपुर सीट से यशपाल आर्य लगातार दो बार विधानसभा पहुंचे. एक बार कांग्रेस तो दूसरी बार भाजपा से उन्हें यह मौका मिला. उनके कद को देखते हुए दोनों बार कैबिनेट मंत्री का ओहदा मिला तो बाजपुर भी वीआईपी सीट बनकर उभरी. बाजपुर वर्तमान कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडे का पुराना गढ़ रहा है.

2002 में भाजपा के अरविंद पांडे विधायक बने. तब उन्होंने निर्दलीय जनकराज शर्मा को हराया था. 2007 में कांग्रेस प्रत्याशी जनकराज की मृत्यु के चलते हुए उपचुनाव में अरविंद पांडेय ने उनकी पत्नी कैलाश रानी शर्मा को हराया. 2012 में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए और 2017 में बीजेपी के टिकट पर यशपाल आर्य ने मैदान मारा था.

ये भी पढ़ें:चुनावी नतीजों से बीजेपी की बढ़ी 'चमक', कांग्रेस को 'झटका', AAP 'फ्यूज'

लैंसडाउन विधानसभा सीट: ये विधानसभा सीट पौड़ी गढ़वाल जिले की एक विधानसभा सीट है. लैंसडाउन क्षेत्र पर्यटन के मानचित्र पर स्थापित नाम है. लैंसडाउन में ही गढ़वाल राइफल रेजिमेंट का मुख्यालय भी है. लैंसडाउन विधानसभा सीट उत्तराखंड की सियासत में महत्वपूर्ण स्थान रखती है.

इस बार हरक सिंह रावत की पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं के चलते यह सीट सुर्खियों में रही. अनुकृति गुसाईं के ससुर हरकर सिंह रावत 2002 में लैंसडाउन सीट से चुनाव जीते थे. 2007 में भी वह लैंसडाउन से चुनाव जीते. 2012 में उन्होंने रुद्रप्रयाग से चुनाव लड़ा और जीता. 2017 में वह कोटद्वार विधानसभा सीट से चुनाव जीते. वहीं, 2017 के चुनाव में भी बीजेपी ने दलीप सिंह रावत को चुनाव मैदान में उतारा था. इस बार दलीप सिंह रावत और अनुकृति गुसाईं के बीच टक्कर देखने को मिली, लेकिन दलीप सिंह रावत ने अपनी जीत को बरकरार रखा.

टिहरी विधानसभा सीट: इस विधानसभा चुनाव में टिहरी सीट पर मुकाबला बेहद दिलचस्प है. टिहरी सीट पर कांग्रेस के चेहरे ने भाजपा की तरफ से चुनाव लड़ा और भाजपा के चेहरे अब कांग्रेस की तरफ से चुनावी मैदान में थे. अदला-बदली की इस राजनीति से टिहरी की सीट काफी चर्चा का विषय बनी रही. दरअसल, टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस से नाराज होकर किशोर उपाध्याय बीजेपी में शामिल हो गए. वहीं, टिकट कटने पर बीजेपी नेता धन सिंह नेगी कांग्रेस में शामिल हो गए थे. वहीं, इस चुनाव में किशोर उपाध्याय ने बीजेपी का पताका लहराया.

टिहरी उत्तराखंड का एक प्रमुख हिल स्टेशन है. साथ ही टिहरी बांध के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है. यह पर्यटन के नक्शे पर अलग पहचान रखता है. टिहरी अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए सैलानियों के पसंदीदा टूरिस्ट स्पॉट में से एक है. टिहरी विधानसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो ये सीट उत्तराखंड राज्य गठन के बाद शुरुआती दशक में कांग्रेस का गढ़ रही. समय के साथ इस सीट पर कांग्रेस की पकड़ कमजोर पड़ती चली गई. 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर किशोर उपाध्याय विधायक निर्वाचित हुए थे.

ये भी पढ़ें:मुस्लिम यूनिवर्सिटी वालों को जनता ने नकारा, बीजेपी को मिला श्रीराम का आशीर्वाद: बंशीधर भगत

टिहरी विधानसभा सीट से 2012 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार दिनेश धनै ने कांग्रेस के किशोर उपाध्याय का विजय रथ रोक दिया था. टिहरी विधानसभा सीट से साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के धन सिंह नेगी ने जीत हासिल की.

टिहरी विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरणों की बात करें तो इस विधानसभा क्षेत्र में हर जाति-वर्ग के लोग रहते हैं. टिहरी विधानसभा क्षेत्र में शहरी इलाके के मतदाता हैं तो ग्रामीण इलाकों के मतदाता भी चुनाव परिणाम निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में सामान्य वर्ग के साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता भी अच्छी तादाद में हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details