देहरादून: भारत-चीनी सैनिकों के बीच गलवान में हुई मुठभेड़ के बाद चीन के खिलाफ लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर था. इसका सबसे ज्यादा असर भारत-चीन के बीच होने वाले व्यापारिक संबंधों पर पड़ा. चीनी सामान के बहिष्कार को लेकर लोगों के साथ ही राज्य सरकारों ने भी प्रतिबद्धता दिखाई. उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने भी कैबिनेट में राज्यों की कंपनियों को टेंडर प्रक्रिया में चीनी कंपनियों से दूरी बनाये रखने के आदेश दिये. मगर अब महाकुंभ में एमआरआई मशीन खरीद मामले को लेकर ये मामला दोबारा चर्चा में है. दरअसल, उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग ने एक ऐसी कंपनी को एमआरआई मशीन खरीदने के लिए टेंडर दिया है जो मशीनों के पार्ट्स चीन से ही खरीदती है.
हरिद्वार महाकुंभ में 10 करोड़ से ज्यादा की लागत वाली एमआरआई मशीनों को एक ऐसी कंपनी से खरीदे जाने की तैयारी है जो चीन से ही एमआरआई मशीन के पार्ट्स खरीदने का काम करती है. कुंभ मेला अधिकारी अर्जुन सिंह सेंगर के मुताबिक, एमआरआई मशीन के पार्ट्स सिर्फ चीन में ही बनते हैं इसलिए जिस कंपनी को एमआरआई मशीन खरीद के लिए टेंडर दिया गया है वह भी चीन पर ही निर्भर है. उन्होंने बताया कि जिस कंपनी को टेंडर दिया गया है उसके पास भारत सरकार की एनओसी है.
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बैन के बावजूद चीन के सामान के इस्तेमाल पर ईटीवी भारत ने इस मामले को प्रमुखता से उठाया था, जिसके बाद डॉ. अर्जुन सेंगर ने बताया कि अब मामले की जांच करवायी जा रही है. फिलहाल एमआरआई मशीन की खरीद नहीं की गई है. परीक्षण के बाद ही इस पर आगे कार्रवाई की जाएगी.
चीन से स्वास्थ्य उपकरणों की खरीद भारत की मजबूरी
भले ही देश में चीनी सामान के बहिष्कार के लिए कई अभियान चलाये गये हों, मगर फिर भी कई सेक्टर ऐसे हैं जिस मामले में भारत का चीन से सामान खरीदना मजबूरी हो जाता है. स्वास्थ्य सेक्टर एक ऐसा ही क्षेत्र है. भारत समेत दुनिया के कई देश इस मामले में चीन पर ही निर्भर हैं. उत्तराखंड में भी स्वास्थ्य से जुड़े उपकरणों को कैबिनेट के निर्णय के बाद भले ही चीनी कंपनियों को बाहर करने की कोशिश की गई हो, लेकिन हकीकत यह है कि जिन कंपनियों को टेंडर दिए भी जा रहे हैं वह भी इन उपकरणों को चीन से ही मंगवाने को मजबूर हैं.