देहरादून: उत्तराखंड में स्वास्थ्य के क्षेत्र(healthcare system in uttarakhand) में किए जाने वाले हजारों दावे तब खोखले नजर आते हैं जब सरकारी सिस्टम से जुड़े लोग ही इन व्यवस्थाओं पर विश्वास नहीं करते. हाल ही में स्वास्थ्य महानिदेशक(Director General of Health Shailja Bhatt) का सरकारी अस्पताल की जगह निजी स्वास्थ्य संस्थान पर भरोसा जताना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. बात केवल किसी एक अधिकारी की नहीं हैं. बल्कि सरकार के मंत्री, विधायक से लेकर प्रशासन के आला अधिकारी तक निजी अस्पतालों को ही प्राथमिकता देते रहे हैं.
राज्य स्थापना के 22 सालों में भी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का ढर्रा सुधरने का नाम नहीं ले रहा है. कुछ जिलों में स्वास्थ्य सुविधाएं जरूर बढ़ाई गई हैं. लेकिन आज भी सरकारी सिस्टम पर विश्वास नहीं बढ़ पाया है. यह स्थिति तब है जब तमाम राजनीतिक दल सत्ता में आने से पहले स्वास्थ्य क्षेत्र में आमूल चूल परिवर्तन का दावा करते हुए लिखित भरोसा देते हैं. घोषणा पत्र में लिखित यह दावे ना कभी पूरे हो पाते हैं और ना ही आम जन का विश्वास सरकारी अस्पताल जीत पाते हैं.
सरकार के नुमाइंदों को ही नहीं सरकारी अस्पतालों पर भरोसा सबसे ताजा मामला स्वास्थ्य महानिदेशक शैलजा भट्ट (Director General of Health Shailja Bhatt) का है. हाल ही में उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी. जिसमें स्वास्थ्य महानिदेशक घायल हो गई थी. इस दौरान उनके पैर में फ्रैक्चर हुआ. स्वास्थ्य महानिदेशक ने पैर फैक्चर होने के बाद सरकारी अस्पताल की जगह मैक्स निजी अस्पताल (Shailja Bhatt taking treatment in private hospital) में जाना मुनासिब समझा. यह कोई पहला या इकलौता मामला नहीं है. इससे पहले सरकार में मंत्री चंदन राम दास, रेखा आर्य और सुबोध उनियाल भी सरकारी सिस्टम पर विश्वास न करते हुए निजी अस्पतालों में इलाज कराते हुए दिखाई दिए.
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विपक्षी दल के रूप में कोविड-19 होने पर इंदिरा हृदयेश भी निजी अस्पताल पहुंची थी. यही नहीं पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत ने भी निजी अस्पताल में इलाज करवाया था. यह सब उदाहरण इस बात को जाहिर करते हैं कि सरकार और सरकार के अधिकारी स्वास्थ्य विभाग के सरकारी सिस्टम पर विश्वास ही नहीं करते. जाहिर तौर पर इसकी वजह सरकारी सिस्टम की खामियां या चिकित्सकों की काबिलियत पर विश्वास नहीं होना माना जा सकता है.
इस मामले पर राज्य आंदोलनकारी और उत्तराखंड क्रांति दल के नेता शांति प्रसाद भट्ट कहते हैं कि अस्पतालों में दवाइयां नहीं हैं. व्यवस्थाओं के नाम पर कुछ खास सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं. इसलिए आम लोगों के लिए औपचारिकता निभाने वाला सिस्टम तैयार किया गया है. जिस पर बड़े अधिकारी और सरकार खुद विश्वास नहीं करते.
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उत्तराखंड में स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत (Health Minister Dhan Singh Rawat) अपने कार्यकाल के दौरान कई बड़े काम होने की बात कहते हुए दिखाई देते हैं. उन्होंने कोरोना काल में चिकित्सकों की संख्या को बढ़ाने के साथ ही अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाने का भी दावा किया. इतना कुछ हुआ तो फिर सरकारी सिस्टम सरकार शासन के अधिकारी मंत्री विधायक क्यों इस सिस्टम पर विश्वास नहीं कर रहे हैं यह एक बड़ा सवाल है?
इस पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा कहते हैं कि जब अस्पतालों में सुविधाएं ही नहीं है तो आम लोग अस्पतालों में कैसे पहुंचेंगे? जरूरी सुविधाओं की कमी के कारण केवल मजबूर व्यक्ति ही सरकारी अस्पताल पहुंचता है. उत्तराखंड में सरकार कोई भी रही हो लेकिन स्वास्थ्य व्यवस्थाएं हमेशा एक सी ही रही हैं. जिसके कारण सरकार के मंत्री, विधायक और प्रशासनिक अधिकारी सरकारी अस्पतालों पर भरोसा नहीं करते. ये हालात तो देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार जैसे शहरी इलाकों के हैं. तो सोचिए पहाड़ी इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं के क्या हालात होंगे?