देहरादून: उत्तराखंड सरकार किसानों की आय दोगुनी करने में जुटी हुई है. उत्तराखंड में अब काश्तकारों की आर्थिकी का मछली पालन मुख्य आधार बन सकती है. प्रदेश में मत्स्य पालन को बढ़ावा देकर इसे आर्थिकी का बड़ा जरिया बनाने को लेकर सरकार सक्रिय हुई है. इस कड़ी में मछली की ट्राउट और महाशीर प्रजाति की राज्य में व्यापक संभावनाओं को देखते हुए किसानों को इनके पालन से जोड़ा जा रहा है.
अकेले उत्तराखंड के बाजारों में ही 70 हजार मीट्रिक टन मछलियों की मांग है. लेकिन प्रदेश के किसान महज 7000 मीट्रिक टन मछलियों का ही उत्पादन कर पाते हैं. बाकी डिमांड दूसरे राज्यों से पूरी करनी पड़ती है. इधर, प्रदेश से बाहर भी उत्तराखंड की मछलियों की डिमांड बेहद ज्यादा है. इस तरह यदि मत्स्य पालन पर फोकस किया जाए तो उत्तराखंड की मछलियों के लिए न केवल प्रदेश, बल्कि दूसरे प्रदेशों में भी बड़ा बाजार उपलब्ध है. ऐसे में मछलियों की बढ़ती मांग को देखते हुए प्रदेश में मछली पालन को खासी तवज्जो दी जा रही है.
जानकार बताते हैं कि ट्राउट मछली दिल के मरीजों के लिए रामबाण का काम करती है. यह मछली ठंडे पानी में रहती है. यह ट्राउट और महाशीर मछली की प्रजातियां हिमाचल, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड में पाई जाती हैं. इन मछलियों के लिए 10 से 20 डिग्री सेल्सियस का तापमान चाहिए. जो उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों की जलधाराओं में उपलब्ध होता है. ट्राउट मछली का पूरे देश में करीब 842 टन का उत्पादन होता है. जिसमें 80% हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर उत्पादन करते हैं. उत्तराखंड में उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़ और चकराता में कुछ किसान ट्राउट और महाशीर की फार्मिंग कर रहे हैं. ट्राउट मछली 1,000 से 1500 रुपए प्रति किलो तक बिकती है.
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ट्राउट मछली हृदय कैंसर रोगियों के लिए रामबाण
ट्राउट मछली का अन्तराष्ट्रीय कारोबार है. ट्राउट मछली पहली बार अंग्रेज अपने साथ उत्तराखंड 1913 में लेकर आए. ट्राउट मछली उत्तरकाशी के डोडीताल में पाई जाती है. 120 वर्ष पहले नार्वे के नेल्सन ने डोडीताल में ट्राउट मछली के अंडे डाले थे और तब से डोडीताल में एंगलिंग के लिए देश-विदेश के सैलानी यहां पहुचते है.