देहरादून:उत्तराखंड में मॉनसून के दस्तक देने के साथ ही पहाड़ी राज्य में भूस्खलन को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं. पहले ही पिछले एक हफ्ते में केदारनाथ और अन्य स्थानों में भूस्खलन और शुरुआती बारिश से चट्टानों के खिसकने से कम से कम 5 पर्यटकों की जान चली गई है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मामले का संज्ञान लेते हुए राज्य की तैयारियों के तहत अधिकारियों को कई निर्देश दिए हैं. संभावित आपदाओं की दृष्टि से अगले तीन माह को महत्वपूर्ण बताते हुए सीएम पुष्कर सिंह धामी ने जिलाधिकारियों को अपने स्तर पर अधिकतर फैसले लेने को कहा है.
केदारनाथ में जून 2013 की आपदा की यादें धुंधली होने से पहले ही, पिछले 2021 फरवरी में ऋषिगंगा की बाढ़ ने उत्तराखंड को एक बार फिर से प्राकृतिक आपदाओं का राज्य करार दे दिया था. केदारनाथ जलप्रलय ने लगभग 5 हजार लोगों की जान चली गई थी. जबकि ऋषिगंगा बाढ़ में 200 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी. इसके अलावा चमोली जिले के रैणी और तपोवन क्षेत्रों में भीषण तबाही मची थी. दो जलविद्युत परियोजनाओं को भी खासा नुकसान हुआ था. विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय की स्थिति नाजुक है. इसलिए, प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है. खासकर मॉनसून के दौरान जब आपदाओं के प्रति इसकी संवेदनशीलता कई गुना बढ़ जाती है.
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प्राकृतिक आपदाओं से संवेदनशीलता बढ़ीः हिमालय भूविज्ञान संस्थान में भूभौतिकी समूह के पूर्व प्रमुख डॉ. सुशील कुमार का कहना है कि हिमालय अपेक्षाकृत छोटी पर्वत श्रृंखला है. इसकी ऊपरी सतह पर केवल 30-50 फीट तक की मिट्टी होती है. यदि इस मिट्टी में थोड़ी सी भी छेड़छाड़ की जाती है. खासकर बारिश के दौरान तो भूस्खलन की स्थिति पैदा हो सकती है. उन्होंने कहा कि ऑल वेदर रोड परियोजना के निर्माण के लिए पहाड़ियों को काटना, चारधाम यात्रा में तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ और टिहरी बांध के जलग्रहण क्षेत्र में वृद्धि के कारण बारिश ने भी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति राज्य की संवेदनशीलता को बढ़ा दिया है.
भूकंप प्रतिरोधी शेल्टर बनाने का आग्रहःडॉ सुशील कुमार का कहना है कि राज्य में पूर्व चेतावनी प्रणाली लगाकर आपदाओं से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है. लेकिन इसके प्रभावी होने के लिए सरकार को इंटरनेट नेटवर्क को भी मजबूत करना होगा. उन्होंने सरकार से आपदा संभावित क्षेत्रों में रहने वाली आबादी के लिए भूकंप प्रतिरोधी आश्रय गृह बनाने और उन्हें भूकंप से बचाने वाली भवन निर्माण तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित करने का भी आग्रह किया है.
उत्तराखंड आपदा न्यूनीकरण और प्रबंधन केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक, 2014 से 2020 तक प्राकृतिक आपदाओं में लगभग 600 लोगों की जान चली गई और 500 अन्य घायल हो गए हैं. इस दौरान सैकड़ों घर, इमारतें, सड़कें और पुल क्षतिग्रस्त हुए हैं. इन आपदाओं में 2,050 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि भी नष्ट हुई है. इस साल भी शुरुआती बारिश के दौरान हुए भूस्खलन में कम से कम 5 लोगों की मौत हुई है.
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सीएम धामी के निर्देशः मुख्यमंत्री धामी ने आपदा प्रबंधन समेत विभिन्न विभागों को सतर्क रहने और समन्वय से काम करने के निर्देश जारी किए हैं. उन्होंने किसी भी आपदा की स्थिति में अधिकारियों को कम से कम समय में कार्रवाई करने और तत्काल राहत एवं बचाव कार्य शुरू करने का निर्देश दिया है. बारिश या भूस्खलन के कारण सड़क, बिजली और पानी की आपूर्ति बाधित होने की स्थिति में मुख्यमंत्री ने संबंधित अधिकारियों को जल्द से जल्द सेवाएं बहाल करने के निर्देश दिए हैं.
आपदा पीड़ितों को मुआवजाः सीएम धामी ने अधिकारियों को संवेदनशील स्थानों पर एसडीआरएफ की टीमों को तैनात रखने, सैटेलाइट फोन की कार्यप्रणाली सुनिश्चित करने, आवश्यक खाद्य सामग्री, दवाओं और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की पूरी व्यवस्था पहले से करने के लिए भी कहा है. उन्होंने जिलाधिकारियों को चुनौतियों से निपटने और आपदा प्रबंधन के लिए अलग रखी गई धनराशि का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने के लिए अपने स्तर पर अधिकांश निर्णय लेने का भी निर्देश दिया है. साथ ही मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से कहा है कि वे आपदा पीड़ितों को जल्द से जल्द नियमानुसार मुआवजा जारी करें. साथ ही उन्हें अगले तीन महीने के लिए विशेष परिस्थितियों में ही सरकारी कर्मचारियों की छुट्टी स्वीकृत करने के लिए भी आगाह किया.