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विश्व पर्यावरण दिवस: CM तीरथ रावत के सामने प्रस्तुतीकरण देगा वन विभाग

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Published : Jun 5, 2021, 11:49 AM IST

विश्व पर्यावरण दिवस पर राज्य सरकार पर्यावरण संरक्षण को लेकर प्रदेश में किए गए प्रयासों का भी मुआयना करती है. इस कड़ी में वन विभाग के अधिकारी मुख्यमंत्री के सामने ईको रेस्टोरेशन से जुड़े प्रयासों का प्रस्तुतीकरण देने जा रहे हैं.

विश्व पर्यावरण दिवस
विश्व पर्यावरण दिवस

देहरादून: विश्व पर्यावरण दिवस को लेकर उत्तराखंड वन विभाग पर्यावरण से जुड़े तमाम जरूरी विषयों पर प्रस्तुतीकरण देने जा रहा है. इस कड़ी में ईको रेस्टोरेशन, लैंटाना प्रबंधन, ग्रास लैंड विकास, मियावाकी पद्धति से पौधारोपण जैसे विषयों पर प्रस्तुतीकरण होगा. इसके अलावा वन विभाग विभिन्न पौधों की प्रजातियों से जुड़ी एक रिपोर्ट भी जारी करेगा.

उत्तराखंड पर्यावरण के लिहाज से बेहद धनी प्रदेश है. यहां फॉरेस्ट एरिया हर साल बढ़ता हुआ दिखाई देता है. ऐसे में विश्व पर्यावरण दिवस पर राज्य सरकार पर्यावरण संरक्षण को लेकर प्रदेश में किए गए प्रयासों का भी मुआयना करती है. इस कड़ी में वन विभाग के अधिकारी मुख्यमंत्री के सामने ईको रेस्टोरेशन से जुड़े प्रयासों का प्रस्तुतीकरण देने जा रहे हैं.

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इस दौरान कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में लैंटाना प्रबंधन और ग्रास लैंड विकास से जुड़ी लघु फिल्म भी मुख्यमंत्री के सामने दिखाई जाएगी. प्रदेश में वृक्षारोपण की नई और बेहतर मियावाकी पद्धति का भी विभाग के अधिकारी प्रस्तुतीकरण देने जा रहे हैं. साथ ही अब तक हुए कार्यों को लेकर भी एक विस्तृत जानकारी जिलाधिकारियों और विभाग अध्यक्षों के स्तर पर दी जाएगी. राज्य में क्लाइमेट चेंज मिटिगेशन के संबंध में ईको रेस्टोरेशन के महत्व का भी प्रस्तुतीकरण दिया जाएगा. यह सभी रिपोर्ट वन विभाग की तरफ से तैयार की गई हैं, जिनको आज सरकार के सामने रखा जाएगा.

इसके साथ ही विभिन्न पौधों की प्रजातियों से जुड़ी रिपोर्ट भी तैयार की गई है, जिसका मकसद राज्य और हिमालयी क्षेत्र में ऐसी दुर्लभ प्रजातियों को रखा गया है, जिनके संरक्षण पर काम किया जा रहा है. हिमालय क्षेत्र में ऐसी ही 73 दुर्लभ पौधों की प्रजातियों की इस रिपोर्ट में विस्तृत जानकारी दी गई है. यही नहीं 54 दूसरी प्रजातियों को भी इस रिपोर्ट में शामिल किया गया है, जो कि पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता के लिए बेहद जरूरी हैं.

क्या है मियावाकी पद्धति ?

अकीरा मियावाकी ने वृक्षारोपण की इस तकनीक की खोज की थी. इस पद्धति में पौधों को एक-दूसरे से बहुत कम दूरी पर लगाया जाता है, जिससे पौधे केवल ऊपर से सूर्य का प्रकाश प्राप्त करते हैं और बगल की तुलना में ऊपर की ओर वृद्धि करते हैं.

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