देहरादूनः उत्तराखंड के जंगलों में लगी भीषण आग को लेकर सरकार लगातार सवालों के घेरे में हैं. अब तक पहाड़ की करोड़ों की वन संपदा राख हो चुकी है. साथ ही कई जंगली और पालतु जानवर भी इन भयावह आग की चपेट आ चुके हैं. आखिरकार उत्तराखंड सरकार इससे निजात पाने के लिए क्यों कोई बड़ा कदम नहीं उठा रही है? ऐसा पहली बार नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि सरकार को इस बारे में नहीं पता ये घटना हर साल होती है.
- कॉर्बेट को नुकसान
उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग की सुर्खियां नेशनल मीडिया तक पहुंच गई हैं. जिसके बाद उत्तराखंड के पर्यटन पर भी असर का अंदेशा लगाया जा रहा है. नेचर टूरिज्म पर सबसे असर बताया जा रहा है. हालांकि वन विभाग से जब यह सवाल पूछा गया तो नोडल अधिकारी मान सिंह ने बताया कि कॉर्बेट नेशनल पार्क के पर्यटन पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा है. कॉर्बेट पार्क के पेरीफेरल में कुछ जगहों पर घटनाएं रिपोर्ट की गई है लेकिन कॉर्बेट के अंदरूनी इलाकों में लोगों का बसेरा न होने से आग की घटनाएं नहीं हुई हैं. फॉरेस्ट फायर नोडल अधिकारी मानसिंह ने बताया कि प्रदेश की 1266 जगहों पर लगी आग की घटनाओं में से वाइल्डलाइफ क्षेत्र में केवल 30 से 35 घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं.
- तैयारियां और रणनीति
उत्तराखंड में वन अग्नि से निपटने के सवाल पर वन विभाग की माने तो विभाग ने अक्टूबर से फॉरेस्ट फायर से निपटने की तैयारी शुरू कर ली थी. पूरी तैयारियां के साथ वन विभाग फॉरेस्ट फायर से लड़ने के लिए तैयार हो गया था. वन विभाग के तकरीबन 5000 कर्मचारी और 10,000 फायर वर्कर इस वक्त प्रदेश में आग की घटनाओं पर काबू पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. वहीं भारतीय वायुसेना से बुझाई जा रही आग से भी वनाग्नि से निपटने में काफी मदद मिल रही है.
- एक तिहाई मिल रहा बजट