देहरादून: लॉकडाउन ने काश्तकारों की जिंदगी बदरंग कर दी है. कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन ने खेती-किसानी का बुरा हाल है. शादियों और पार्टियों के कैंसिल होने के बाद मार्केट में सब्जियों की डिमांड कम हो चुकी है. जिसकी वजह से उत्तराखंड के काश्तकारों को काफी परेशान हो रही है. लॉकडाउन में आवाजाही की सुविधा कम होने के चलते काश्तकारों को सब्जी के खरीदार नहीं मिल रहे हैं.
लॉकडाउन में सब्जियों की खपत कम होने के चलते काश्तकार इतने परेशान हो गए हैं कि खेती से मुनाफा तो दूर लागत भी निकाल पाना मुश्किल हो गया है. कमाई न होने के चलते काश्तकार के परिवार के सामने रोजी-संकट खड़ा हो गया है, साथ ही फल-सब्जियों की बिक्री न होने के चलते अब काश्तकार सड़कों पर सब्जियां फेंकने को मजबूर हैं.
देहरादून की मंडियों में फल और सब्जियों की सप्लाई को सामान्य हो गई है. लेकिन कोरोना काल में बिक्री में 40 प्रतिशत से 50 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है. बिक्री कम होने के कारण काश्तकारों को उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं. लॉकडाउन के चलते उनके सामने कई समस्याएं खड़ी हो गईं हैं. सब्जियों की पैदावार तैयार है, लिहाजा उन्हें मार्केट तक लाना काश्तकारों की मजबूरी है.
शिक्षा के हब देहरादून में विभिन्न राज्यों के करीब 5 लाख स्टूडेंट्स पढ़ते हैं. लॉकडाउन के चलते स्कूल-कॉलेजों के हॉस्टल बंद हैं, जिसकी वजह से सब्जियों की डिमांड भी कम हो गई है. इसके साथ ही मसूरी, टिहरी और चकराता के होटलों के बंद होने के कारण भी सब्जी मंडियों पर बुरा असर पड़ा हुआ है. देहरादून निरंजनपुर मंडी से हरिद्वार, ऋषिकेश, मसूरी, टिहरी के व्यापारी सब्जियां और फल लेकर बेचने जाते हैं.
इसके साथ ही निरंजनपुर मंडी में यूपी, उत्तराखंड के काश्तकार बड़े पैमाने पर सब्जियां और फल बेचने आते हैं. लेकिन लॉकडाउन के कारण शहरों में फल और सब्जियों की खपत बहुत कम हो गई है. जिसकी वजह से काश्तकारों को लागत भी निकाल पाना मुश्किल हो गया है. देहरादून के काश्तकारों की हालत यह हो गई है कि वे अब गाड़ी पर ही सब्जी और फल बेचने का काम कर रहे हैं.
काश्तकार की जिंदगी बदहाल. ये भी पढ़ें:IMA पासिंग आउट परेड से पहले कमांडेंट जेएस नेगी से एक्सक्लूसिव बातचीत
लॉकडाउन में प्याज, टमाटर, आलू की खपत कम हो गई है. देहरादून के आसपास हजारों एकड़ में गंगा के मैदानी भाग और पहाड़ की तराई में तरबूज, खरबूज की खेती की जाती है, लेकिन काश्तकारों को इस साल जबरदस्त घाटा उठाना पड़ रहा है.
क्या-क्या हो रहीं दिक्कतें
ईटीवी भारत से खास बातचीत में मुजफ्फनगर निवासी काश्तकार आमिर बताते हैं कि खेतों में तोरी, खरबूजा, खीरा की पैदावार तैयार हो चुकी है. लेकिन शहर में हमारी फल और सब्जियां बिक ही नहीं रही है. लॉकडाउन के कारण लागत तक नहीं निकल पा रही है और कोरोना के डर से काश्तकार मंडियों का रुख नहीं कर रहे हैं. मजूबरन हमें सड़क पर ही सब्जी और फल बेचना पड़ रहा है.
प्लेज की खेती करने वाले काश्तकार शकील का कहना है कि लॉकडाउन के कारण हमारे फल सड़ रहे हैं और शहर में फलों की सही कीमत नहीं मिल पा रही है. ऐसे में हमें फलों को सड़कों पर फेंकना पड़ रहा है. दूसरी तरफ गंगा में अधिक पानी के कारण तरबूज की पैदावार पर भी संकट मंडरा रहा है.
काश्तकार सुरेश सैनी का कहना है कि हम लोग टमाटर, धनिया और भिंडी की खेती करते हैं. लेकिन लॉकडाउन लगने के कारण हमारी सब्जियां नहीं बिक रही है और सड़ती जा रहीं हैं. जिसकी वजह से हमें बहुत नुकसान हो रहा है. एक टमाटर की कैरेट में करीब 4-5 किलो टमाटर खराब हो जाने के बाद हमें अपने कैरेट का सही दाम भी नहीं मिल पाता है. जिसकी वजह से आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. पहले से ही बदहाल काश्तकारों की स्थिति सुधरने की बजाय और खराब होती जा रही है.
उत्तराखंड सरकार की स्कीम
लॉकडाउन को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश के 8.81 लाख किसानों को बड़ी राहत देते हुए बीज पर सब्सिडी 50 से बढ़ाकर 75% कर दिया है. इसके साथ ही सरकार ने कृषि उत्पादन मंडी समितियों में फल-सब्जी उत्पादों पर लिए जाने वाले मंडी शुल्क को तीन महीने के लिए पहले ही स्थगित कर चुकी है. मंडी में फल-सब्जी उत्पादों पर 1.5% शुल्क लिया जाता है.
आर्थिक मदद देने की तैयारी
त्रिवेंद्र सरकार सीमांत क्षेत्रों में काम कर रहे 6.5 लाख किसानों के लिए मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना तैयार कर रही है. सरकार की कोशिश है कि किसानों को सस्ता कर्ज देकर उनके उत्पादन को बढ़ाया जाए. सहकारिता मंत्री धन सिंह रावत के मुताबिक मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत जो भी लोन दिया जाएगा, उसमें 25% तक की सब्सिडी दी जाएगी. सीमांत क्षेत्रों के छोटे किसानों को बिना ब्याज के कर्ज दिया जा सकता है. इस योजना में परंपरागत फसलों की पैदावार के अलावा अब उत्तराखंड में कैश क्रॉप्स को बढ़ावा देने के लिए विभाग ने प्लान बनाया है.
फल उत्पादकों को भी मिलेगी राहत
धन सिंह रावत ने बताया कि फल उत्पादकों के लिए भी सरकार काम कर रही है. सहकारिता विभाग ने 60 से 65 हजार फल उत्पादकों का समूह बनाया है. राज्य को केंद्र से करीब साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए मिला है, जिसे कॉपरेटिव के जरिए कैश क्रॉप्स के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.