देहरादून: उत्तराखंड में आबकारी नीति को लेकर आबकारी विभाग के कदम कुछ ठिठक से गए हैं. नई नीति को लेकर तैयार प्रस्ताव शासन को जा चुका है. पिछले लंबे समय से शासन स्तर पर इस प्रस्ताव को कैबिनेट में नहीं लाया जा सका है. खबर है कि इसके पीछे की वजह दिल्ली में आबकारी नीति में हुए कथित भ्रष्टाचार के बाद हुआ विवाद है. जिसके चलते आबकारी विभाग के अधिकारी फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं.
सुनने में यह बात अजीब लगे लेकिन यह सच है कि उत्तराखंड की आबकारी नीति दिल्ली सरकार की विवादित आबकारी नीति के चलते अटक गई है. दरअसल, दिल्ली में 2021 की नई आबकारी नीति जबरदस्त विवादों में है. स्थिति यह है कि दिल्ली सरकार में तत्कालीन डिप्टी सीएम तक को तिहाड़ जेल की हवा खानी पड़ी है. यही नहीं कई अफसर भी सीबीआई के रडार पर हैं. ऐसे में इन स्थितियों के बीच उत्तराखंड की आबकारी नीति भी जबरदस्त तरीके से प्रभावित हुई है. ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य में आबकारी नीति को लेकर काफी समय से प्रस्ताव के कैबिनेट में लाए जाने का इंतजार किया जा रहा है, लेकिन लाख प्रयासों के बाद भी अब तक इस नीति को कैबिनेट से मंजूरी नहीं मिल पाई है.
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बताया जा रहा है कि इसके पीछे शासन स्तर पर अधिकारियों का वह डर है, जो दिल्ली में हुए हालातों को देखकर पैदा हुआ है. लिहाजा अधिकारी हर कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं. इस मामले पर जब आयुक्त आबकारी और सचिव आबकारी हरीश चंद्र सेमवाल से पूछा गया तो उन्होंने नई नीति पर कुछ बताने से ही इनकार कर दिया.
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नई आबकारी नीति को लेकर अधिकारियों के सामने चुनौती:दिल्ली में नई आबकारी नीति के बाद कई अधिकारी और नेता सलाखों के पीछे हैं. सीबीआई तमाम बिंदुओं में नीति में पाई गई गड़बड़ियां और शराब व्यवसायियों को फायदा पहुंचाने को लेकर अधिकारियों के साथ ही सरकार के प्रतिनिधियों से भी पूछताछ कर चुकी है. इन्हीं स्थितियों को समझते हुए उत्तराखंड आबकारी विभाग के अधिकारी नीति में कदम फूंक-फूंक कर बढ़ा रहे हैं.
दरअसल, एक तरफ अधिकारियों के सामने बेहतर नीति बनाकर राज्य को अधिक राजस्व दिलाने की चुनौती है तो दूसरी तरफ महकमा शराब व्यवसायियों को भी तवज्जो देने की कोशिश कर रहा है. जिससे शराब व्यवसाई सरकारी टेंडर लेने में दिलचस्पी दिखाएं. इस लिहाज से शराब व्यवसायियों के लिए मुफीद नीति और सरकार के राजस्व को बेहतर रखने की कोशिश के बीच तालमेल में जरा भी गड़बड़ी होने पर आरोपों की बौछार लग सकती है. बस इन्हीं चुनौतियों और संभावनाओं को देखते हुए आबकारी अधिकारी पसोपेश में हैं. जिसके कारण उत्तराखंड की आबकारी नीति अधर में लटक गई है.