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उत्तराखंड बीजेपी में शुरू हुआ गुट 'वॉर'!, कोश्यारी-खंडूड़ी के बाद अब इनका है दौर - Congress stuck in vortex of factions

उत्तराखंड में गुटों का गणित सत्ता का समीकरण बदलने में काफी कामयाब रहा है. गुटों के भंवर में फंसी कांग्रेस आज भी निकलने के लिए मशक्कत कर रही है. लेकिन अब माना जा रहा है भाजपा के तरकश से निकले दो तीरों ने भी गुटों का नया अध्याय लिख दिया है. ये दोनों तीर उत्तराखंड की राजनीति के जाने माने चेहरे हैं.

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Published : Nov 24, 2022, 1:34 PM IST

Updated : Nov 24, 2022, 6:19 PM IST

देहरादूनःउत्तराखंड भाजपा की राजनीति का नया दौर शुरू हो चुका है. एक समय गुटबाजी की चर्चा होते ही भाजपा में कोश्यारी और खंडूड़ी गुट (Koshyari and Khanduri factions in BJP) की बात की जाती थी, लेकिन इनदिनों भाजपा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और त्रिवेंद्र सिंह रावत दो अलग-अलग गुटों (Dhami and Trivendra faction in BJP) के रूप में देखे जा रहे हैं. बड़ी बात यह है कि इस दौरान डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री धामी के करीब माना जा रहा है तो वहीं त्रिवेंद्र सिंह अनिल बलूनी के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं.

सतह पर गुटबाजी:उत्तराखंड में राजनेताओं की गुटबाजी (Political factionalism in Uttarakhand) का जिक्र होता था तो कांग्रेस चर्चा में रहती थी. बीती घटनाओं के आधार पर माना जाता था कि अंतर्कलह और गुटबाजी के कारण कांग्रेस पार्टी में आज ऐसी स्थिति है. लेकिन बीते कुछ वक्त से अनुशासित कही जाने वाली भाजपा में राजनीतिक द्वंद का मौहाल ज्यादा प्रभावी दिखाई दे रहा है. हैरानी की बात ये है कि पिछले करीब 10 सालों में पहली बार नेताओं का ऐसा टकराव सतह पर दिखाई दिया है.

SLP वापसी से ताजा टकराव:हाल के कुछ उदाहरण भी इस बात को पुख्ता करते हैं. ताजा टकराव की शुरुआत धामी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर एक एसएलपी वापस लेने के फैसले के बाद से हुई है. कहने-सुनने में तो ये एक सामान्य प्रक्रिया लगती है लेकिन परतों के अंदर की कहानी कुछ और कहती है. दरअसल, ये विशेष अनुमति याचिका यानी एसएलपी साल 2020 में उत्तराखंड सरकार ने हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लगाई थी. वो फैसला हाई कोर्ट द्वारा पत्रकार उमेश कुमार से राजद्रोह का मामला हटाने और तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत से जुड़े एक मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए जाने का था. तब त्रिवेंद्र सीएम थे और सरकार उनकी थी तो सरकार की ओर से भी मामला दायर किया गया.

उत्तराखंड बीजेपी में शुरू हुआ गुट 'वॉर'!

अब भी सरकार बीजेपी की ही है लेकिन मुखिया अलग हैं. यही वजह रही कि जैसे ही धामी सरकार की ओर से एसएलपी को सुप्रीम कोर्ट से वापस लेने का कदम उठाया गया, बढ़ा विवाद पैदा हो गया. आनन-फानन में फिर सरकार ने यू-टर्न लेते हुए एसएलपी को यथावत रखने का फैसला किया, लेकिन तबतक धामी-त्रिवेंद्र के बीच की 'दूरियां' सबके सामने आ गईं. इस प्रकरण के बाद पार्टी दो खेमों में बंटती नजर आई है.
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पहले भी रही हैं खींचतान:इससे पहले भी त्रिवेंद्र सिंह रावत और पुष्कर सिंह धामी के बीच राजनीतिक खींचतान की खबरें सामने आती रही हैं. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पहले अंकिता हत्याकांड, उसके बाद विधानसभा भर्ती मामला और यूकेएसएसएससी मामलों में एक के बाद एक बयान दिए. उनके बयानों से धामी सरकार कई दफा असहज भी हुई. त्रिवेंद्र सिंह रावत और मौजूदा मुख्यमंत्री के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है, यह बात तब सामने आई जब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रधानमंत्री से लगभग 45 मिनट की मुलाकात की. तब अंदाजा लगाया गया कि पीएम मोदी ने राज्य में चल रहे तमाम मुद्दों को लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत से फीडबैक लिया. पीएम मोदी से मिलने के बाहर बाहर निकले त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसे सिर्फ और सिर्फ शिष्टाचार भेंट बताकार सियासी पारा और बढ़ा दिया. इसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हाकम सिंह पर भी खुलकर टिप्पणी की. उनके कुछ बयानों ने यह जता दिया कि वह अपने बयानों से पीछे नहीं हटेंगे.

इसी बीच सीएम धामी के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार पर राजद्रोह का मुकदमा चलाने के विरुद्ध एसएलपी वापस लेने के फैसले ने उत्तराखंड की राजनीति फिर गरमा दी. इससे ठीक पहले पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सलाहकार रहे पंवार के ऊपर सीआईडी की जांच बैठाई गई. उसमें भी त्रिवेंद्र ही टारगेट पर दिखे. हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने सलाहकार के बचाव में आकर बयान भी जारी किया.

भाजपा ने कहा- ऑल इज वेल:हालांकि, त्रिवेंद्र सिंह रावत के तमाम बयानों और सरकार से विरोधाभास के बाद भी कई ऐसे मौके आये जब सीएम धामी और त्रिवेंद्र सिंह रावत एक दूसरे के साथ नजर आये. इनकी मुलाकातों को सार्वजनिक करते हुए पार्टी में ऑल इज वेल दिखाने की कोशिश भी की गई. भाजपा भी किसी तरह की गुटबाजी से साफ इनकार कर रही है. भाजपा प्रदेश प्रवक्ता विपिन कैंथोला ऐसे किसी भी टकराव के नहीं होने की बात को दोहरा रहे हैं. कैंथोला का कहना है कि पार्टी के भीतर मेल मुलाकात के साथ किसी नेता की तारीफ करना एक सामान्य घटनाक्रम हैं.
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भारतीय जनता पार्टी के लिए गुटबाजी कोई नई बात नहीं है. वो बात अलग है कि मोदी सरकार के आने के बाद राजनेताओं में खुले रूप से बयान देने को लेकर ज्यादा सतर्कता दिखी है. इसे केंद्रीय हाईकमान के डर के रूप में भी देखा जा सकता है. अब जानिए की गुटबाजी का क्या रहा है हाल और नए समीकरण किस ओर कर रहे हैं इशारा...

  • भाजपा में राज्य स्थापना के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी और भगत सिंह कोश्यारी के बीच रही सत्ता की जंग.
  • साल 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी और भगत सिंह कोश्यारी के दो खेमों में बंटी उत्तराखंड भाजपा.
  • करीब 10 सालों तक दोनों गुटों के बीच रही सत्ता की लड़ाई को अब नए चेहरों ने आगे बढ़ाया.
  • मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के बीच दिखाई दे रही राजनीतिक जंग.
  • कोश्यारी गुट से जुड़े रहे हैं दोनों ही राजनेता.
  • मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की दिखाई दे रही करीबी.
  • पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी की तारीफ कर नए गुट के दिए संकेत.

कांग्रेस ले रही चटकारे:उधर, हमेशा गुटबाजी को लेकर भाजपा के निशाने पर रहने वाली कांग्रेस पार्टी भाजपा में चल रही गुटबाजी पर खूब बयानबाजी कर रही है. पार्टी की प्रवक्ता गरिमा दसौनी कहती हैं कि, कभी वो जमाना था जब कोश्यारी-खंडूड़ी गुट हुआ करते थे लेकिन आज कोश्यारी के ही चेले आपस में लड़ रहे हैं. दोनों के बीच 36 का आंकड़ा है. ध्रुवीकरण भी जबरदस्त हो रहा है. एक चेले ने पूर्व केंद्रीय मंत्री निशंक का साथ चुना है तो दूसरे ने सांसद अनिल बलूनी का. ऐसे में भाजपा का युवा नेतृत्व किसी और रास्ते पर चल पड़ा है.

भारतीय जनता पार्टी ने नए और ऊर्जावान युवा पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी देकर विश्वास जताया है. धामी भी हर मंच से उनको दिए जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से पूरा करने की बात कहते नजर आते हैं और सरकार में पूरी ट्रांसपेरेंसी रखने की बात करते हैं. इसके साथ ही वो सभी को साथ लेकर चलकर 'सबका साथ-सबका विकास' वाली बात भी दोहराते हैं. लेकिन उत्तराखंड में भाजपा के वर्तमान हालात कुछ और ही बयां कर रहे हैं. हालांकि, ये भी है कि राजनीति में हमेशा ना तो कोई दोस्त होता है और ना ही कोई दुश्मन.

Last Updated : Nov 24, 2022, 6:19 PM IST

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