देहरादून:राज्य निर्माण की लड़ाई लड़ने वाली यूकेडी को सत्ता की जंग में शिकस्त खानी पड़ी है. जहां एक तरफ देश भर के कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व है तो उत्तराखंड के लोगों ने राष्ट्रीय दलों पर अपना भरोसा जताया है. ऐसे कई कारण है जो उत्तराखंड क्रांति दल को हाशिये पर रहने के जिम्मेदार हैं. उधर यूकेडी की कमजोर स्थिति दोनों ही राष्ट्रीय दल भाजपा और कांग्रेस के लिए वरदान साबित हुई है.
आंदोलन में अहम भूमिका:उत्तराखंड क्रांति दल का अस्तित्व राज्य स्थापना से पहले ही हो चुका था. राज्य आंदोलन में जुटे कई लोगों ने मिलकर एक ऐसे संगठन को तैयार किया. जो अलग राज्य की मांग के साथ पहाड़ वासियों को लामबंद कर रहा था. आंदोलन में पुलिस के डंडे और जेल की चारदीवारी के बीच एक जन आंदोलन को चेहरा देने के लिए भी इस संगठन का अहम रोल रहा था.आम जनमानस की यह लड़ाई आगे बढ़ी और इससे सफलता भी मिली.
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संघर्षों से सिर्फ लोगों के दिलों में किया राज:नतीजतन अब उत्तरांचल के रूप में एक नए राज्य का गठन हो चुका था. उम्मीद थी कि उत्तराखंड क्रांति दल सत्ता के संघर्ष को ध्यान में रखकर प्रदेशवासी यूकेडी को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. राज्य स्थापना के बाद 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2022 के चुनावों तक हालात यूकेडी के लिए इस तरह बिगड़े कि अब अस्तित्व बचाना ही मुश्किल हो गया है.
क्षेत्रीय दल का सशक्त होना बहुत जरूरी:उत्तराखंड क्रांति दल के इन हालातों के पीछे ऐसी कई वजह थी, जिसके कारण दल कभी उबर ही नहीं सका. यूकेडी का मानना है कि प्रदेश में क्षेत्रीय दल के सत्ता तक नहीं पहुंच पाने का नुकसान प्रदेश वासियों को हुआ है. राष्ट्रीय पार्टियों ने प्रदेश में बेरोजगारी से लेकर भ्रष्टाचार तक के मामले में राज्य की स्थितियों को खराब किया और आज प्रदेश में युवा बेरोजगारी से त्रस्त हैं और भ्रष्टाचार भी चरम पर पहुंच गया है. उत्तराखंड क्रांति दल के नेता कहते हैं कि राज्य में क्षेत्रीय दल का सशक्त होना बहुत जरूरी था लेकिन ऐसे कई कारण है जिसके कारण यूकेडी सत्ता तक कभी पहुंच ही नहीं सकी.
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यूकेडी के हाशिये तक जाने के पीछे रही कई वजह:उत्तराखंड क्रांति दल का राज्य में जनता का विश्वास हासिल ना कर पाने के पीछे कई वजह रही हैं. इसमें यूकेडी का आर्थिक रूप से बेहद कमजोर रहना सबसे बड़ी वजह रहा है. इसके अलावा उत्तराखंड क्रांति दल के नेताओं की आपसी लड़ाई ने पार्टी को हाशिये तक पहुंचने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पार्टी के नेता राष्ट्रीय दलों के खिलाफ राज्य में कोई माहौल तैयार ही नहीं कर पाए. सत्ता का सुख पाने के लालच में उत्तराखंड क्रांति दल के नेताओं ने पार्टी का पूरी तरह से बेड़ागर्क कर दिया. उत्तराखंड क्रांति दल के निर्माण के पीछे की वजह और नीतियों को अपनी कार्य योजना में कभी पार्टी के नेता उतर ही नहीं पाए. पार्टी ने क्षेत्रीय मुद्दों को केवल बयानों तक सीमित रखा और इसको बड़े आंदोलन के रूप में खड़ा करने में कामयाब नहीं हो सकी.