देहरादून:राज्य आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले उत्तराखंड क्रांति दल का झंडा डंडा उठाने वालों का भी टोटा पड़ता दिख रहा है. क्षेत्रीय दल के नाते बेहद मजबूत मानी जाने वाली यह पार्टी आज इस कदर रसातल पर चली गई है कि पार्टी को कार्यकर्ता तक नही मिल पा रहे हैं. हालत यह है कि आगामी चुनाव में ना तो सभी सीटों पर पार्टी लड़ने की हिम्मत जुटा पा रही है और ना ही पार्टी के नेता मजबूत संगठन जुटा पा रहे हैं.
आंकड़े तो यहां तक साबित करते हैं कि अब जनता का विश्वास भी पार्टी से धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है. वैसे तो इसकी वजह क्षेत्रीय दल के नेता राष्ट्रीय पार्टियों को मानते हैं लेकिन हकीकत में इन हालातों के पीछे खुद यूकेडी नेता ही हैं. बहरहाल, पार्टी फिर पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरने का दावा भी कर और जीत का ढोल भी पीट रही है. लेकिन जनता इन आंकड़ों को देखकर यह आसानी से समझ जाएगी कि ये बदलाव मुश्किल ही नहीं बल्कि अब नामुमकिन सा होता जा रहा है.
यूकेडी का गिरता जनाधार:साल 2002 में उत्तराखंड क्रांति दल ने कुल 62 सीटों पर प्रत्याशी उतारे और 4 सीटें जीतने में कामयाब रही. लेकिन आपको हैरानी होगी कि 54 सीटों पर यूकेडी प्रत्याशियों की जमानत जप्त हो गई. इस चुनाव में क्षेत्रीय दल को 5.49% वोट पड़े. साल 2007 में उत्तराखंड क्रांति दल केवल 61 सीटों पर ही प्रत्याशी उतार पाया, इस बार 1 सीट और कम हुई और 3 सीटों पर ही जीत हासिल हो पाई, जबकि 52 सीटों पर जमानत जप्त हो गई. इस बार भी यूकेडी को 5.49% वोट पड़े.
साल 2012 से यूकेडी के रसातल पर जाने का सिलसिला शुरू हुआ. इस बार यूकेडी को 44 विधानसभाओं में ही प्रत्याशी मिल पाए, जबकि इनमें से केवल एक सीट पर ही यूकेडी जीत हासिल कर सकी. उधर, 41 सीटों पर यूकेडी की जमानत जब्त हो गई. इस चुनाव में यूकेडी को केवल 1.93% वोट पड़े. 2017 में तो यूकेडी खात्मे की तरफ ही बढ़ चली. इस साल भाजपा के प्रचंड बहुमत और मोदी लहर में यूकेडी ने 54 प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था और सभी प्रत्याशियों की जमानत जप्त हो गई. इस बार यूकेडी को 0.74% वोट मिल पाए.