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दशहरे के दिन पश्चाताप के लिए दो गांव में होता है गागली युद्ध, जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी

जौनसार के कालसी ब्लॉक क्षेत्र के कुरौली और उदपाल्टा के ग्रामीण दशहरे पर्व पर पाइंता पर्व मनाते हैं. इस युद्ध के जरिए ग्रामीण अपने पापों का पश्चाताप करते हैं. इस परंपरा के पीछे बड़ी ही रोचक कहानी है.

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Published : Oct 7, 2019, 11:47 PM IST

गागली युद्ध.

विकासनगर: 8 अक्टूबर को जहां मैदानी इलाकों में दशहरा पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा. वहीं, जौनसार बाबर में पाइंता पर्व की तैयारियां जोरों पर हैं. इस पर्व में जौनसार के कुरौली और उदपाल्टा गांव के ग्रामीणों के बीच गागली युद्ध होगा. इस युद्ध में हार-जीत का फैसला नहीं होता है. इस पर्व में पश्चाताप को लेकर दोनों गांव के ग्रामीण गागली युद्ध करते हैं. इसके पीछे दो बहनों की कहानी प्रचलित है.

जौनसार के कालसी ब्लॉक क्षेत्र के कुरौली और उदपाल्टा के ग्रामीण दशहरे पर्व पर पाइंता पर्व मनाते हैं. दोनों ही गांव के ग्रामीण अपने गांव के सार्वजनिक स्थल पर इकट्ठे होकर ढोल दमाऊ की थाप पर नाचते हैं. हाथ में गागली के डंठल को लहराते हुए कियाणी देवधार नामक स्थल पर पहुंचते हैं, जहां पर दोनों गांव के ग्रामीणों के बीच युद्ध की शुरुआत होती है. इस पर्व में पहले युद्ध होता है फिर दोनों गांव के ग्रामीण गले मिलकर एक दूसरे को पर्व की बधाई देते हैं. उसके बाद सार्वजनिक स्थल पर ढोल दमाऊ की थाप पर सामूहिक रूप से पारंपरिक नृत्य का दौर चलता है.

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इस पर्व को मनाने के पीछे की कहानी

किवदंती के अनुसार, इस गागली युद्ध की शुरुआत कालसी ब्लॉक के उदपाल्टा गांव से हुई थी, जहां दो बहनें रानी और मुनि कुछ दूर स्थित क्याणी नामक स्थान पर कुएं में पानी भरने गई थी. रानी अचानक कुएं में गिर गई, मुनि ने घर पहुंचकर रानी के कुएं में गिरने की बात कही तो ग्रामीणों ने मुनि पर ही रानी को कुएं में धक्का देने का आरोप लगा दिया. इस बात से खिन्न होकर मुनि ने भी कुएं में छलांग लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर दी. ग्रामीणों को बहुत पछतावा हुआ. इसी घटना को याद कर पाइंता पर्व से 2 दिन पहले मुनि और रानी की मूर्तियों की पूजा होती है. पाइंता पर्व के दिन मूर्तियां कुएं में विसर्जित की जाती हैं. कलंक से बचने के लिए उदपाल्टा व कुरौली के ग्रामीण हर वर्ष पाइंता पर्व का आयोजन कर पश्चाताप करते हैं.

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