उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

त्रिवेंद्र पंवार का UKD के संरक्षक पद से इस्तीफा, चुनाव में हार की ली जिम्मेदारी - Trivendra Panwar resigns from post of UKD custodian

उत्तराखंड क्रांति दल को विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए दल के संरक्षक त्रिवेंद्र पंवार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कहा कि पार्टी को उम्मीद थी कि 3 से 4 सीटें आएंगी. लेकिन जनता ने नकार कर पार्टी को चिंता में डाल दिया है.

Trivendra Panwar
त्रिवेंद्र पंवार

By

Published : Apr 4, 2022, 3:08 PM IST

Updated : Apr 4, 2022, 3:31 PM IST

देहरादूनःजल-जंगल-जमीन की बात करने वाली उत्तराखंड क्रांति दल को इस बार भी विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है. प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे क्षेत्रीय दल यूकेडी को इस बार विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली. ऐसे में हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए यूकेडी के वरिष्ठ नेता त्रिवेंद्र पंवार ने संरक्षक पद से इस्तीफा दे दिया है.

उत्तराखंड क्रांति दल के संरक्षक और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे त्रिवेंद्र पंवार का कहना है कि बीते दिनों संपन्न हुए विधानसभा चुनाव 2022 में उत्तराखंड क्रांति दल को जिस तरह से आमजन ने नकारा है. वह हमारे लिए बहुत ही चिंता की बात है. उन्होंने कहा कि हमें अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद तो नहीं थी, पर निराशाजनक प्रदर्शन की भी उम्मीद नहीं थी.

त्रिवेंद्र पंवार का UKD के संरक्षक पद से इस्तीफा

उन्होंने कहा कि यूकेडी को लगता था कि प्रदेश में दल 3 से 4 सीटें अवश्य जीतेगा और उस प्रदर्शन की बदौलत पार्टी व कार्यकर्ताओं को नई राजनीतिक ताकत मिलेगी. लेकिन विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने हमें नकारा जिसने पूरी पार्टी को चिंता में डाल दिया है. त्रिवेंद्र पंवार का कहना है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के लचर प्रदर्शन के लिए पार्टी नेतृत्व की सामूहिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने उत्तराखंड क्रांति दल के संरक्षक पद त्यागपत्र दे दिया है.
ये भी पढ़ेंः परिवहन मंत्री चंदन राम दास ने किया ISBT का औचक निरीक्षण, बोले- अफसर सुधारें आचरण

त्रिवेंद्र ने भाजपा-कांग्रेस पर साधा निशानाः त्रिवेंद्र पंवार ने कहा कि राज्य में भाजपा-कांग्रेस की ओर से जो भी व्यक्ति मुख्यमंत्री के तौर पर मनोनीत किया जाता है, वह हर निर्णय लेने के लिए दिल्ली स्थित आलाकमान पर निर्भर रहता है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनके पास इतने अधिकार नहीं रहते कि वह अपने मन मुताबिक किसी भी तरह का निर्णय ले सकें. यहां पर चुने विधायक इतने लाचार होते हैं कि पूर्ण बहुमत के बाद भी भाजपा व कांग्रेस के विधायकों को यह अधिकार नहीं होता कि वह अपने विधायक दल के नेता का चुनाव कर सकें. ऐसे में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई भाजपा के 47 विधायक अपने विधायक दल का नेता नहीं चुन सके. इसके लिए उन्हें अपने दिल्ली के नेताओं के आदेशों का इंतजार करना पड़ा.

Last Updated : Apr 4, 2022, 3:31 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details