देहरादून: उत्तराखंड की सियासत में गढ़वाल और कुमांऊ के बीच चली आ रही सियासी वर्चस्व की लड़ाई के चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी है. लेकिन बीजेपी हाईकमान ने तीरथ सिंह रावत को कमान देकर इस लड़ाई को थामने की कोशिश की है.
उत्तराखंड में सांस्कृतिक और भाषाई तौर पर गढ़वाल और कुमाऊं दो रीजन में बंटा हुआ है. प्रदेश की सियासत में दोनों ही क्षेत्रों को राजनीतिक बैंलेस बनाकर चलते हैं. जब एक क्षेत्र का पलड़ा भारी होता है तो दूसरा उस पर आपत्ति जताता है.
उत्तराखंड में तीरथ सरकार आने के बाद राजनीतिक हालात पूरी तरह से बदल गए हैं. तीरथ सिंह रावत की नई टीम के शपथ ग्रहण कार्यक्रम के बाद यह चर्चाएं आम हैं कि अब हाईकमान ने त्रिवेंद्र सिंह रावत से दूरियां बना ली हैं और उत्तराखंड में हाईकमान ने त्रिवेंद्र खेमे को पूरी तरह से बेदखल कर दिया है.
तीरथ सिंह रावत की नई टीम देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को किस कदर हाईकमान ने नजरअंदाज किया है. एक तरफ त्रिवेंद्र सिंह रावत के करीबियों को तीरथ की टीम में जगह नहीं दी गई. वहीं, दूसरी तरफ त्रिवेंद्र के खिलाफ मोर्चा खोलने वालों को सरकार में चेहरा बनाया गया है.
दरअसल तीरथ की टीम में कांग्रेस से आए बागियों को तरजीह मिली है. साथ ही उन लोगों को भी जगह दी गई है, जिन्होंने त्रिवेंद्र के खिलाफ मोर्चा खोला था. हालांकि, इसके बाद भी भाजपा इन राजनीतिक समीकरणों को गलत ठहराकर पार्टी के बचाव में अनुभवी चेहरों को प्राथमिकता दिए जाने की बात रट रही है.