विकास नगर: जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र अपने संस्कृति की अलग पहचान बनाए हुए हैं. यहां के लोग लकड़ी से बने बर्तनों का इस्तेमाल सदियों से करते आए हैं. लेकिन आज के आधुनिकता दौर में यह काष्ठ कला विलुप्त होने की कगार पर है.
वैसे तो जौनसार बाबर की जनजातीय संस्कृति अपने आप में अनूठी है. ऐसे में सदियों से चली आ रही परंपराओं में यहां कि काष्ठ कला भी अपनी एक अलग पहचान रखती है. जिसमें मुख्य तौर पर बनाए गए बर्तन शामिल हैं. जैसे नयारा जिसमें घर की महिलाएं छाछ बनाने का काम करती है तो वहीं, गबुआ जिसमें छाछ को मथने के बाद मक्खन रखा जाता है.
जनजातीय काष्ठ कला के बर्तन विलुप्ति के कगार पर इसके अलावा दही जमाने की लकड़ी की परोटी इस्तेमाल में लाई जाती थी, जिसका स्वाद कुछ अलग ही निराला होता है. लेकिन विडंबना है कि वर्तमान में इस लकड़ी के बर्तनों की जगह आधुनिक धातु के बर्तनों ने ले ली है. इसलिए ना तो अब शिल्पकार इन बर्तनों का निर्माण करते हैं और ना ही सरकार उनकी सुध ले रही है. ऐसे में अब सरकार को इन लकड़ी के बर्तनों को संरक्षित करना चाहिए. ताकि जौनसारी जनजातीय संस्कृति का अस्तित्व बना रहे.
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वहीं, जौनसार बाबर के सामाजिक कार्यकर्ता टीकाराम शाह बताते हैं कि सदियों से जनजातीय लोग काष्ठ से बने बर्तनों का प्रयोग करते आए हैं. जिसमें नयारा, गबुवा,परोटी, दियोट और पाथा शामिल हैं. वहीं, ये विशिष्ट बर्तन जौनसारी संस्कृति की अलग पहचान थी, जोकि अब आधुनिकता के दौर में विलुप्त होने की कगार पर है, शाह ने सरकार से मांग की है कि इस अनूठी काष्ठकला और इन बर्तनों को संरक्षित किया जाना चाहिए.