देहरादून: उत्तराखंड के जंगलों से वैज्ञानिकों ने एक ऐसा मशरूम खोज निकाला है जो कार्बन युक्त प्रदूषण को खत्म करता है. CSIR के केंद्रीय संस्थान IIP देहरादून में बायोटेक्नोलॉजी कन्वर्जन एरिया में शोध कर रहे प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर सुनील कुमार (Principal Scientist Dr Sunil Kumar) और उनकी टीम ने ये मशरूम खोजा है. वैज्ञानिकों ने बताया ये मशरूम अपने आसपास पानी और मिट्टी में मौजूद पॉली आरोमिक हाइड्रो कार्बन (polycyclic aromatic hydrocarbons) यानी इंसानों के लिए बेहद घातक माने जाने वाले कार्बन युक्त प्रदूषण को खत्म करता है. अब वैज्ञानिकों की टीम लैब में इसे लेकर अन्य संभावनाओं को तलाश कर रही है.
क्या होता है पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन:वैसे तो मानव जीवन के लिए कार्बन युक्त हर तरह का प्रदूषण बेहद खतरनाक है, लेकिन खासतौर से अगर हम बात करें पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन की तो यह कार्बन युक्त बेंजीन रिंग का एक बड़ा संग्रह है. इसमें एक नहीं बल्कि बड़ी संख्या में हाइड्रो कार्बन के बेंजीन रिंग होते हैं, जो कि ह्यूमन सेल्स के लिए बेहद खतरनाक होते हैं.
शोधकर्ताओं के मुताबिक अगर इस तरह के कार्बन युक्त पदार्थ का कोई भी मॉलिक्यूल इंसानों के संपर्क में आता है या फिर हमारी फूड चेन में कहीं से आ जाता है तो यह बेहद घातक साबित हो सकता है. यहां तक की अमेरिकन एनवायरमेंटल प्रोटक्शन एजेंसी EPNA ने इस तरह के पॉली एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन के संग्रह को कार्सिनोजेनिक कैटेगरी में रखा है. साथ ही इस बात की चेतावनी दी है कि इस तरह का मॉलिक्यूल यदि हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो यह हमारी जीन में म्यूटेशन कर सकता है. एजेंसी ने स्पष्ट कहा है कि इस तरह का हाइड्रोकार्बन सीधे कैंसर के लिए जिम्मेदार है. इस तरह के हाइड्रो कार्बन से अपंगता और शरीर में कई तरह की विकृति उत्पन्न हो जाती है.
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कहां से आता है पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन: कार्बन युक्त प्रदूषण सबसे ज्यादा पेट्रोलियम पदार्थों से आता है. जहां तक बात पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन की है तो यह पेट्रोलियम इंडस्ट्री के आसपास सबसे ज्यादा मात्रा में देखने को मिलता है. वहीं इसका सबसे बड़ा प्रोडक्शन गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से होता है, जो कि हमारे वातावरण में पहुंचता है. वातावरण से बरसात के दौरान पानी के साथ होते हुए यह जमीन तक पहुंचता है. उसके बाद यह हमारी धरती पर मौजूद रहता है. जहां से ये हमारे खाद्य पदार्थों के संपर्क में आता है. वहीं से इसकी हमारी शरीर में आने की सबसे ज्यादा संभावनाएं होती हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि आज लगातार बढ़ रहे पेट्रोलियम पदार्थों के उपयोग और वातावरण में बढ़ रहे हाइड्रोकार्बन के प्रदूषण के चलते हमारे भविष्य पर इस तरह का बड़ा खतरा मंडरा रहा है.