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पलायन रोकने के लिए कई सरकारों ने पहाड़ पर जमाया डेरा, अब सीएम त्रिवेंद्र पर सबकी नजर

त्रिवेंद्र सरकार ने अब पौड़ी में कैबिनेट के जरिए सरकार की पहाड़ तक पहुंच की मंशा को एक बार फिर दोहराया है. पहाड़ों पर कैबिनेट करने का बहुत ज्यादा फायदा अब तक की सरकारों के लिहाज से तो नहीं हुआ है

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Published : Jul 1, 2019, 11:49 AM IST

पलायन रोकने के लिए कई सरकारों ने पहाड़ पर जमाया डेरा.

देहरादूनः त्रिवेंद्र सरकार ने पौड़ी में पहुंचकर रिवर्स पलायन का जो संदेश देने की कोशिश की है, वह एक सराहनीय कदम कहा जा सकता है, लेकिन उत्तराखंड का पुराना इतिहास बताता है कि ऐसे सराहनीय कदम भविष्य में बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पाए हैं.

उत्तराखंड में पहाड़ पर सरकार की मौजूदगी और इसके जरिए आम लोगों को संदेश देने की कोशिश एक पहल के रूप में तो सराही जा सकती है लेकिन इसके असल परिणाम भविष्य में छुपे होते हैं जो अबतक पिछली सरकारों के बहुत अच्छे नहीं रहे हैं.

पलायन रोकने के लिए कई सरकारों ने पहाड़ पर जमाया डेरा.

उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने अपने सवा दो साल के कार्यकाल में गैरसैंण में विधानसभा सत्र भी आहूत किया और टिहरी झील पर कैबिनेट कर इतिहास भी रचा. त्रिवेंद्र सरकार ने अब पौड़ी में कैबिनेट के जरिए सरकार की पहाड़ तक पहुंच की मंशा को एक बार फिर दोहराया है

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार के इन प्रयासों का भविष्य में कोई फायदा भी होता है. हालांकि इसका जवाब भविष्य के गर्भ में छुपा है लेकिन यदि हम पुरानी सरकारों के इतिहास पर गौर करें तो उत्तराखंड के लिए पहाड़ पर सरकार का पहुंचना कोई नई बात नहीं है.

डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने शुरुआत की थी

उत्तराखंड में राज्य स्थापना के 18 सालों में कई सरकारों ने पहाड़ों पर कुछ घंटों रुककर राज्यवासियों को सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की है. राजधानी देहरादून से बाहर जाकर कैबिनेट करने की यह परंपरा डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने मुख्यमंत्री रहते हुए शुरू की.

पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ने हरिद्वार में कैबिनेट कर कई महत्वपूर्ण फैसले लिए थे. इसके बाद विजय बहुगुणा ने भी गैरसैंण में कैबिनेट कर पहाड़ पर कैबिनेट की परंपरा को शुरू किया. पहाड़ों पर सरकार के पहुंचने से पहाड़वासियों को सरकार के प्रति एक सकारात्मक सोच का संदेश जाने के चलते बाकी मुख्यमंत्रियों ने भी पहाड़ों पर कैबिनेट जारी रखी.

इसमें हरीश रावत ने केदारनाथ में कैबिनेट की. इसके साथ ही उन्होंने अल्मोड़ा जिले में भी कैबिनेट की. हरीश रावत के बाद अब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी पहाड़ों पर सरकार के मौजूद होने का संदेश लोगों को देने की कोशिश की है. त्रिवेंद्र सिंह रावत गैरसैंण, टिहरी झील और अब पौड़ी में भी कैबिनेट कर चुके हैं.

देहरादून से बाहर कैबिनेट करने का लोगों को नहीं मिला खास लाभ

राजधानी देहरादून से सरकारी मशीनरी के पहाड़ तक जाने में करोड़ों रुपए खर्च होते हैं लेकिन करोड़ों खर्च कर भी उत्तराखंड के लोगों को सरकारों के इस फैसले का बहुत ज्यादा लाभ नहीं मिला. पुरानी सरकारों के इतिहास पर नजर दौड़ाये तो राजधानी से बाहर की गईं कैबिनेट में कई निर्णय तो हुए लेकिन इनका बहुत ज्यादा लाभ लोगों को नहीं मिल पाया.
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तमाम सरकारों के पहाड़ों पर कैबिनेट करने के बावजूद आज भी त्रिवेंद्र सरकार को रिवर्स पलायन को लेकर संदेश देने की जरूरत महसूस हो रही है यानी कि पिछली सरकारों के कैबिनेट के फैसले पलायन पर बहुत ज्यादा असर नहीं कर पाए .
पलायन आयोग की रिपोर्ट भी इस बात को साफ जाहिर कर रही है.

हालांकि यह बात भी सही है कि सरकारों के इस तरह पहाड़ों पर जाने से सरकारी मशीनरी में कुछ सक्रियता बढ़ती है और लोगों में भी एक अच्छा संदेश जाता है. सरकार में कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल बताते हैं कि इस तरह कैबिनेट करने से जनता के साथ सरकार का सीधा संवाद जुड़ जाता है और पहाड़ के लोग भी सरकार के साथ खुद को जुड़ा हुआ पाते हैं.

यही नहीं रिवर्स पलायन को लेकर भी सरकार द्वारा लिए गए निर्णय भविष्य में बेहद कारगर साबित होंगे.पहाड़ों पर कैबिनेट करने का बहुत ज्यादा फायदा अब तक की सरकारों के लिहाज से तो नहीं हुआ है

लेकिन त्रिवेंद्र सरकार यदि पिछले इतिहास को न दोहराते हुए पहाड़ के लिए रिवर्स पलायन को लेकर कुछ हद तक भी संदेश दे पाती है या कोई बड़ी नीति तैयार कर पाती है तो यह त्रिवेंद्र सरकार का एक बड़ा कदम होगा.

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