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बीमार और बूढ़े बाघों के दुश्मन बने उन्हीं के वंशज, WII बताएगी कैसे रुकेगा कॉर्बेट में वन्य जीव-मानव संघर्ष

बाघों के लिए कॉर्बेट नेशनल पार्क दुनियाभर में सबसे मुफीद जगह है. यही वजह है कि घनत्व के लिहाज से कॉर्बेट में आज बाघों की सबसे ज्यादा संख्या है. हालाकि, अब इसकी यही खासियत पार्क में मौजूद बूढ़े और बीमार बाघों को कॉर्बेट से बेदखल कर रही है. यही नहीं, नई परिस्थितियों ने इंसानों के लिए भी बड़ा खतरा पैदा कर दिया है. क्या है वह खतरा और क्यों कॉर्बेट से बाहर हो रहे हैं बूढ़े और बीमार बाघ? देखिए स्पेशल रिपोर्ट.

Corbett Park Tiger Story
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व

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Published : Aug 2, 2022, 4:07 PM IST

देहरादून:वन्य जीवों में टाइगर अपनी अलग जीवन शैली और ताकत के लिए जाना जाता है. एक राजा की तरह सबसे बेहतर भोजन और बड़े इलाके की चाहत टाइगर में भी होती है. बाघ ज्यादातर अकेले ही रहते हैं और अपने क्षेत्र विशेष में दूसरे बाघों का दखल पसंद नहीं करते हैं. जैसे किसी कमजोर राजा को अपनी राज्य से हाथ धोना पड़ता है. उसी तरह बाघ के कमजोर होने पर उसे भी अपने इलाके से बेदखल होना पड़ता है.

ऐसा ही कुछ कॉर्बेट नेशनल पार्क (Corbett Tiger Reserve) में भी देखने को मिल रहा है. दरअसल, कॉर्बेट में बाघों की बढ़ती संख्या के चलते जवान और बलशाली बाघ अपनी ताकत की बदौलत बूढ़े और बीमार बाघों को कॉर्बेट छोड़ने पर मजबूर कर रहे हैं. कॉर्बेट में यही संघर्ष इंसानों और बाघों के बीच परेशानी खड़ा कर रहा है.

बूढ़े बाघों से जवान बाघों की दबंगई

इस साल हुई सबसे ज्यादा घटनाएं:साल 2020 में बाघ के हमले में किसी ने जान नहीं गंवाई लेकिन 2021 में दो, तो इस साल 7 महीनों में 11 लोगों की जान गई. साल 2020 में बाघ के हमले में 11 घायल हुए, जबकि साल 2021 में 5 और इस साल 7 महीने में 4 लोग घायल हुए हैं. उत्तराखंड में राज्य स्थापना से अब तक बाघों के आपसी संघर्ष में 31 बाघों ने जान गंवाई है. कॉर्बेट नेशनल पार्क (Corbett National park) में करीब 250 बाघों की मौजूदगी है.

उत्तराखंड बाघों की संख्या के लिहाज से देश में तीसरे स्थान पर है. प्रदेश में साल 2008 में हुई गणना के अनुसार करीब 442 बाघ हैं, जिनमें करीब आधे से ज्यादा बाघ तो अकेले कॉर्बेट में ही हैं. माना जा रहा है कि कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों की संख्या वहां के क्षेत्रफल के लिहाज से बेहद ज्यादा हो चुकी है.

वन विभाग के मुखिया विनोद सिंघल (Chief Conservator of Forests Vinod Singhal) कहते हैं कि इंसानों का दखल लगातार जंगलों में बढ़ रहा है. इससे संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ रही हैं. वह बताते हैं कि एक बाघ को अध्ययन के अनुसार सामान्यत 40 से 50 वर्ग किलोमीटर का एरिया चाहिए, जबकि कॉर्बेट में फिलहाल 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 10 बाघ रिकॉर्ड किए गए हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो एक बाघ को करीब 10 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र ही मिल पा रहा है.

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और बाघ

बूढ़े व बीमार बाघ बने खतरा:कॉर्बेट की स्थापना बाघों के संरक्षण के लिए 1936 में की गई थी, जिसका कुल क्षेत्रफल 1288.35 वर्ग किलोमीटर है. कॉर्बेट पार्क में इंसानी दखल को इस बात से समझा जा सकता है कि यहां हर साल करीब 2 लाख से ज्यादा वन्य जीव प्रेमी पहुंचते हैं. कॉर्बेट में 250 बाघों के अलावा, 580 प्रजाति के पक्षी, हाथी, भालू, हिरण, चीतल और सांभर समेत कई वन्यजीवों की भारी संख्या है. बूढ़े और बीमार बाघ कॉर्बेट से बाहर होने के बाद इंसानी बस्तियों या रास्तों में पहुंचकर इंसानों पर हमला कर रहे हैं. बाघ ने जुलाई महीने में ही 03 लोगों को निवाला बनाया है.

कॉर्बेट में बाघों की बढ़ती संख्या वन महकमे के लिए खुशी की बात तो है लेकिन उससे ज्यादा चुनौतीपूर्ण विषय भी. क्योंकि अब पार्क में बाघ क्षेत्रफल के लिहाज से कुछ अधिक महसूस किए जाने लगे हैं. तभी तो राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में कॉर्बेट नेशनल पार्क के बाघों को लेकर कैपेसिटी पर अध्ययन करने का फैसला लिया गया है.

ये तय हुआ है कि भारतीय वन्यजीव संस्थान (wildlife institute of India) से कॉर्बेट नेशनल पार्क के बाघों को लेकर कैपेसिटी का अध्ययन करवाया जाए, ताकि उसी आधार पर भविष्य में बाघों को लेकर कॉर्बेट में रणनीति तैयार की जा सके. वैसे पहले ही वन महकमा कॉर्बेट से बाघों को शिफ्ट करने का काम भी शुरू कर चुका है. इस कड़ी में राजाजी नेशनल पार्क में अब तक दो बाघों को कॉर्बेट से शिफ्ट किया जा चुका है, जबकि यहां पर कुल 5 बाघ लाने की योजना है.

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