देहरादून: उत्तराखंड की लोक कला और संस्कृति के कलाकारों को राष्ट्रीय मंच पर एक बड़ा सम्मान मिलने जा रहा है. प्रदेश की तीन बड़ी हस्तियों को राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा, जिसकी घोषणा कर दी गई है. राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार पाने वालो में प्रो डीआर पुरोहित, रामलाल भट्ट और ललित पोखिरया का नाम शामिल है. वहीं, इसके अलावा इस साल उत्तराखंड और चार हस्तियों को संगीत नाटक अकादमी अमृत अवॉर्ड के लिए चुना गया है. संगीत नाटक अकादमी अमृत अवॉर्ड 2022 के लिए जुगल किशोर पेटशाली, भैरव दत्त तिवारी, जगदीश ढौंडियाल और नारायण सिंह का नाम शामिल हैं.
राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित होने जा रहे प्रो डीआर पुरोहित हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में कला निष्पादन केंद्र के संस्थापक है. प्रो. डीआर पुरोहित वर्तमान समय में गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र में प्रोफेसर के रूप में कार्य कर रहे हैं. अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर रहे पुरोहित ने ही साल 2006 में इस विभाग की स्थापना की थी, जिसके बाद से ही पुरोहित लगातार लोक कला व संस्कृति के संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं.
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कठपुतली कलाकार रामलाल को मिलेगा सम्मान: इसके साथ ही देहरादून के ठाकुरपुर के रहने वाले कलाकार रामलाल भट्ट को लोक संगीत व पपेट्री के जरिये पर्यावरण, शिक्षा व स्कूली बच्चों जागरूक करने के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया जाएगा. कठपुतली कलाकार रामलाल भट्ट करीब 40 वर्षों से कठपुतलियों को लेकर नए प्रयोग कर रहे हैं.
रामलाल भट्ट ने 12 वर्ष की उम्र से ही कठपुतली का खेल दिखाना शुरू कर दिया था. अपने पिता से ही उन्हें इसकी शिक्षा मिली. रामलाल भट्ट अपनी चौथी पीढ़ी में भी इस विरासत को संजोए हुए है. वह उत्तराखंड के दूर-दराज सहित अन्य इलाकों में कठपुतली के जरिये पर्यावरण, शिक्षा सहित अन्य विषयों को लेकर कठपुतली शो किए हैं.
निर्देशन के क्षेत्र में ललित को मिलेगा पुरस्कार:वहीं, पिथौरागढ़ के ललित सिंह पोखिरया को निर्देशन के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा जाएगा. रंगमंच की दुनिया को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले ललित सिंह पोखिरया नाटक लेखन के साथ ही अभिनय व निर्देशन के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके हैं. रंगमंच में रूचि के चलते उनका चयन साल 1984 में भारतेंदु नाट्य अकादमी लखनऊ में हो गया था. तब से ही वो लखनऊ में रह रहे हैं.
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पुरोहित की पहल पर गढ़वाल केंद्रीय यूनिवर्सिटी में बनाया गया अलग विभाग: ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए प्रोफेसर डीआर पुरोहित ने बताया कि वो साल 1985 से लगातार लोक कलाएं, सांस्कृतिक परंपराएं और संगीत परंपराओ के साथ ही प्रदेश के रंगमंच पर कार्य किया हैं. प्रो डीआर पुरोहित ने रंगमंच में ही पीएचडी की हैं, जिससे उन्हें तमाम परंपराओं की जानकारियां मिली. यही नहीं 30 से 40 विधाओं को डॉक्यूमेंट किया. साथ ही तमाम रिसर्च के बाद 30 नाटक भी लिखे, जिसमे से 4 नाटक नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में भी मंचित हुए हैं. इसके साथ ही तमाम सांस्कृतिक विरासतों को संस्थागत रूप देने के लिए गढ़वाल केंद्रीय यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर फोग परफॉर्मिंग आर्ट्स एंड कल्चर विभाग बनाया गया.
आज भी लोग बढ़-चढ़कर रंगमंच का उठाते हैं लुफ्त: प्रो डीआर पुरोहित ने बताया कि आज भी रंगमंच का क्रेज लोगों में मौजूद है. यही नहीं, रंगमंच और नाटकों को लोग आज भी पसंद करते हैं. वर्तमान समय में तमाम मूवीस शॉर्ट फिल्म्स आसानी से लोगों को उपलब्ध हो जाते हैं, लेकिन जब देश के बड़े शहरों के साथ ही विदेशों में रंगमंच के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं तो उन कार्यक्रमों में भी लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं. लिहाजा, राज्य सरकार को भी लोक रंगमंच और नाटकों को बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि हमारी जो पारंपरिक विरासत है उसको और आगे बढ़ाया जा सके.
प्राइमरी और सेकेंडरी एजुकेशन में शामिल किया जाए रंगमंच:प्रोफेसर डीआर पुरोहित का कहना है कि राज्य और केंद्र सरकार को चाहिए कि वह रंगमंच को बढ़ावा दें. इसके लिए सरकार सेकेंडरी एजुकेशन के पाठ्यक्रम में रंगमंच विषय को भी शामिल करें, जिससे रंगमंच और आगे बढ़ेगा. इसके साथ ही वर्तमान में जो तमाम रंगमंच कलाकार हैं, वह किस स्तर पर काम करें इसके लिए सरकार ने अभी तक कोई बड़ा पहल नहीं किया है. अगर सरकार प्राइमरी और सेकेंडरी एजुकेशन में रंगमंच को शामिल करती है तो ऐसे में रंगमंच कलाकारों को काम करने का एक माध्यम भी प्राप्त होगा.