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राज्य स्थापना दिवस: प्रदेश की पांच विभूतियों को मिला पहला 'उत्तराखंड गौरव सम्मान'

धामी सरकार ने पहली बार राज्य स्थापना दिवस के मौके पर उत्तराखंड गौरव सम्मान की शुरुआत की है. जिसके तहत प्रदेश की विभूतियों को पुरस्कार से नवाजा गया है.

उत्तराखंड गौरव पुरस्कार
उत्तराखंड गौरव पुरस्कार

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Published : Nov 9, 2021, 10:06 PM IST

Updated : Nov 9, 2021, 10:48 PM IST

देहरादून:उत्तराखंड सरकार ने राज्य स्थापना दिवस के मौके पर पहले उत्तराखंड गौरव सम्मान पुरस्कार का वितरण किया है. सरकार ने चार अलग-अलग क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए पांच विभूतियों को पुरस्कार दिया है. उत्तराखंड सरकार ने समाज सेवा और लोक सेवा के लिए उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी को मरणोपरांत उत्तराखंड गौरव पुरस्कार दिया है.

इसके साथ ही पर्यावरण के क्षेत्र में डॉ. अनिल जोशी, साहसिक खेल के लिए बछेंद्री पाल, संस्कृति के लिए लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी को और साहित्य के क्षेत्र में रस्किन बॉन्ड को पुरस्कार दिया गया है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ट्वीट करते हुए उत्तराखंड गौरव पुरस्कार से सम्मानित सभी हस्तियों को बधाई दी है.

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कौन हैं डॉक्टर अनिल जोशी: अनिल जोशी पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. डॉक्टर जोशी ने हिमालयन पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संस्थान (हेस्को) की स्थापना की है. पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें वर्ष 2006 में पद्मश्री सम्मान प्राप्त हुआ. पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें पद्मश्री सम्मान प्रदान किया था. उन्हें जमनालाल बजाज अवॉर्ड भी मिला है. इसके अलावा उन्हें अशोका फेलोशिप, द वीक मैन ऑफ द एयर और आईएससी जवाहर लाल नेहरू अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है.

कोटद्वार में हुआ जन्म: अनिल जोशी का जन्म स्थान पौड़ी जनपद के कोटद्वार में हुआ. उन्होंने स्नातकोत्तर की डिग्री बॉटनी (वनस्पति विज्ञान) में हासिल की और डाक्टरेट की उपाधि इकोलॉजी में ली. उन्होंने अपने करियर की शुरूआत 1979 में कोटद्वार डिग्री कॉलेज में बतौर प्राध्यापक की. इसके बाद हेस्को के नाम से एनजीओ बनाया. जोशी ने संस्था के माध्यम से पर्यावरण के संरक्षण और विकास के साथ कृषि क्षेत्र में शोध और अध्ययन किए.

कौन हैं बछेंद्री पाल: पाल का जन्म 24 मई 1954 में उत्तरकाशी में हुआ. महज 12 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार पर्वतारोहण किया था. बताया यह भी जाता है कि एक स्कूल पिकनिक के दौरान उन्होंने 13,123 फीट की ऊंचाई के लिए प्रयास किया था.

बछेंद्री को 1984 में एवरेस्ट के लिए भारत के चौथे अभियान एवरेस्ट 84 के लिए चुना गया. इस अभियान में 6 महिलाएं और 11 पुरुष थे. पाल अकेली महिला थीं जो ऊपर तक पहुंच पाई. वह 23 मई 1984 को दोपहर एक बजे चोटी पर पहुंची. 1990 में एवरेस्ट चढ़ने वाली भारत की पहली महिला पर्वतारोही के तौर पर उनका नाम गिनीज़ बुक में शामिल किया गया.

पाल का जन्म एक ग्रामीण परिवार में हुआ है. उनके छह भाई बहन हैं. जब उन्होंने पर्वतारोही बनने का फैसला किया तब उन्हें अपने परिवार से काफी विरोध का सामना करना पड़ा. वह चाहते थे कि पाल स्कूल शिक्षक बने. मई 1984 में जब पाल और उनके साथियों ने एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की तब शुरूआत में ही उनकी टीम पर मुसीबत का पहाड़ गिरा. एक बर्फ का ढेर उनके कैंप पर जा गिरा. इसके बाद उनके समूह के आधे से ज्यादा लोगों को चोटिल होने की वजह से अभियान छोड़ना पड़ा. पाल और उनके बचे हुए साथियों ने यह अभियान पूरा किया.

रस्किन बॉन्ड का जीवन: अंग्रेजी भाषा के, बेहतरीन लेखक रस्किन बॉन्ड का जन्म 19 मई, 1934 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था. उनके पिता रॉयल एयर फोर्स में थे. जब वह चार साल के थे तब उनके माता-पिता में तलाक हो गया था जिसके बाद उनकी मां ने एक हिन्दू से शादी कर ली थी. बॉन्ड का बचपन जामनगर, शिमला में बीता. सन 1944 में पिता की अचानक मृत्यु के बाद बॉन्ड देहरादून में अपनी दादी के साथ रहने लगे. उस समय उनकी उम्र तकरीबन दस साल होगी.

रस्किन बॉन्ड ने अपनी पढ़ाई शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पूरी की. इसके बाद वे लंदन चले गये. बचपन से ही लिखने का शौक होने की वजह से बॉन्ड कॉलेज तक आते-आते एक मंझे हुए लेखक बन गए. तब उन्होंने कई अवॉर्ड भी जीते थे. उन्होंने 17 साल की उम्र में पहला उपन्यास ‘रूम ऑन द रूफ’ (Room On The Roof) लिखी. इसके लिये उन्हें 1957 में जॉन लिवेलिन् राइस पुरस्कार (John Llewellyn Rhys prize) से सम्मानित किया गया. यह पुरस्कार 30 साल से कम उम्र के कॉमनवेल्थ नागरिक को इंग्लैंड में प्रकाशित अंग्रेजी लेखन के लिये दिया जाता है.

कौन है नरेंद्र नेगी: नरेंद्र सिंह नेगी का जन्म 12 अगस्त 1949 में पौड़ी जिले में हुआ. उन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई के बाद अपना करियर भी पौड़ी से ही शुरू किया. पौड़ी में बिखौत यानी बैसाखी के दिन बाजुबंद और झुमैलो जैसे लोकगीत गाए जाते हैं, वहीं से उन्हें गाने की प्रेरणा मिली और उन्हें देखकर ही वह बड़े हुए.

कहा जाता है कि अगर आप उत्तराखण्ड और वहां के लोग, समाज, जीवनशैली, संस्कृति और राजनीति आदि के बारे में जानना चाहते हो तो, या तो आप किसी महान-विद्वान की पुस्तक पढ लो या फिर नरेन्द्र सिंह नेगी के गाने/गीत सुन लो. उनकी श्री नेगी नामक संस्था उत्तराखण्ड कलाकारो के लिए एक लोकप्रिय संस्थाओं में से एक है. नेगी सिर्फ एक मनोरंजन-कार ही नहीं बल्कि एक कलाकार, संगीतकार और कवि है, जो कि अपने परिवेश को लेकर काफी भावुक व संवेदनशील है.

Last Updated : Nov 9, 2021, 10:48 PM IST

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