देहरादूनः वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के साथ एक बार फिर हालात पिछले साल की तरह ही बनते जा रहे हैं. कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर प्रदेश भर में लागू कोरोना कर्फ्यू से तमाम वर्ग के व्यापारियों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. तो वहीं, एक तबका ऐसा भी है, जिसका पूरा व्यापार पिछले डेढ़ महीने से ठप पड़ा है. जी हां हम बात कर रहे हैं मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की, जो कोरोना की दूसरी लहर से दयनीय स्थिति में जी रहे हैं. क्योंकि इन कुम्हारों का पिछले डेढ़ महीने से चाक नहीं घूमा है.
कुम्हारों की स्थिति जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम देहरादून के चकराता रोड स्थित कुम्हार मंडी पहुंची. कुम्हार बस्ती में लगभग 700 परिवार रहते हैं, जो पहले कुम्हार का काम करते थे. लेकिन समय के साथ 500 से ज्यादा परिवारों ने इस काम को छोड़ दिया है. इसके अलावा 200 परिवार ऐसे हैं जो त्यौहारों और पर्वों पर मिट्टी के दीये बनाने का काम करते हैं. लेकिन वर्तमान समय में सिर्फ 20 परिवार ही ऐसे हैं जो सालों से इसी काम से जुड़े है. जिनका, घर परिवार इसी चाक से चलता है.
कुम्हारों द्वारा पुस्तैनी काम छोड़ने की एक वजह ये भी...
- देहरादून में कुम्हारों को मिट्टी उपलब्ध नहीं हो पाती.
- जिला प्रशासन की ओर से मिट्टी उठाने के लिए डोईवाला स्थित एक जगह चयनित की गई है.
- कुम्हार यहां से रॉयल्टी कटवा कर मिट्टी उठा सकते हैं.
- इसके लिए कुम्हारों को जिला खनन अधिकारी से परमिशन लेनी होती है.
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कर्ज में डूबे छोटे लाल
ईटीवी भारत से बात करते हुए छोटे लाल प्रजापति बताते हैं कि इस समय उनकी आर्थिक स्थिति बिल्कुल ठीक नहीं है. वह कोरोना के चलते कर्ज में डूब गए हैं. उन्होंने पिछले डेढ़ महीने से चाक नहीं चलाया है. क्योंकि पहले से ही रखे सामानों की बिक्री नहीं हो रही है. ऐसे में उनके सामने एक बड़ी मुसीबत यह है कि जो माल उन्होंने चंडीगढ़, दिल्ली और गुजरात से मंगाया है उस माल का अभी हजारों रुपये बकाया है. ऐसे में वो बकाया कैसे देंगे.
छोटेलाल बताते हैं कि पिछले साल कोरोना संक्रमण के दौरान लॉकडाउन के समय भी ऐसे हालात नहीं थे. लॉकडाउन के बावजूद भी अच्छी खासी बिक्री हो रही थी. पिछले साल लॉकडाउन के दौरान 8-10 हजार रुपये की हर महीने बिक्री हो जाती थी. लेकिन इस साल धंधा पूरी तरह से ठप पड़ा है. लिहाजा वह वर्तमान समय में 5 प्रतिशत ब्याज पर लोन लेकर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं.