उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष देहरादून(उत्तराखंड):देवभूमि उत्तराखंड में लगातार बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में अब तक कई लोग काल के गाल में समा चुके हैं. सरकार और वन विभाग की लाख कोशिशों के बाद भी मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामलों पर रोक नहीं लगाई जा सकी है. जिसके कारण चिंताएं बढ़ गई है. बात अगर बीते कुछ दिनों की करें तो उत्तराखंड के पहाड़ी से लेकर मैदानी इलाकों में मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं देखने को मिली है. गुलदार, बाघ, हाथी, भालू, बंदर सबसे अधिक रिहायशी इलाकों की ओर पहुंच रहे हैं. इसके पीछे जानकार अलग-अलग वजह बता रहे हैं.
नैनीताल में बाघ बना सिरदर्द:उत्तराखंड में ठंड की वजह से लोग वैसे ही परेशान हैं. ऊपर से जंगली जानवरों ने उनका जीना दुश्वार कर दिया है. राजधानी देहरादून से लेकर कुमाऊं के नैनीताल, उधम सिंह नगर, तराई के हरिद्वार और ऊपरी इलाकों में लगातार जानवरों के हमले की खबरें सुनाई दे रही हैं. आलम यह है कि जानवरों के हमलों की वजह से कई इलाकों में स्कूलों को बंद करना पड़ रहा है. कामकाजी लोग घर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. सबसे बुरा हाल नैनीताल जिले का है. नैनीताल में एक के बाद एक तीन लोगों को बाघ अपना शिकार बना चुका है. हालांकि इस क्षेत्र में एक बाघ को पकड़ लिया गया है. जिससे बाद भी लोगों का डर कम नहीं हो रहा है.
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पकड़ा गया बाघ, कन्फ्यूजन बरकरार!: नैनीताल के भीमताल में आदमखोर बाघ को पकड़ने के लिए युद्ध स्तर पर ऑपरेशन चलाया गया. जिसके बाद आदमखोर बाघ को पकड़ा गया. इस इलाके में बीते दो महीने में कई बार बाघ ने लोगों को घायल किया. दिसंबर महीने में ही तीन महिलाओं सहित कई जानवरों को यह बाघ अपना शिकार बन चुका है. इस आदमखोर बाघ के डर से लोगों ने घरों से बाहर निकलना भी बंद कर दिया है. जिलाधिकारी ने कई गांवों में स्कूल और सरकारी दफ्तरों को भी बंद करने के आदेश दिये हैं. वन विभाग की एक बड़ी टीम दिन रात इसे पकड़ने में लगी हुई है. अभी इस इलाके में एक बाघ पकड़ा गया है. जिसे रेस्क्यू सेंटर में भेजा गया है.
बढ़ रही मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनायें सर्दियों में रिहायशी इलाकों में पहुंच रहे जंगली जानवर: कुमाऊं के नैनीताल, उधम सिंह नगर और पौड़ी गढ़वाल जैसे इलाकों में ठंड के मौसम में लगातार जानवर रिहायशी इलाकों का रुख कर रहे हैं. पौड़ी गढ़वाल में भी लगातार हाथी हमलावर हो रहे हैं. कोटद्वार और आसपास के इलाकों में हाथी आये दिन सड़कों पर लोगों को दौड़ा रहे हैं. ठंड के मौसम में तराई के इलाकों में गन्ने के खेत हो या गांव देहात की सड़कें, सभी जगहों पर हाथियों का कब्जा है. ठंड में कोहरे के कारण हाथियों की आवाजाही भी नहीं दिख रही है. जिससे परेशानियां बढ़ रही हैं.
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26 दिसंबर को राजधानी देहरादून में आंगन में खेल रहे बच्चे को एक बाघ उठा कर ले गया. इस घटना से अंदाजा लगाया जा सकता है कि रिहायशी इलाकों में किस तरह से यह जानवर लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं. देहरादून के सिंगली गांव में इस बच्चे को जब बाघ उठाकर ले गया तब आसपास के लोगों ने हल्ला किया. हरिद्वार में भी ऐसा ही कुछ मामला सामने आया. हरिद्वार में रोजाना सुबह और शाम के वक्त लगभग 10 गांव के लोग डर-डर कर अपने घरों से निकल रहे हैं. मिसरपुर,फेरूपुर, सीतापुर,श्यामपुर सहित लगभग 10 गांवों के लोग हाथी के आतंक से परेशान हैं. यहां शाम 6 बजते ही लोग घरों में छुप जाते हैं. इसके बाद गलियों, सड़कों, बाजार में अक्सर हाथियों का झुंड दिखाई देता है. हरिद्वार के मनसा देवी मार्ग बिल्केश्वर रोड के आसपास हाथी और हिरण सहित सांभर और अन्य जानवर कूड़े में खाना तलाशते भी दिखते हैं. इन इलाकों में रोजाना जानवर जंगलों से निकल कर रिहायशी इलाके में घूमते हैं.
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सर्दियों में बढ़ता है जानवरों का मेटाबॉलिज्म: उत्तराखंड में बढ़ती मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं सर्दियों के मौसम में इतनी तेज क्यों हो रही हैं? इस सवाल को लेकर ईटीवी भारत ने राजाजी नेशनल पार्क के पूर्व निदेशक सनातन सोनकर से बातचीत की. जिसमें सनातन सोनकर ने बताया सर्दियों के मौसम में जिस तरह से इंसान के खाने-पीने की कैपेसिटी बढ़ जाती है इस तरह से जानवरों में भी बदलाव होते हैं. मौजूदा समय में जानवरों का मेटाबॉलिज्म बढ़ जाता है. जिस वजह से वह जंगलों में अपनी भूख शांत नहीं कर पाते. जिस वहज से खाने की तलाश में जंगली जानवर शहर या गांवों की ओर रुख करते हैं. उन्होंने कहा कई बार जानवरों को आसानी से खाना मिल जाता है. तब वे हिंसक नहीं होते, मगर कई बार ऐसी घटनाएं होती हैं जब उनका मानव के साथ संघर्ष हो जाता है. इसके बाद उन्होंने कहा हमारे जंगलों में लेपर्ड की संख्या लगातार बढ़ रही है. जिससे हम बेहद खुश है, मगग हमारे लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि हमारे पास जंगल बेहद सीमित हैं. एक टाइगर को रहने के लिए लगभग 10 स्क्वायर किलोमीटर का क्षेत्र चाहिए. इसी तरह से हाथी और अन्य जानवर का भी विचारण होता है, मगर हम इन बातों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं.
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जंगलों के बाहर कूड़े के ढेंरों पर खाने की तलाश: सनातन सोनकर ने कहा उत्तराखंड के उत्तरकाशी, श्रीनगर, पौड़ी, कोटद्वार, देहरादून या फिर हरिद्वार की बात करें तो जंगलों के आसपास इंसानों ने कूड़े के ढेर खड़े कर दिए हैं. अब इन कूड़े के ढ़ेंरों पर कुत्ते बैठे दिखते हैं. वहीं, खाने-पीने के समान फेंक जाते हैं. इन कुत्तों का शिकार करने के लिए जंगली जानवर, जंगलों से नीचे उतर आते हैं. जिसके कारण इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. सनातन सोनकर ने कहा जब वे रिटायर्ड हो रहे थे तब राजाजजी में मात्र 165 हाथियों के रहने या विचरण की व्यवस्था थी. आज वहां 300 से अधिक हाथी हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जंगल में क्या हालात होंगे. उन्होंने कहा छोटे शाकाहारी जानवरों की संख्या भी बेहद कम हो गई है. पहले आसानी से जानवरों को शिकार मिल जाता था. कक्क्ड़, खरगोश,हिरण,जंगली मुर्गा की संख्या कम हो गई है. जिसके कारण, टाइगर, बाघ को खाने की तलाश में रिहायशी इलाकों की ओर रुख करना पड़ रहा है.
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उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष अक्सर होता रहता है. सरकारी आंकड़ें भी इस बात की तस्दीक करते हैं. राज्य में जंगली जानवरों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है. सरकारी आंकड़े बताते हैं कि बीते 23 सालों में मानव-वन्यजीव संघर्ष में 1,115 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. यह आंकड़े साल 2023 अक्टूबर तक के हैं. नवंबर और दिसंबर की बात करें तो लगभग 7 लोग अब तक जंगली जानवरों का शिकार हुये हैं. 23 सालों में 5,451 बार लोगों पर जानवरों ने हमला किया है. उत्तराखंड में लेपर्ड के हमलों में 515 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. हाथी की हमलों में 212 लोगों की जान गई वहै. बाघ के हमलों में 79 लोगों की जान गई है.