देहरादून: देश के अन्य हिस्सों की तरह उत्तराखंड में भी सूखती जलधाराएं चिंता का सबब बनने लगी हैं. वर्ष 2018 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले डेढ़ सौ सालों में उत्तराखंड में 360 जलधाराओं में 300 या तो सूख चुकी हैं, या फिर सूखने के कगार पर हैं. न सिर्फ ग्लेशियरों से निकलने वाली जलधाराएं, बल्कि नदियों को जीवन देने वाले प्राकृतिक जलस्रोत भी सूख रहे हैं.
उत्तराखंड में सिंचाई के नहर और तालाब जो कभी लोगों को पानी उपलब्ध कराने के मुख्य स्रोत थे. वह औद्योगिक इकाइयों के चलते तेजी से प्रदूषित हो रहे हैं. प्रदेश के तमाम टैंक और तालाब ऐसे भी हैं, जो प्रदूषण के चलते गंदे नाले में तब्दील हो गए हैं. उत्तराखंड में मौजूदा समय में 3005 नहरें, 1686 नलकूप और 245 लघु डाल नहरें मौजूद हैं. जो गंदगी की वजह से खत्म होने के कगार पर पहुंच गए हैं.
उत्तराखंड में वाटर पॉलिसी
सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता मुकेश मोहन ने बताया कि प्रदेश के जो नेचुरल वाटर रिसोर्सेज हैं, उन्हें संरक्षित किया जाए. इसके लिए पिछले साल वाटर पॉलिसी भी बनाई गई थी. इसके लिए प्रदेश के कई झीलें बनाने का डीपीआर बनाया जा चुका है. क्योंकि अगर झीलों में पानी रहेगी तो इससे पानी का संरक्षण होगा. इसके साथ ही नदियों को संरक्षित करने की कवायद में भी काम किया जा रहा है. नदियों को संरक्षित करने के लिए पेड़ लगाने, ट्रेंचेज बनाने, गुल बनाने काम किया जा रहा है.
नेचुरल स्प्रिंग होंगे पुनर्जीवित
उत्तराखंड के नेचुरल स्प्रिंग्स के अध्ययन कराने के लिए सर्वे ऑफ इंडिया से प्रपोजल भी लिया गया है. जिसमे टिहरी जिले के नेचुरल वाटर रिसोर्सेस का सर्वे केंद्र सरकार करा रही है. जिसमें सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड और सर्वे ऑफ इंडिया की मदद से अध्ययन कराया जा रहा है. बाकी इससे अलग जिलों के लिए 30 करोड़ का पैकेज भी केंद्र सरकार ने दिया है. जिस पर अध्ययन कराने के लिए नेचुरल स्प्रिंग की जानकारी एकत्र की जाएगी और फिर उसका अध्ययन किया जाएगा. अध्ययन के रिजल्ट से उन्हें बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जा सकें. जैसे ही सभी स्प्रिंग्स की स्टडी रिपोर्ट आ जाएगी, उसके बाद जिलेवार प्रपोजल तैयार किया जाएगा.