उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

मरकर भी जिंदा हैं अपनी कालजयी रचनाओं से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान - सुभद्रा कुमारी चौहान न्यूज

महान कवयित्रि सुभद्रा कुमारी चौहान का जबलपुर से गहरा नाता था. यहां आज भी उनकी यादें लोगों के जहन में ताजा है. उनके परपोते ईशान चौहान उनकी कविताओं और लेखों का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं, ताकि सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएं हर वर्ग तक पहुंच सके.

सुभद्रा कुमारी चौहान का जबलपुर से गहरा नाता.

By

Published : Nov 11, 2019, 9:26 AM IST

जबलपुर। बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी. वीरांगना लक्ष्मीबाई के जीवन पर लिखी ये पंक्तियां आज भी लोगों के जेहन में धड़कन की तरह मौजूद हैं. गुलामी की बेड़ियां तोड़ने के लिए हर भारतवासी के खून में क्रांति का संचार करने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान भले ही दशकों पहले दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं, लेकिन आज भी उनकी मौजूदगी जगह-जगह महसूस की जा सकती है. मध्यप्रदेश की संस्कारधानी से भी उनका गहरा नाता रहा, जहां की गलियों में आज भी उनकी मौजूदगी का एहसास होता है.

सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म भले ही इलाहाबाद के निहालपुर गांव में हुआ था, लेकिन जबलपुर को ही उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया, यहीं पर उन्होंने पहली बार आजादी के लिए बेड़ियां पहनी थी. सुभद्रा कुमारी चौहान की तीसरी पीढ़ी आज भी उनकी यादों को संजोए हुए है. उनके पोते का बेटा ईशान चौहान उनकी कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद कर रहा है, ताकि समाज के हर वर्ग को उनकी कालजयी रचनाओं की जानकारी मिल सके.

यह भी पढ़ें-बेरीनाग: 5 साल के मासूम को बनाया निवाला, ग्रामीणों में आक्रोश

जबलपुर के राइट टाउन में बना सुभद्रा कुमारी चौहान का ये घर आज भी उनकी महान दार्शनिक क्षमता और उनके उद्भुत साहस का एहसास दिलाता है. वीर रस से भरी उनकी कविताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ ऐसा विद्रोह किया कि उन्हें उल्टे पांव भागना पड़ा. हते हैं महान इंसान जहां भी जाता है, अपनी छाप छोड़ जाता है. सुभद्रा कुमारी चौहान में भी यही अद्भुत कला थी. जबलपुर में आज भी उनकी यादें जिंदा हैं. एक तरफ जहां उनके पर पोते उनकी कविताओं को अंग्रेजी में अनुवाद कर लोगों तक पहुंचाने में लगे हैं. वहीं दूसरी तरफ ये बच्चे इस महान कवियत्री की महान रचना को बचाए रखने में जुटे हैं.

देश भर में अपनी कविताओं के माध्यम से क्रांति की ज्वाला जलाने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान अपनी अंतिम सास तक जबलपुर में ही रही. आजादी के बाद वे जबलपुर से विधायक चुनी गईं और जबलपुर के विकास के लिए भी नए आयाम लिखती रहीं. हालांकि सिवनी में एक एक्सीडेंट में अपने जिगर के टुकड़े को आई गंभीर चोट देखकर उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया था, लेकिन उनकी जगाई अलख आज भी लोगों का मार्गदर्शन कर रही है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details