देहरादून: वैश्विक महामारी कोरोना वायरस की वजह से न सिर्फ देश की आर्थिकी पर गहरा असर पड़ा है बल्कि इसका हमारी शिक्षा व्यवस्था पर भी प्रभाव दिख रहा है. कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते अभी तक नए शैक्षिक सत्र की शुरुआत नहीं हो पाई है और प्रदेश के सभी स्कूल पूर्ण रूप से बंद हैं. हालांकि, छात्रों की शिक्षा बाधित न हो इसके लिए राज्य सरकार ने लॉकडाउन के दौरान वर्चुअल क्लास की शुरुआत की है, जो अभी भी जारी है. इन वर्चुअल क्लास से जहां एक ओर कुछ छात्रों को राहत मिली है तो वहीं, बड़ी संख्या में कुछ ऐसे भी छात्र है जिनके लिये ये वर्चुअल क्लास जी का जंजाल बना हुई है. आखिर प्रदेश में क्या है वर्चुअल क्लास की स्थिति और क्यों छात्र इन वर्चुअल क्लास का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं? देखिए ETV BHARAT की खास रिपोर्ट...
बिना नेटवर्क कैसे होगी ऑनलाइन पढ़ाई? लॉकडाउन के बाद से ही राज्य सरकार ने प्रदेश के छात्रों के बारे में सोचते हुए वर्चुअल क्लास की शुरूआत की थी. जिससे छात्र घर बैठकर ही अपनी पढ़ाई को पूरा कर रहे हैं. अनलॉक 2.0 की गाइडलाइन में अभी फिलहाल 31 जुलाई तक स्कूल न खोलने का निर्णय लिया गया है. ऐसे में वर्चुअल क्लास के माध्यम से ही पढ़ाई जारी है.
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पहाड़ी क्षेत्रों में नेटवर्किंग की समस्या
उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में सबसे बड़ी नेटवर्क की समस्या है. अभी भी उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्रों में सही ढंग से नेटवर्क की व्यवस्था उपलब्ध नहीं हो पाई है. जिसके चलते यहां रहने वाले छात्रों को वर्चुअल क्लास अटेंड करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि, नेटवर्किंग समस्या को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने दूरदर्शन के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने की व्यवस्था की थी, मगर वह भी सफल नहीं हो पाई.
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मनरेगा, खेतों में काम करने वाले कहा से खरीदेंगे स्मार्टफोन
यही नहीं प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में आर्थिकी के सीमित संसाधन हैं. ऐसे में यहां रहने वाले लोग मनरेगा, खेती आदि से जुड़े हुए हैं. जिससे उनकी रोजी-रोटी चलती है. ऐसे में इन परिवारों के सामने एक बड़ी समस्या बच्चों को स्मार्टफोन उपलब्ध करवाने में आ रही है. रोजी-रोटी चलाने के लिए मनरेगा में काम करने वाले लोग, आर्थिक रूप से इतने मजबूत नहीं है कि वह स्मार्टफोन खरीद सकें. ऐसे में वर्चुअल क्लास के माध्यम से पहाड़ों में पढ़ाई करवाने का सपना अधूरा ही है.
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अभिभावकों को सता रही है स्मार्टफोन और स्कूल फीस की चिंता
वहीं, इस मामले में जब ईटीवी भारत ने अभिभानकों से बात की तो उन्होंने बताया कि कोरोना काल में उनके सामने आर्थिकी का संकट खड़ा हो गया है. जिसके कारण वे बच्चों की स्कूल फीस और स्मार्टफोन खरीदने में असमर्थ हैं. अभिभावकों ने कहा भले ही सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को बनाये रखने के लिए वर्चुअल क्लास की शुरुआत की हो मगर बच्चे स्मार्टफोन के कारण वर्चुअल क्लास अटेंड नहीं कर पा रहे हैं. अभिभावकों ने बताया उनके घर में पढ़ने वाले दो बच्चे हैं और एक स्मार्टफोन है. ऐसे में दिक्कत सबसे अधिक आ रही हैं कि किस बच्चे को पढ़ाया जाये. इसके अलावा स्कूल भी लगातार फीस के लिए दबाव बना रहे हैं.
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राजनीतिक नेतृत्व और प्रदेश की सरकारी मशीनरी को उत्तराखंड का इतिहास पढ़ने की जरूरत
उत्तराखंड भौगोलिक परिस्थितियों के जानकार जय सिंह रावत ने बताया कि सबसे पहले प्रदेश के राजनीतिक नेतृत्व और प्रदेश की मशीनरी को उत्तराखंड का इतिहास पढ़ना पड़ेगा, क्योंकि इन्हें उत्तराखंड के भौगोलिक परिस्थितियों की जानकारी तक नहीं है. साथ ही उन्होंने बताया राजधानी देहरदून में जो स्थिति है वह प्रदेश के अन्य जिलों में नहीं है. प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में अधिकतर लोगों की कमाई मनरेगा से ही होती है. इसके अलावा उनके पास आय को कोई साधन नहीं है. ऐसे में उनसे वर्चुअल क्लास, स्मार्टफोन की उम्मीद करना बेइमानी है. इसके अलावा उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में नेटवर्किंग की एक बड़ी समस्या है. जिसके कारण ऑनलाइन क्लासेस बाधित होती है.
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सरकार ने ऑनलाइन शिक्षा की दिक्कतों को स्वीकारा
इस मामले में शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक ने भी ऑनलाइन क्लास में आ रही समस्याओं का स्वीकार किया है. उन्होंने कहा धीरे-धीरे सभी समस्याओं का समाधान किया जा रहा है. मदन कौशिक ने कहा कोरोना ने भविष्य में नई शिक्षा व्वस्था की जरुरत की ओर लोगों का ध्यान खींचा है. जिससे आॉनलाइन क्लासेस के साथ ही वर्चुअल क्लासेस को विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. उन्होंने कहा प्रदेश मैं नेटवर्किंग व्यवस्था ठीक है, लेकिन जहां दिक्कतें हैं उन्हें ठीक करने का काम किया जा रहा है.
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ऑनलाइन शिक्षा को साकार करने के लिए राज्य सरकार को उठाने होंगे सार्थक कदम
वहीं, इस मामले में विपक्षी दलों का मानना है कि अगर राज्य सरकार चाहती है कि ऑनलाइन शिक्षा साकार हो तो इसके लिए उन्हें सार्थक कदम उठाने की जरूरत है. अन्य राज्य भी इस सकंट के समय छात्रों को प्रोत्साहित और उन्हें अपडेट करने को लेकर मोबाइल, टैबलेट वितरित कर रहे हैं. ऐसे में उसी तरह उत्तराखंड सरकार को भी कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए.