देहरादून:कोरोनाकाल में बच्चों के हाथों में किताबें भी हैं और क्लास रूम में शिक्षक भी. लेकिन फिर भी बहुत कुछ है जिससे बच्चे महरूम हैं. जानिए ऑनलाइन क्लास के बीच कैसे कुछ शिक्षकों की उपयोगिता खत्म सी हो गयी है और केवल किताबी ज्ञान तक सिमट कर रह गई है छात्रों की जिंदगी. देखिए ये खास रिपोर्ट...
तमाम सेक्टर्स आज कोविड-19 के असर को झेल रहे हैं. शिक्षा विभाग ऐसे सेक्टर्स में पहले पायदान पर खड़ा दिखाई देता है. ये बात अलग है कि तकनीक ने कुछ हद तक शिक्षा व्यवस्था को कोरोना काल में पटरी से उतरने से बचा लिया है. बावजूद इसके स्थितियां अनुकूल नहीं दिखाई देती हैं. कोरोनाकाल में भी छात्र किताबें पढ़ रहे हैं और ऑनलाइन रहकर शिक्षकों से क्लास भी ले रहे हैं. लेकिन स्कूल में दाखिल होने से लेकर छुट्टी की आखिरी घंटी बजने तक बच्चे स्कूल में जो कुछ सीख पाते हैं उससे वो महरूम ही हैं.
हुनर को नहीं तराश पा रहे बच्चे
आज छात्र असेंबली में न तो किसी प्रार्थना का हिस्सा बन पाते हैं और न ही संगीत क्लास में अपने हुनर को तराश रहे हैं. शारीरिक गतिविधियां तो मानो बीते समय की बात हो गयी हैं. पीटी से लेकर बच्चों की खेल एक्टिविटी सब थम सी गयी है. तकनीक से शिक्षा पाने वाले बच्चे कम्प्यूटर की क्लास मिस कर रहे हैं. आर्ट एंड क्राफ्ट की बारीकियां सीखने को बच्चों के पास समय नहीं है. खास बात यह है कि प्रैक्टिकल सब्जेक्ट से तो छात्र पूरी तरह से ही महरूम हो गए हैं. जबकि संगीत, स्पोर्ट्स, योग, आर्ट एंड क्राफ्ट और अनुशासन बनाने वाले शिक्षकों समेत प्रबंधन से जुड़ी स्कूलों में दूरी गतिविधियों का हिस्सा बनने वाले स्टाफ को अब छंटनी का शिकार होने की नौबत आ गयी है.
अभिभावक भी खासे चिंतित हैं
मुख्य विषयों को छोड़कर दूसरी एक्टिविटीज में बच्चों की मानसिक और शारारिक क्षमता बढ़ाने वाले शिक्षकों के रोजगार पर संकट मंडरा रहा है तो अभिभावक भी चिंतित हैं कि उनके बच्चे खेलकूद आदि चीजों से दूर हो रहे हैं जो कि उनके शारीरिक विकास में बाधा बन सकता है. इसके अलावा सामाजिक ज्ञान, शिष्टाचार और अनुशासन भी इन हालातों में बच्चों की समझ से दूर हो रहा है.