देहरादून/ऋषिकेश:उत्तराखंडराज्य केटिहरी जिले में पड़ने वाले सेमवाल गांव के एक बेहद गरीब परिवार का एक बेटा अच्छी जिंदगी और रोजगार की तलाश में इतना दूर निकल गया कि उसके अंतिम दर्शन तक के लिए भी उसके परिजनों को लंबा इंतजार करना पड़ा. ये कहानी है कमलेश भट्ट की. उम्र मात्र 23 साल. परिवार के आर्थिक हालात को ठीक करने और कुछ बड़े सपनों को पूरा करने के मकसद के साथ कमलेश दूर देश संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी नौकरी करने गया था. लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
बीती 16 अप्रैल की शाम कमलेश ने अपने परिवार से बात की और सुबह होते-होते (17 अप्रैल) उसके घर उसकी मौत का समाचार पहुंच गया. बताया गया कि हार्ट अटैक से कमलेश की मौत हुई है. ये खबर सुनते ही उसके परिवार के सपनों और उम्मीदों ने भी दम तोड़ दिया.
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कमलेश के साथ ही काम करने वाले उसके बचपन के दोस्त विजय सिंह रुंधे गले से याद करते हुए बताते हैं कि उसने ही कमलेश को काम करने के लिए अबू धाबी बुलाया था. तब से वे दोनों एक ही कंपनी में नौकरी करते थे. विजय सिंह का कहना है कि वो बीच में घर आ गए लेकिन फिर कोरोना के कारण से कमलेश घर नहीं आ सका. किस्मत तो देखिए कोरोना के ही कारण कमलेश के परिजनों को उसके अंतिम दर्शनों से लिए तरसना पड़ा.
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हुआ यूं कि कमलेश की मौत की खबर के बाद उसके परिवारवालों ने दुबई में भारतीयों की मदद करने वाले समाजसेवी रोशन रतूड़ी से संपर्क किया. रोशन रतूड़ी ने लॉकडाउन के बीच तमाम औपचारिकताएं पूरी करते हुये कमलेश के शव को किसी तरह 23 अप्रैल की रात अबू धाबी से दिल्ली पहुंचाया. लेकिन किस्मत देखिये कोरोना महामारी के कारण जारी किये गये केंद्र सरकार के एक नये सर्कुलर के बाद कमलेश के शव को 1 बजे ही दिल्ली से वापस लौटा दिया गया. अपने बेटे का पार्थिव शरीर लेने पहुंचा कमलेश का परिवार हताश होकर 24 अप्रैल को वापस लौट आया.
उधर, इस घटना की सूचना मिलते ही ईटीवी भारत की टीम भी सक्रिय हो गई और कमलेश के परिवार की मदद के लिये पूरी जी-जान लगा दी गई. हमने इस घटना को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और एविएशन मिनिस्ट्री से जवाब मांगा. उधर, प्रवासी उत्तराखंडियों रोशन रतूड़ी और गिरीश पंत और राज्य सरकार के सहयोग से कमलेश के शव को वापस लाने के प्रयास भी तेज हुए. असर ये हुआ कि सरकार को गलती का पता चला और केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से एक नोटिफिकेशन जारी कर विदेश से आने वाले शवों को लाने का रास्ता साफ किया गया.
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काफी जद्दोजहद के बाद कमलेश के शव को लाने के लिए की गई ईटीवी भारत की पहल के बाद कमलेश के परिजनों जैसे ही न जाने कितने परिवारों को राहत मिली. उधर, उत्तराखंड सरकार की ओर से भी कमलेश की परिवार की मदद के लिये दिल्ली से शव लाए जाने के लिये एंबुलेंस का बंदोबस्त करवाया गया. सारी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद 26 अप्रैल देर रात 1 बजे कमलेश का शव अबू धाबी से दिल्ली लाया गया. एंबुलेंस के जरिये कमलेश के शव को ऋषिकेश के पूर्णानंद घाट लाया गया. यहां आखिरकार कमलेश भट्ट को अपने देश की मिट्टी नसीब हो सकी और परिवार को उनके बेटे के अंतिम दर्शन.