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भू-कानून को एजेंडा बनाएगी AAP, जनहित में लाएंगे सशक्त कानून: अजय कोठियाल

ETV BHARAT से एक्सक्लूसिव बातचीत में अजय कोठियाल ने कहा कि बीजेपी और कांग्रेस की कमजोर इच्छाशक्ति का खामियाजा प्रदेश की जनता भुगत रही है. AAP की सरकार बनते ही हम प्रदेश में सशक्त भू-कानून लेकर आएंगे.

Colonel Ajay Kothiyal
कर्नल अजय कोठियाल

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Published : Aug 19, 2021, 5:57 PM IST

Updated : Aug 19, 2021, 6:13 PM IST

देहरादून: अगले साल उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Election 2022) होने हैं. पहली बार आम आदमी पार्टी भी पहाड़ी राज्य देव भूमि उत्तराखंड में अपनी किस्मत आजमाने जा रही है. मुफ्त बिजली के वादे के बाद आम आदमी पार्टी ने रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल को आगामी चुनाव में मुख्ममंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया है. विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी ने जनता की नब्ज टटोलनी शुरू कर दी है. देहरादून में ईटीवी भारत से खास बातचीत में कर्नल अजय कोठियाल ने भू-कानून पर खुलकर बातचीत की.

ETV BHARAT से एक्सक्लूसिव बातचीत में अजय कोठियाल ने उत्तराखंड में मजबूत भू-कानून का समर्थन किया है. उन्होंने कहा है कि उत्तराखंड का अस्तित्व बचाने के लिए सशक्त भू-कानून की जरूरत है. उत्तराखंड में राज्य आंदोलन के समय से ही जल, जंगल और जमीन अहम मुद्दे रहे हैं. लेकिन राज्य बनने के बाद सरकारों ने इन मुद्दों को हाशिए पर डालने का काम किया. इसकी भारी कीमत देवभूमि को चुकानी पड़ी है. मजबूत भू-कानून न होने के कारण आज उत्तराखंड का अस्तित्व खतरे में आ गया है. ऐसे में आम आदमी पार्टी की सरकार बनते ही प्रदेश में सशक्त भू-कानून को लागू किया जाएगा.

जनहित में लाएंगे सशक्त कानून- अजय कोठियाल

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क्या होता है भू-कानून और उत्तराखंड में क्या है इसका इतिहास?

भू-कानून का सीधा-सीधा मतलब भूमि के अधिकार से है. यानी आपकी भूमि पर केवल आपका अधिकार है न कि किसी और का. जब उत्तराखंड बना था तो उसके बाद साल 2002 तक बाहरी राज्यों के लोग उत्तराखंड में केवल 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते थे. वर्ष 2007 में बतौर मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी ने यह सीमा 250 वर्ग मीटर कर दी. इसके बाद 6 अक्टूबर 2018 को भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत एक नया अध्यादेश लाए, जिसका नाम 'उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम,1950 में संशोधन का विधेयक' था. इसे विधानसभा में पारित किया गया.

इसमें धारा 143 (क), धारा 154(2) जोड़ी गई. यानी पहाड़ों में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया गया. अब कोई भी राज्य में कहीं भी भूमि खरीद सकता था. साथ ही इसमें उत्तराखंड के मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, यूएसनगर में भूमि की हदबंदी (सीलिंग) खत्म कर दी गई. इन जिलों में तय सीमा से अधिक भूमि खरीदी या बेची जा सकेगी.

उत्तराखंड की अगर बात करें तो एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड की कुल 8,31,227 हेक्टेयर कृषि भूमि 8,55,980 परिवारों के नाम दर्ज थी. इनमें 5 एकड़ से 10 एकड़, 10 एकड़ से 25 एकड़ और 25 एकड़ से ऊपर की तीनों श्रेणियों की जोतों की संख्या 1,08,863 थी. इन 1,08,863 परिवारों के नाम 4,02,422 हेक्टेयर कृषि भूमि दर्ज थी.

यानी राज्य की कुल कृषि भूमि का लगभग आधा भाग. बाकी 5 एकड़ से कम जोत वाले 7,47,117 परिवारों के नाम मात्र 4,28,803 हेक्टेयर भूमि दर्ज थी. ये आंकड़े दर्शाते हैं कि, किस तरह राज्य के लगभग 12 फीसदी किसान परिवारों के कब्जे में राज्य की आधी कृषि भूमि है. बची 88 फीसदी कृषि आबादी भूमिहीन की श्रेणी में पहुंच चुकी है. हिमाचल के मुकाबले उत्तराखंड का भू कानून बहुत ही लचीला है इसलिए सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय लोग, एक सशक्त, हिमाचल के जैसे भू-कानून की मांग कर रहे हैं.

Last Updated : Aug 19, 2021, 6:13 PM IST

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