देहरादूनः आज विश्व मानवाधिकार दिवस है. देश-दुनिया के हर इंसान को जिंदगी अपने अनुसार जीने, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है. इन्हीं अधिकारों को संरक्षित करने को लेकर, भारतीय संविधान में मानवाधिकारों को उच्च स्थान देते हुए उसे मौलिक अधिकारों के खंड में शामिल किया गया था. तो वहीं उत्तराखंड राज्य में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन साल 2011 में हुआ था. आखिर क्या है उत्तराखंड राज्य में मानवाधिकार का इतिहास? देखिये ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट में.
साल 2000 में उत्तर प्रदेश से पृथक होकर बना पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्तिथियां अन्य मैदानी राज्यों से भिन्न हैं, यही वजह है कि इस पर्वतीय राज्य का सही ढंग से विकास हो सके इसको लेकर एक अलग पर्वतीय राज्य का गठन हुआ था.
राज्य गठन के बाद प्रदेश में हो रहे मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलों को देखते साल 2011 में राज्य सरकार ने राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन किया. अगर उत्तराखंड राज्य में मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलों पर गौर करें तो साल 2012 से नवम्बर 2019 तक करीब 10,736 मामले सामने आये हैं.
गौर हो कि 10 दिसंबर 1948 को 'संयुक्त राष्ट्र असेंबली' ने मानवाधिकार से जुड़े प्रस्ताव को पारित कर मानव अधिकारों की विश्व घोषणा की और साल 1950 से महासभा ने सभी देशों को इसकी शुरुआत के लिए आमंत्रित किया था.
इसके बाद देश में 28 सितंबर 1993 से मानवाधिकार कानून को अमल में लाया गया. 12 अक्टूबर 1993 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन कर मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 लागू किया गया.