देहरादून: पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के खराब आर्थिक हालात किसी से छुपे नहीं हैं. राज्य में सालाना बजट का करीब 85 फीसदी हिस्सा गैर योजनागत मद यानी कर्मियों की तनख्वाह, पेंशन और ऋण देने में ही खर्च हो जाता है, ये खर्चा लगातार बढ़ भी रहा है. ताजा आंकड़े वित्तीय प्रबंधन में मौजूदा नई कर व्यवस्था पर रोक के संकेत दे चुके हैं. वहीं, त्रिवेंद्र सरकार को इस खतरे से बचने के लिए 2022 तक का समय है.
उत्तराखंड में GST के 2 साल बाद भी नहीं सुधरे हालात. सूबे के मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर पर राजस्व को लेकर बेहद ज्यादा दबाव है. खास बात ये है कि नए टैक्स जीएसटी ने अब उत्तराखंड में आर्थिक आपदा की तस्वीर दिखानी भी शुरू कर दी है. जीएसटी के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश राजस्व वसूली के ग्राफ में पिछड़ रहा है, जबकि त्रिवेंद्र सरकार फिलहाल केंद्र की क्षतिपूर्ति पर ही पूरी तरह से निर्भर दिखाई दे रही है.
मोदी सरकार ने जीएसटी पर 2022 तक राज्यों को क्षतिपूर्ति करने का वादा किया है. इसी आधार पर उत्तराखंड को भी फिलहाल नुकसान के एवज में केंद्र से बजट दिया जा रहा है, लेकिन केंद्र की क्षतिपूर्ति को हटा दिया जाए तो उत्तराखंड को अब तक राजस्व वसूली में करीब 3000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान दिखाई दे रहा है. ध्यान देने वाली बात ये है कि 2 साल बीतने के बावजूद भी अब तक जीएसटी से राजस्व वसूली में बेहतर परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं. आंकड़ों पर एक नजर...
उत्तराखंड में जीएसटी से अब तक राजस्व वसूली के आंकड़े
- उत्तराखंड में जुलाई 2017 से जीएसटी लागू हो गया. साल 2017-18 में वित्तीय वर्ष के दौरान करीब 9 महीने तक जीएसटी के तहत और 3 माह पूर्ववत व्यवस्था पर कर वसूली हुई.
- साल 2017-18 में 8225 करोड़ के लक्ष्य के सापेक्ष कुल 6354.86 करोड़ की राजस्व वसूली हुई. जोकि 20% यानी करीब 1500 करोड़ कम थी. इस साल केंद्र ने 1283 करोड़ की क्षतिपूर्ति राज्य को दी है.
- साल 2013-14 में लक्ष्य 4847 करोड़ के सापेक्ष 4903 करोड़ वसूले गए. 2014-15 में 5459 करोड़ के लक्ष्य में 5465 करोड़ रुपए की वसूली करने में कामयाबी मिली. जोकि 11.46 प्रतिशत ज्यादा वसूली थी. साल 2015-16 में लक्ष्य 6210 करोड़ था तो वसूली 11.71 प्रतिशत ज्यादा मतलब कुल 6105 करोड़ रही. टैक्स वसूली के लिए 2016-17 के दौरान लक्ष्य 7323 करोड़ था और वसूली 17.18 प्रतिशत ज्यादा लगभग 7154 करोड़ रही. आंकड़ों से साफ है कि जीएसटी आने के साथ ही राजस्व वसूली घट गई है और प्रदेश को केंद्र से क्षतिपूर्ति के लिए निर्भर होना पड़ा.
- साल 2018-19 में 9500 करोड़ के लक्ष्य में कुल 6916.48 करोड़ रुपए ही राजस्व के रूप में मिले. यहां भी वसूली का प्रतिशत 20% से भी कम रहा. करीब 1500 से लेकर 2000 करोड़ तक का नुकसान रहा. इस साल केंद्र ने 2037 करोड़ का क्षतिपूर्ति बजट राज्य को दिया.
- साल 2019-20 में नवंबर तक 11626 करोड़ के लक्ष्य के सापेक्ष कुल करीब 4828.86 करोड़ रुपए की राजस्व वसूली हुई है. अगले 4 महीने में वसूली करीब 7250 करोड़ तक होने की संभावना है. इस साल वसूली 20% से भी ज्यादा रहने का अनुमान है, जबकि राजस्व घाटा करीब 3000 करोड़ तक का होने की उम्मीद है. इस साल नवंबर तक 1426 करोड़ केंद्र की तरफ से राज्य को क्षतिपूर्ति के रूप में दिए जा चुके हैं.
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कैग की रिपोर्ट में भी जीएसटी लागू होने के बाद राजस्व वसूली का जिक्र किया गया है. जबकि आंकड़ों से साफ है कि पिछले करीब 2 सालों में राज्य को राजस्व वसूली के रूप में 3000 करोड़ से भी ज्यादा का नुकसान हुआ है. हालांकि, इसकी एवज में केंद्र की तरफ से क्षतिपूर्ति बजट दिया गया है. लेकिन, बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि केंद्र सरकार की तरफ से 2022 तक ही क्षतिपूर्ति दिए जाने की बात कही गई है. ऐसे में राजस्व वसूली में लगातार गिरावट आने वाले समय में उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को बदहाल कर सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि उत्तराखंड पहले से ही खराब स्थिति में है और अब यदि राजस्व वसूली में भी कमी आती है तो केंद्र से मदद न मिलने की हालात में राज्य को आर्थिक रूप से पूरी तरह सरेंडर करना पड़ सकता है.
चिंता की बात ये है कि केंद्र की तरफ से करीब साढ़े 5 साल का क्षतिपूर्ति के लिए वक्त दिया गया है. इसमें 2 साल से भी ज्यादा का समय बीतने के बाद भी राज्य सरकार आर्थिकी के क्षेत्र में खुद को साबित नहीं कर पा रही है.