देहरादूनःहर साल 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य नर्सों को सम्मान देना है. इस समय जब पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है. ऐसे में इस संकट की घड़ी में भी अपनी जान जोखिम में डालकर मेडिकल और नर्सिंग स्टाफ निस्वार्थ भाव से सेवाएं दे रहे हैं. आज अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के मौके पर ईटीवी भारत की टीम ने दून मेडिकल कॉलेज पहुंचकर नर्सिंग स्टाफ से खास बातचीत की. इस दौरान उनके पेशे और जोखिम को समझने का प्रयास किया.
बता दें कि पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में आज भी स्वास्थ्य सेवाएं बदहल स्थिति में हैं. वर्तमान में पूरे प्रदेश में रजिस्टर्ड नर्सिंग स्टाफ की संख्या महज 1200 के आसपास है. जबकि, पूरे प्रदेश में 6,000 से ज्यादा रजिस्टर्ड नर्सिंग स्टाफ की जरूरत है. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी है और इस कमी के बीच हमारी नर्सें किस तरह से अपनी सेवाएं दे रही हैं.
नर्सें विषम परिस्थितियों में दे रहीं सेवाएं. ये भी पढ़ेंःमरीजों को जीवन देने वाली दुनिया की नर्सों को समर्पित है आज का दिन
ईटीवी भारत की टीम ने दून मेडिकल कॉलेज की नर्सों से खास बातचीत की. इस दौरान नर्सों ने बताया कि वो अपने इस पेशे से काफी संतुष्ट हैं और गर्व महसूस करती हैं. वर्तमान में जब पूरा देश कोरोना महामारी के खिलाफ जंग लड़ रहा है. ऐसे संकट की घड़ी में भी वो भी ओवरटाइम कर अपने परिवार से दूर रहकर मरीजों की तीमारदारी में जुटी हुई हैं.
वहीं, नर्सों ने बताया कि विदेशों में नर्सिंग पेशे को आज भी एक सम्मानित पेशे के तौर पर देखा जाता है, लेकिन भारत में नर्सिंग स्टाफ को वो सम्मान नहीं मिल पाया है. जिससे कभी-कभी उन्हें काफी हताशा होती है. साथ ही कहा कि आम जनमानस और सरकार उनके पेशे को समझे और नर्सिंग स्टाफ के लिए बेहतर व्यवस्थाएं लेकर आएं.
गौर हो कि, आधुनिक नर्सिंग की जननी ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ की याद में हर साल 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day) मनाया जाता है. इन्होंने मरीजों और रोगियों की सेवा की. प्रीमिया युद्ध के दौरान लालटेन लेकर घायल सैनिकों की सेवा की थी, जिसके कारण ही उन्हें ‘लेडी बिथ द लैंप’ कहा गया. आज ही के दिन यानि 12 मई 1820 को फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म हुआ था. नर्स दिवस मनाने की घोषणा अमेरिका के राष्ट्रपति डेविट डी. आइजनहावर ने की थी.