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80 करोड़ में बने साउथ-ईस्टर्न एशिया का एकमात्र रिंक फांक रहा धूल, अब कहां करें आइस स्‍केटिंग?

उत्तराखंड में शीतकालीन खेलों की अपार संभावनाएं हैं. सरकार भी शीतकालीन खेलों को बढ़ावा देने के लिए कई दावें करती है. लेकिन सरकार के ये दावें कितने खोखले हैं, इसकी बानगी राजधानी देहरादून के महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज में बदहाल पड़े आइस स्केटिंक रिंक को देखकर लगाई जा सकती है.

Ice skating rink in Dehradun
साउथ-ईस्टर्न एशिया का एकमात्र रिंक

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Published : May 26, 2022, 8:00 PM IST

Updated : May 26, 2022, 8:24 PM IST

देहरादून: राजधानी देहरादून के महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज में साउथ-ईस्टर्न एशिया का एकमात्र आइस स्केटिंक रिंक सालों से धूल फांक रहा है. 80 करोड़ की लागत से तैयार किया गया अंतरराष्ट्रीय स्तर का आइस स्केटिंग रिंक अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है. इस आइस स्केटिंग रिंक के बाहर खड़ी बड़ी-बड़ी झाड़ियों ने इसे भूतिया बना दिया है. वहीं, इसकी बदहाली राज्य के कई खिलाड़ियों की उम्मीद को भी धूमिल कर रही है.

महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज रायपुर में बने देश के जिस एकमात्र इंडोर रिंक में इंटरनेशनल, नेशनल आयोजन होने थे, वहां पिछले 11 सालों से एक आयोजन को छोड़कर कोई बड़ा आयोजन नहीं हुआ. इन 11 सालों में बारी-बारी से कांग्रेस और बीजेपी के सरकारें आई और गईं. लेकिन आइस स्केटिंक रिंक की तस्वीर बदलने के बजाय बदहाल होती चली गईं. आइस स्केटिंग से जुड़े खिलाड़ियों और एसोसिएशन की माने तो साउथ ईस्ट एशिया में देहरादून को छोड़कर कहीं भी इतना बड़ा इंडोर आइस स्केटिंग रिंक नहीं है. हालांकि इसके मुकाबले का एक रिंक चीन में जरूर है.

साउथ-ईस्टर्न एशिया का एकमात्र रिंक फांक रहा धूल
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उत्तराखंड में शीतकालीन खेलों को बढ़ाने देने और प्रदेश के खिलाड़ियों को इंटरनेशनल फैसिलिटी देने के उद्देश्य से महाराणा स्पोर्ट्स कॉलेज के अंदर साल 2011 में करीब 80 करोड़ रुपए की लागत से आइस स्केटिंग रिंक बनाई गई थी. लेकिन रखरखाव के अभाव में समय के साथ-साथ दम तोड़ती चली गई. 80 करोड़ रुपए लगात से बनी आइस स्केटिंग रिंक आज सफेद हाथी साबित हो रही है.

2011 से लेकर अभीतक इस आइस स्केटिंग रिंक में सिर्फ दो प्रतियोगिताएं हुईं हैं. साल 2011 में पहली बार आइस स्केटिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से साउथ ईस्टर्न एशियन विंटर गेम्स का आयोजन किया गया था. इसके बाद साल 2012 में आइस हॉकी ओपन स्केटिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. तब प्रदेश में आइस स्केटिंग जैसी प्रतियोगिताओं से जुड़े खिलाड़ियों को उम्मीद जगी की अब उन्हें अपने प्रदेश में ही सभी सुविधाएं मिलेंगी. साथ ही उन्हें भी अपना प्रतिभा दिखाने को मौका मिलेगा, लेकिन उनकी ये उम्मीद धीरे-धीरे धूमिल होती चली गई.
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रिंक का इतिहास: महाराणा स्पोर्ट्स कॉलेज में साल 2011 में साउथ-ईस्टर्न एशियन विंटर गेम्स के लिए 80 करोड़ रुपये में इस आइस स्केटिंग रिंक को बनाया गया. इस प्रतियोगिता में भारत के अलावा पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, मालदीव, श्रीलंका ने हिस्सा लिया था. उसके बाद यहां पर्यटन विभाग ने स्पीड स्केटिंग कोर्स का संचालन किया जो जल्द खत्म हो गया.

वर्ष 2011-12 में आइस स्केटिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने ओपन स्केटिंग प्रतियोगिता कराई. दो-तीन वर्ष बाद रिंक को पर्यटन विभाग ने खेल विभाग को सौंप दिया. तब से यहां कोई आयोजन नहीं हुआ. करीब डेढ़ वर्ष पहले प्रदेश सरकार ने इसका जिम्मा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के संचालन के लिए स्पोर्ट्स-स्टेडियम सोसायटी को सौंपा, लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हुआ है.

आइस स्केटिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष शिव पैन्यूली का कहना है कि आज प्रदेश में आईस स्केटिंग के क्षेत्र में 45 सक्रिय खिलाड़ी और 30 राष्ट्रीय पदक विजेता. इसे अलावा पांच अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी हैं. रायपुर में आइस स्केटिंग रिंक बनने के बाद हमें उम्मीद जगी थी कि अब हमारे खिलाड़ियों को प्रशिक्षण के लिए देश के अन्य राज्यों और विदेश में नहीं जाना पड़ेगा, लेकिन किसे मालूम था कि प्रदेश सरकार की उदासीनता के चलते यह रिंक ही बंद हो जाएगी.

इस आइस स्केटिंग रिंक का संचालन पूर्व में पर्यटन विभाग करता था. बाद में इसे खेल विभाग को हैंडओवर कर दिया गया था. खेल विभाग ने इसका जिम्मा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का संचालन करने वाली कंपनी आईएलएफएस को दिया. आज स्थिति यह है कि इस रिंक के बिजली और मेंटिनेंस का खर्चा तक वहन नहीं किया जा रहा है.

स्केटिंग में अव्वल रहा भारत: बता दें कि भारत में आइस स्केटिंग की लोकप्रियता है. शिमला एवं लद्दाख में ओपन आइस स्केटिंग और गुड़गांव व मुंबई में इंडोर आइस स्केटिंग होती है. साउथ-ईस्टर्न कंट्री में भारत शीर्ष पर है. जबकि एशिया में चीन, जापान आदि देश शीर्ष पर हैं. उत्तराखंड की बात करें तो प्रदेश ने अभी तक सात इंटरनेशनल मेडल जीते हैं. देश में उत्तराखंड का तीसरे स्थान है.

आइस स्केटिंग से जुड़े खिलाड़ियों के लिए सबसे बड़ी समस्या ये है कि प्रदेश में कही पर भी आइस स्केटिंग की प्रैक्टिस के लिए कोई रिंक नहीं है. मजबूरन स्केटरों को सीमेंट के ट्रैक पर प्रैक्टिस करनी पड़ती है. शिमला में ओपन रिंक में प्रति घंटा प्रैक्टिस का 300 से 400 रुपये फीस है. इसके साथ रहने व खाने का खर्चा मिलाकर महंगा पड़ता है. इस वजह से सभी खिलाड़ी दूसरे राज्य में प्रैक्टिस करने में समर्थ नहीं रहते है.

बजट सबसे बड़ा रोड़ा:आइस स्केटिंग रिंक का प्रतिदिन मरम्मत का खर्च करीब 20 हजार रुपये और मासिक खर्च छह लाख रुपये है. मुख्य खर्चा बिजली का है. रिंक के फ्लोर के नीचे कूलिंग करने के लिए रेफ्रीजरेटर लगे हुए हैं, जिनसे सीमेंटेड फ्लोर के ऊपर बर्फ जमने लगती है. बाहर भी कूलिंग बनानी होती है. विभाग मरम्मत के खर्च को लेकर रोता रहा, लेकिन कभी समाधान खोजने के प्रयास नहीं किए.

Last Updated : May 26, 2022, 8:24 PM IST

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