उत्तराखंड में सांपों का खौफ देहरादून: ताकतवर वन्य जीव शिकारियों का इंसानी बस्ती की तरफ रुख करना आज सबसे बड़ी चिंता बन गया है. खास तौर पर पिछले कुछ समय में बाघ और गुलदारों से इंसानों का आमना सामना बढ़ा है. स्थिति यह है कि कई बार इनके कारण राज्य के कई क्षेत्रों में कर्फ्यू लगाया गया है, तो कई बार लोग सड़कों पर भी उतर आए हैं.
बाघ, गुलदार से खतरनाक सांप बाघ गुलदार से घातक साबित हो रहे सांप: वन्य जीवों से बढ़ा खतरा इतना बड़ा है कि यह मामले हाईकोर्ट तक भी पहुंचे. बाघ और गुलदार के आतंक का हल्ला प्रदेश से निकलकर देश भर में भी सुनाई दिया. आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्तराखंड में मानव वन्य जीव संघर्ष के तहत इंसानों की मौत के सबसे बड़े कारण ये दोनों ही वन्यजीव नहीं हैं. बल्कि वो जहरीला सरीसृप है जिसकी ना तो कभी चर्चा होती है और ना ही इसके लिए आम लोग जागरूक हैं. उत्तराखंड में मानव वन्य जीव संघर्ष के तहत सबसे ज्यादा मौत सांपों के काटने से होती है. उत्तराखंड वन विभाग के ताजा आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं. सबसे पहले जानिए क्या कहते हैं आंकड़े.
सांप बने जानलेवा
उत्तराखंड में पिछले तीन सालों में 85 लोगों की हुई मौत और 369 लोग हुए घायल
मानव वन्य जीव संघर्ष के रूप में यह किसी भी वन्य जीव के मुकाबले सबसे बड़ा आंकड़ा है
साल 2021 में 30 लोगों की हुई थी मौत, जबकि 119 सांप के काटने से पहुंचे अस्पताल
साल 2022 में 30 लोगों ने गंवाई जान और 113 हुए घायल
साल 2023 में 25 लोगों को इनके जहर ने मारा और 137 को पहुंचाया अस्पताल
पिथौरागढ़ जिले में सांपों के काटने के सबसे ज्यादा 90 मामले सामने आये
राज्य में तराई ईस्ट क्षेत्र में सांपों के काटने से हुई सबसे ज्यादा 24 मौतें
वन विभाग पिथौरागढ़ और तराई ईस्ट के विश्लेषण में जुटा:राज्य में जब वन विभाग ने सांपों के काटने के मामलों को जुटाना शुरू किया, तो अधिकारी भी आंकड़ों को देखकर हैरान रह गए. ऐसा इसलिए क्योंकि वन विभाग के पास सांपों के काटने के जो मामले सामने आ रहे थे, वह सबसे ज्यादा पिथौरागढ़ जिले से थे. वन विभाग भी हैरान था कि आखिरकार पिथौरागढ़ पर्वतीय जनपद सांपों के कहर से इतना ज्यादा प्रभावित कैसे हो गया. अध्ययन के बाद पता चला कि पिथौरागढ़ जिले में पिछले 3 साल के दौरान सबसे ज्यादा 90 लोगों को सांपों ने काटा है. इसमें भी सबसे ज्यादा घटनाएं पिथौरागढ़ जिले में नदी के किनारे पर हो रही हैं.
वन विभाग ने सांपों को लेकर की तैयारी उधर दूसरी तरफ इसी अध्ययन में आंकड़ों से पता चला कि सांपों के काटने से सबसे ज्यादा मौत तराई ईस्ट क्षेत्र में हो रही हैं. यहां अकेले पिछले 3 साल में 24 लोग सांप के जहर से मर चुके हैं. इन आंकड़ों के बाद वन विभाग ने भी कुछ महत्वपूर्ण प्रयास किये हैं. वन विभाग की तरफ से वह कौन से महत्वपूर्ण प्रयास किए गए बिंदुवार समझिए.
वन विभाग की तैयारी
वन विभाग ने कर्मचारियों को किया प्रशिक्षित
विभाग ने कर्मचारियों को नए उपकरण कराए उपलब्ध
प्रदेश भर में 65 क्विक रिस्पांस टीम मानव वन्य जीव संघर्ष को लेकर कर रही हैं काम
फिलहाल 32 नई QRT के गठन के लिए सरकार ने फंड रिलीज किया
सांपों से होने वाली घटनाओं को साल 2014 में पहली बार मानव वन्य जीव संघर्ष में अनुग्रह राशि के अंतर्गत जोड़ा गया
रेस्क्यू करने वाली टीम को सांपों के जहर से लेकर उन्हें पकड़ने तक के लिए दिया गया प्रशिक्षण
उत्तराखंड वन विभाग में पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ समीर सिन्हा कहते हैं कि राज्य में सबसे ज्यादा मौत वन्य जीवों के रूप में सांप के काटने से होती हैं. जिसके लिए वन विभाग ने विस्तृत विश्लेषण भी किया है. इस दौरान कुछ क्षेत्रों में सांपों के द्वारा लोगों को काटने की सबसे ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं. वन विभाग इस स्थिति से निपटने के प्रयास कर रहा है.
वन विभाग ने एंटी वेनम की उपलब्धता की सुनिश्चित:प्रदेश में वन विभाग सांपों के काटने से होने वाली घटनाओं को लेकर आंकड़े सामने आने के बाद सतर्क हो चुका है. ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहे हैं. इसके लिए सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण प्रयास वन विभाग की तरफ से विभागीय चौकिया में एंटी वेनम इंजेक्शन उपलब्ध कराना है. इसके उपलब्ध होने से न केवल इसका लाभ वन क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों को होगा, बल्कि स्थानीय लोग भी सांप के द्वारा काटे जाने पर वन विभाग की चौकियों से इसे ले सकते हैं. एंटी वेनम सांप के जहर से बचाने वाला एक ऐसा इंजेक्शन है जिसका उपयोग सांप के काटने के फौरन बाद चिकित्सकों द्वारा किया जाता है.
उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि वन विभाग की तरफ से अधिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ उन्हें उपकरण भी उपलब्ध कराए गए हैं. एंटी वेनम की उपलब्धता भी सुनिश्चित की गई है. यह सब प्रयास इसलिए हैं ताकि न केवल विभाग के कर्मचारियों बल्कि आम लोगों को भी सांपों के काटने की घटनाओं के मामले में ज्यादा से ज्यादा राहत दी जा सके.
मानव वन्य जीव संघर्ष के लिए टोल फ्री नंबर सहायक:उत्तराखंड वन विभाग की तरफ से मानव वन्य जीव संघर्ष के लिए टोल फ्री नंबर भी जारी किया गया है. यह नंबर 24 घंटे लोगों के लिए उपलब्ध रहता है. जैसे ही मानव वन्य जीव संघर्ष की घटना की कोई जानकारी या वन्य जीव के आक्रामक होने की कोई सूचना इस नंबर पर दी जाती है, फौरन संबंधित क्षेत्र तक वन विभाग इसकी जानकारी पहुंचा कर मौके पर टीम को भेजता है. वन विभाग की तरफ से जो टोल फ्री हेल्पलाइन नंबर जारी किया गया है वह 1800 8909715 है. यह नंबर उत्तराखंड में तमाम ग्रामीण क्षेत्र या उन इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए सहायक हो सकता है, जहां वन्यजीवों की मौजूदगी दिखाई देती है और मानव वन्य जीव संघर्ष की आशंका बनी रहती है.
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