देहरादून: देश में होम आइसोलेशन की व्यवस्था यूं तो मरीजों की बढ़ती संख्या के कारण की गई थी, लेकिन आम लोगों की लापरवाही और स्वास्थ्य विभाग के कमजोर मॉनिटरिंग सिस्टम के कारण यह व्यवस्था संक्रमण के प्रसार की वजह बन गई. ऐसा उन मलिन बस्तियों और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के साथ हुआ, जो कोरोना संक्रमण से न केवल बेहद ज्यादा डरे हुए थे, बल्कि इस बीमारी के कारण सामाजिक छुआछूत जैसी भावना का सामना करने से भी बचना चाहते थे. इसी का नतीजा रहा कि यहां पर रहने वाले लोगों ने कोरोना संक्रमण के लक्षणों के आने के बाद भी आरटी पीसीआर टेस्ट करवाना मुनासिब नहीं समझा.
उधर, कोविड केयर सेंटर में मरीजों को हो रही परेशानी और अव्यवस्थाओं की सोशल मीडिया पर आ रही रिपोर्ट से सभी लोग डरे हुए हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों ने घर में रहकर खुद से ही संक्रमण जैसे लक्षणों के होने के बावजूद इसका इलाज किया, जबकि अभी इन मलिन बस्तियों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो बुखार जुकाम या बदन दर्द जैसे लक्षणों से पीड़ित हैं. लेकिन वह अभी घरों में ही रह कर कुछ दवाइयों के जरिए अपना इलाज कर रहे हैं.
दूसरी, तरफ बड़ी समस्या यह भी है कि जिन लोगों में संक्रमण पाया भी गया है, वह भी कोविड केयर सेंटर में अव्यवस्थाओं और अस्पतालों में मर रहे लोगों की रिपोर्ट से डरकर घर पर ही रह रहे हैं. हालांकि, होम आइसोलेशन के लिए संक्रमित व्यक्ति को लेकर एक प्रोटोकॉल निर्धारित किया गया है. कुछ लोग उस प्रोटोकॉल को फॉलो किए बिना अपने परिवार के साथ ही कुछ एक सावधानी के साथ रहने को मजबूर हैं. बड़ी बात यह भी है कि इन बस्तियों और झुग्गी-झोपड़ियों में स्वास्थ्य विभाग की टीम जाने की जहमत ही नहीं उठा रही है. इस कारण से ऐसे लक्षणों वाले लोगों की ना तो पहचान हो पा रही है और ना ही ऐसे लोगों को जागरूक ही किया जा रहा है.
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मलिन बस्तियों में रहती है करीब ढाई लाख की आबादी
बता दें, उत्तराखंड में 582 मलिन बस्तियां हैं. इनमें से अकेले देहरादून में ही 129 ऐसी बस्तियां हैं, जहां पर करीब 40 हजार से ज्यादा परिवार रहते हैं. लोगों की संख्या के लिहाज से देखें तो इसमें करीब ढाई लाख की आबादी रहती है. इस लिहाज से समझा जा सकता है कि यहां पर संक्रमण की कितनी बड़ी संभावना है. साथ ही इतने बड़े क्षेत्र और आबादी की मॉनिटरिंग करना भी मुश्किल है.