देहरादून: विश्व विख्यात केदारनाथ धाम में साल 2013 के 16 व 17 जून को आयी विनाशकारी त्रासदी को आज 6 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन आज भी उस प्रलयंकारी प्राकृतिक आपदा के खौफनाक मंजर को कोई नहीं भूल सका है. आपदा के 6 साल बीत जाने के बाद जो स्वरूप आज केदारनाथ धाम का है उसे देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि यह वही केदारघाटी है, जिसे भीषण जल विभीषिका लील गई थी. देखिए खास रिपोर्ट...
साल 2013 के 14 और 15 जून से दिन-रात आठों पहर बादल ऐसे गरजे कि चारों ओर जलभराव अपने अधिकतम स्तर पर बढ़ता चला गया. जिसके चलते 16 जून की रात, जब हजारों की संख्या में श्रद्धालु घाटी के अंतिम पड़ाव रामबाड़ा से लेकर केदारनाथ मंदिर परिसर तक मौजूद थे तभी मंदिर के ऊपर पहाड़ी में स्थित गांधी सरोवर (चोराबाड़ी) झील का पानी खतरे के स्तर को पार कर गया और बाढ़ का रौद्र रूप लेते हुए पहाड़ियों को चीरता हुआ 18 से 20 फीट ज्वार-भाटे की अक्श में केदारनाथ मंदिर परिसर में प्रवेश कर गया. इसके बाद सोनप्रयाग, चंद्रापुरी, अगस्त्यमुनि, फाटा व श्रीनगर जैसे इलाकों में ऐसी भयावह बर्बादी करते हुए निकाला कि, सब कुछ धरती में दफन होता गया.
केदारनाथ धाम में आपदा के सूचना मिलने के बाद जो सबसे पहले मरने वालों का आंकड़ा सामने आया वह लगभग 3 से 5 हजार से ज्यादा लोगों का था. हालांकि, कुछ जानकारों का मानना है कि पांच हजार से ज्यादा लोग सिर्फ केदारनाथ परिसर में ही मौजूद थे जबकि रामबाड़ा तक 10 हजार से ज्यादा लोग शुरुआती सूचना आने पर काल की गाल में समा गए. आज तक मरने वालों का आंकड़ा पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है. आज भी प्रशासन और एसडीआरएफ को खोजबीन के दौरान कई नर कंकाल मिलते रहते हैं. ऐसे में केदारनाथ त्रासदी में कितने हजार लोग धरती की गोद में समा गए यह कहना मुश्किल है.
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उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी 2013 आपदा में मरने वालों का आंकड़ा
लापता | नर कंकाल बरामद | लापता |
3,886 | साल 2013 | 545 |
साल 2014 | 63 | |
साल 2015 | 3 | |
साल 2016 | 60 | |
साल 2017 | 7 | |
साल 2018 | 21 | |
कुल | 699 |
पुलिस ने अब तक बरामद नर कंकालों के कुल 908 सैंपल डीएनए परीक्षण के लिए भेजे गए हैं, जिसमें परिजनों के भी सैंपल शामिल हैं. अभी तक 33 डीएनए सैंपल का परिजनों के साथ मिलान हो चुका है. हालांकि, केदारनाथ त्रासदी में मरने वालों का आंकड़ा पुलिस के आंकड़े से कहीं अधिक ज्यादा है.
केदारनाथ त्रासदी में अलग अलग दर्दनाक तरीके से अनगिनत लोगों की मौत हुई
16 जून 2013 की शाम करीब 6:30 बजे केदारनाथ त्रासदी में देश-विदेश के हजारों लोग दर्दनाक तरीके से काल के गाल में समा गये, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. सबसे ज्यादा लोग घाटी के ऊपर से आये भीषण बालू-कंक्रीट वाली बाढ़ की चपेट में आकर धरती में समाते गए. कुछ लोग प्रलयंकारी आपदा से इतने हताहत हुए कि वह लोग अनजान पहाड़ियों में चले गए जहां उनको किसी भी तरह से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला. जिसके चलते वह दिन रात हाड़ कंपा देने वाली ठंड और खौफ से तड़प-तड़प कर अपनी जांन गंवाते रहे.
काल का ये तांडव एक-दो दिन नहीं बल्कि कई दिनों तक चला. केदारनाथ सहित गढ़वाल के कई इलाके पूरी तरह से मुख्यधारा से टूट गए. इस आपदा में निरंतर 3 दिनों तक आसमान से इतना पानी बरसा जो शायद ही पहले कभी नहीं देखा गया था. आसमान से आफत भरी बारिश से 16 जून की सुबह भैरवनाथ मंदिर जाने वाला पहाड़ी टूटने लगा. इसके बाद तो जगह-जगह ऐसा भूस्खलन होने लगा, जिससे बाहर निकलने के रास्ते बंद हो गया.
लगातार मूसलाधार बारिश के कारण केदारनाथ घाटी से लेकर नीचे रामबाड़ा, गौरीकुंड, सोनप्रयाग, चंद्रापुरी, अगस्त्यमुनि व श्रीनगर जैसे गेस्ट हाउस और होटलों के अंदर लोग रुके हुए थे. ऐसे में किसी का भी बाहर निकलना नामुमकिन था. केदारनाथ में पहली बार 16 जून की शाम 6:30 बजे लगभग 20 फीट की ऐसी कीचड़-बालू भरी बाढ़ आई जिसमें इंसानी जिंदगी से लेकर सब कुछ दफन हो गया. अगर कुछ बचा था वह था केदारनाथ मंदिर. बाबा केदार के मंदिर के सामने एक ऐसा विशाल पत्थर आकर रुक गया, जिसने पहाड़ से आ रहे मलबे को मंदिर के टकराने से रोक दिया.