देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड में हिमालय का नैसर्गिक सौन्दर्य, कलकल बहती नदियां, झरनों की कलकल और बुग्यालों की मखमली घास सैलानियों को अपनी ओर हमेशा ही आकर्षित करती रही है. यहां के शांत और आध्यात्मिक आभामंडल को महसूस करने के लिए देश-विदेश के पर्यटक लालायित रहते हैं. लेकिन राज्य गठन के 19 सालों बाद भी ये पर्वतीय प्रदेश पलायन का दंश झेल रहा है. खाली होते पहाड़ों के बंद चौखटों को फिर से खोलने के लिये ईटीवी भारत ने एक मुहिम चलाई है...आ अब लौटें.
ईटीवी भारत की मुहिम को मिला जुबिन नौटियाल का साथ इस मुहिम का मकसद है सूने पड़े गांवों को फिर से बसाने का. अपने खेत-खलिहान, गली-कूचे छोड़ चुके लोगों को फिर से उन्हीं रास्तों से जोड़ने का.
उत्तराखंड में पलायन से गांव के गांव खाली हो गए हैं. जहां कभी खुशहाली थी, वहां अब वीरानी के सिवाय और कुछ नहीं है. लेकिन आज इन्हीं गांवों से निकले देश और दुनिया में अपनी प्रतिभा का डंका बजा रहे युवा भी खासे चिंतित दिखाई देते हैं. उन्हीं में से बॉलीवुड सिंगर जुबिन नौटियाल एक हैं, जिन्हें उनके गांव की माटी की खुशबू वापस खींच लाई है. जुबिन नौटियाल जो आज बॉलीबुड के क्षेत्र में देश-विदेश में परचम लहरा चुके हैं, लेकिन उनके मन में आज भी उनका गांव बसता है, जिसके पलायन के दर्द ने बॉलीवुड की चकाचौंध भरी जिंदगी को छोड़कर यहां आने को विवश कर दिया.
सूने पड़े पहाड़ों को फिर से बसाने की मुहिम. पलायन मुहिम से जुड़े बॉलीवुड सिंगर जुबिन नौटियाल
बॉलीवुड सिंगर जुबिन नौटियाल ने ईटीवी भारत के साथ मिलकर ये फैसला किया कि वो किसी ऐसे गांव जाएंगे जहां लोग पलायन कर रहे हों. वहां जाकर लोगों से समझेंगे कि आखिर पलायन की वजह क्या है? तो जुबिन के साथ ईटीवी भारत की टीम ने रुख किया राजधानी देहरादून से मात्र 30 किलोमीटर दूर टिहरी जनपद के धनोल्टी विधानसभा के कोक्लियाल गांव का. ये गांव देहरादून से मालदेवता होते हुए धनोल्टी मार्ग पर तकरीबन 30 किलोमीटर दूर है. कोक्लियाल गांव मुख्य मार्ग से तकरीबन 2 किलोमीटर दूर पैदल रास्ते पर है. जुबिन जब यहां पहुंचे तो काफी धूप थी लेकिन गांव के ऊपर पहाड़ी बादलों से ढकी थी और वो दृश्य मन को तरोताजा करने वाला था. जुबिन को यहां की खूबसूरती काफी पसंद आई. उन्होंने कहा कि अकसर शहरों के लोग इस खूबसूरती के लिए पहाड़ों की ओर आते हैं, लेकिन ये खूबसूरती पहाड़ों पर बसने वाले लोगों के किसी काम नहीं आती. उन्होंने कहा कि हमे इस बारे में सोचना चाहिए कि कैसे हम इन खूबसूरती वादियों लेकिन मुश्किल हालातों में रहने वाले लोगों के लिए कुछ कर सकें.
गाना गाकर बच्चों को किया मनोरंजित गर्मी के मौसम को दरकिनार कर पैदल निकले जुबिन
आगे बढ़ते हुये टीम ने मुख्य मार्ग थोड़ा आराम किया और पास में मौजूद हैंडपंप से पानी पीना चाहा, लेकिन यहीं से गांव और पहाड़ की परेशानियों से हमारा वास्ता हो गया. हैंडपंप चलाया तो उससे निकलने वाला पानी गंदा था और उसके अलावा वहां पानी पीने का कोई विकल्प भी नहीं था. ये देख जुबिन निराश हो गये. फिर कोक्लियाल गांव के लिए जुबिन पैदल निकले. गर्मी के मौसम में पैदल चलना मुश्किल था लेकिन मन के अंदर उस गांव तक पंहुचने का जुनून था. टीम में जुबिन सबसे आगे आगे पैदल चल रहे थे और पसीने से तर हो चुके थे लेकिन उन्होंने अपने बुलंद हौसलों को नहीं रुकने दिया.
गांव तक पैदल जाने वाले रास्ते को देख जुबिन को काफी दुख हुआ क्योंकि वो कच्चा रास्ता था जिसे कई सालों पहले सड़क के रूप में काटा गया था लेकिन आज तक वो कच्चा रास्ता जस का तस था. उन्होंने कहा कि सरकार गांव तक सड़क नहीं पहुंचाएगी तो स्वाभाविक है कि गांव सड़क तक जाएगा. उन्होंने कहा कि सरकार को गांव तक सड़क पहुंचाने की दिशा में तेजी से प्रयास करना करना चाहिए, जिससे लोग गांव छोड़ने को मजबूर न हों.
बच्चों से बात कर गायक जुबिन ने जाना दर्द. उतराखंड में बसती है उत्तराखंडियत सभ्यता: जुबिन नौटियाल
थोड़ा दूर चले तो इसी कच्चे रास्ते पर एक नौजवान दोपहिया वाहन से जुबिन को लिफ्ट लेने के लिए पूछने लगा, जिस पर जुबिन ने कहा कि ये ही उत्तराखंडियत है जो हमारे अंदर बसती है और हम एक दूसरे की मदद के लिए दौड़े चले आते हैं. 2 किलोमीटर पैदल चलने के बाद जुबिन गांव पहुंचे. हालांकि, गांव में मौजूद कुछ बुजुर्ग लोगों ने जुबिन को नहीं पहचाना लेकिन गांव में मौजूद कुछ बच्चे जुबिन को पहचानते ही उनसे मिलने को दौड़ पड़े. हमारी टीम ने वहां मौजूद लोगों को जुबिन और वहां आने का मकसद बताया.
गांव की मिट्टी की भीनी-भीनी सुगंध और गांववासियों का आदर सत्कार देख जुबिन भावुक हो गये. उन्होंने कहा कि ये सच है कि पहाड़ का पानी मीठा होता है और ये भी सच है कि उत्तराखंड मेहमान नवाजी में भी सबसे आगे है. किसी भी गांव में चले जाइए आपकी आवभगत किये बिना लोग आपको नहीं जाने देंगे.
ताला बंद घर को देख जुबिन के चेहरे पर छाई निराशा. जौनसार क्षेत्र के रहने वाले हैं गायक जुबिन नौटियाल
कुछ देर बैठने के बाद जुबिन गांव के हालातों से रूबरू होने आगे चले और साथ में ईटीवी भारत की टीम भी जुबिन के साथ आगे बढ़ी. जुबिन ने अपना अनुभव ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ किरनकांत शर्मा से साझा करते हुए कहा कि वो खुद उत्तराखंड के जौनसार से आते हैं. वहां के बहुत लोग आज शहरों में बस चुके हैं. जुबिन ने बताया कि वो अपने पैतृक गांव में आज भी अपनी जड़ों को तलाशने का प्रयास करते हैं. उन्होंने कहा कि वे बहुत खुश है ईटीवी भारत की इस मुहिम में जुड़कर वो चाहते हैं कि इस विषय पर चर्चा हो और किसी समस्या पर चर्चा करना ही उसके हल की ओर हमें ले जाता है. जुबिन बताते हैं कि इसके अलावा वो अपने उत्तराखंड, पहाड़ की मिट्टी की खुशबू और गांवों की इस खुशबू के दीवाने हैं. गांव की जो मिठास है वो उनको बहुत पसंद है. गांव में जो बात है वो उनको देश से लेकर विदेश तक में नहीं मिल पाती.
गर्मी के मौसम को दरकिनार कर पैदल निकले जुबिन. ताला बंद घर को देख जुबिन के चेहरे पर छाई निराशा
इस दौरान आगे बढ़े तो एक ताला लगे बंद घर पर जुबिन की नजर गई और उनके चेहरे को एक गहरी निराशा छा गई. जुबिन को बंद पड़े ताले वाले इस घर को देखकर काफी धक्का लगा. उन्होंने कहा कि ये घर किसी ने छोड़ दिया है. उनके अन्दर से एक दर्द भरी आवाज आई कि ये बहुत दुख की बात है. जुबिन इसी घर की दहलीज पर ठिठक कर बैठ गये. कुछ देर रुकने के बाद गांव के कुछ लोग, महिलाएं जुबिन के पास आये फिर जुबिन ने उन लोगों से बातचीत की. लोगों ने जुबिन को एक के बाद एक इस गांव की तमाम समस्याओं के बारे में बताया.
गांव वालों ने बताया कि गांव में आने-जाने की कुछ व्यवस्था नहीं है. 25 सालों से सड़क कटी हुई है लेकिन पक्की सड़क आजतक गांव के लोगों को नहीं मिल पाई है. लोग अभी मजबूरी में यहां रह रहे हैं, लेकिन भविष्य में ये गांव खाली हो जाएगा. गांव में सिंचाई के लिए पानी नहीं है, खेती नहीं हो पाती है तो 99 फीसदी लोग मजदूरी करते हैं और वो मजदूरी भी कभी मिल पाती है कभी नहीं.
बच्चों से बात कर गायक जुबिन ने जाना दर्द
जुबिन ने इस पूरी बातचीत का अनुभव साझा कर कहा कि इस तरह से 1700 से ज्यादा गांव खाली हो गये हैं. उन्होंने गांव की एक बुजुर्ग महिला से बात की और उनसे पूछा कि गांव के ये हालात कब से हैं और आखिर क्यों गांव खाली हो रहा है? महिला ने बताया कि गांव में जीवन यापन की कोई सुविधा नहीं है. खेती नहीं होती है, आने जाने के लिए ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था नहीं है. सड़क के अभाव में गांव खाली हो रहा है. बुजुर्गों से बात-चीत करने के बाद जुबिन ने गांव में स्कूल जाने वाले एक छात्र आयुष्मान से बातचीत की. जुबिन ने आयुष्मान से उसके बार में पूछा और पूछा कि स्कूल कैसे आते-जाते हो? आयुष्मान ने बताया कि उसका स्कूल 14 किलोमीटर दूर है. कोई स्कूल बस या फिर सरकारी बस नहीं है. वो सुबह 5 बजे उठकर पैदल स्कूल जाता है, पूरे दिन स्कूल में पढ़ाई करता है और शाम 4 बजे स्कूल से वापस आता है. दो घण्टे बाद घर पहुंचता है और उसके बाद गांव में खेतों पर भी काम पर जाता है.
गाना गाकर बच्चों को किया मनोरंजित
आयुष्मान की इस पूरी दिनचर्या को देख जुबिन हताश हो गये और उन्होंने गांव के इन हालातों पर चिंता जाहिर की. इसके बाद जुबिन की नजर गांव में इधर-उधर दौड़ते कुछ नन्हें बच्चों पर पड़ी तो जुबिन ने थोड़ा टेंशन को कम करते हुए बच्चों के साथ मन लगाने की कोशिश की. इसी बीच जुबिन ने उन सभी लोगों के लिए अपना एक गाना गुनगुनाया जो अपने गांव से दूर है. जुबिन के बोल थे- बंदेया तू मुंह मोड़ के ना जा, बंदेया दहलीज लांघ के ना जा...नैना बेचारे रो रो के हारे...छोड़ गया तू किस के सहारे....ना जा रे....रुक जा रे...बंदेया तू मुंह मोड़ के ना जा....!!
तो इस तरह से बॉलीवुड सिंगर जुबिन नौटियाल ने टिहरी के इस गांव में कई घंटे बिताए. फिर टिहरी गांव के कोक्लियाल गांव के लोगों से विदाई ली. लेकिन विदाई के बाद से ही प्रदेश के इस युवा सिंगर के मन में गांव के विकास की चिंता कौंध रही थी. वही चिंता जो आज अपनी मिट्टी, अपने प्रदेश उत्तराखंड को प्यार करने वाले हर शख्स के मन में है. कैसे रुकेगा ये पलायन? कब खुलेंगे सालों पहले बंद हो चुके चौखटों के दरवाजे?
नोट:'आ अब लौटें'...ये मुहिम ईटीवी भारत की एक सच्ची कोशिश है. अपने प्रदेश, अपने गांव की मिट्टी को प्यार करने वाले हर शख्स से अपील है कि हमसें जुड़ें और गांवों को फिर से बसाने में हमारी मदद करें.