देहरादून:पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में दिवाली के ठीक 11 दिन बाद इगास बग्वाल मनाया जाता है. आधुनिकता के इस दौर में इस पर्व को मनाने का चलन अब प्रदेश के कुछ चुनिंदा पहाड़ी इलाकों जैसे कि जौनसार भाबर और गढ़वाल कुमाऊं के ग्रामीण अंचलों तक ही सिमट कर रह गया है, लेकिन जानकारों के मुताबिक, इगास बग्वाल का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है.
आकर्षण का केंद्र होता है भैलो
इगास बग्वाल के दिन उत्तराखंड में भैलो खेलने का भी रिवाज है. भैलो का मतलब एक रस्सी से है जो पेड़ों की छाल से तैयार की जाती है. इगास बग्वाल के दिन लोग रस्सी के दोनों कोनों में आग दी जाती है और फिर रस्सी को घुमाते हुए भैलो खेला जाता है.
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इगास की बधाई दी है. मुख्यमंत्री ने गढ़वाली में ट्वीट करते हुए लिखा है...घौर से भैर आण पर मास्क लगै कि रखण, एक दूसरा से उचित दूरी बणै की रखण और टाइम-टाइम पर हाथ धोण भौत जरूरी चा। अगर हम स्वस्थ्य रौला तबि हम अपणा परिवार तैं बचै सकदां। ये वास्ता क्वी लापरवै नी हो।
आप सब्युं कू एक बार फिर इगास की भौत भौत बधै।
जेपी नड्डा ने दी बधाई
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी प्रदेश वासियों को इगास की बधाई दी है. नड्डा ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा- देवभूमि उत्तराखंड के प्रमुख लोकपर्व इगास/बुढ़ दिवाली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.
दिवाली के 11 दिन बाद मनाया जाता है इगास बग्वाल.
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इगास बग्वाल से जुड़ी मान्यताएं
- इगास बग्वाल पर्व के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए आचार्य राकेश पुरोहित बताते हैं कि महाभारत काल में जब पांडव लाक्षागृह से बचकर एक चक्र नगरी में पहुंचे थे, तब माता कुंती ने अपने पुत्र भीम को शम्बासुर नामक दानव का वध करने को कहा था. जिसके बाद दानव शम्बासुर और भीम के बीच पूरे 9 दिनों तक युद्ध चला और इस युद्ध में भीम ने दानव शम्बासुर का वध कर दिया. इसी बीच दीपों का पर्व दीपावली गुजर गया. ऐसे में एकादशी के दिन जब भीम माता कुंती के पास पहुंचे तब माता कुंती ने उनके आगमन पर दीप जलाकर दीपावली का पर्व मनाया. तब से ही दीपावली के बाद पड़ने वाली एकादशी को प्रदेश में दीपावली का पर्व मनाया जाता है, जिसे इगास बग्वाल कहते हैं.
- मान्यता है कि दीपावली के बाद पड़ने वाली इसी एकादशी को भगवान विष्णु चातुर्मास के बाद योग निद्रा से बाहर आते हैं. इसलिए इस दिन मनाई जाने वाली दीपावली को देवउठनी दीपावली के नाम से भी देशभर में मनाया जाता है. वहीं, इसी दिन से सभी तरह के मंगल कार्य जैसे विवाह मुंडन इत्यादि भी शुरू हो जाते हैं.
- एक मान्यता ये भी है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे, तो लोगों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था. लेकिन, गढ़वाल क्षेत्र में भगवान राम के लौटने की सूचना दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली थी, इसलिए ग्रामीणों ने खुशी जाहिर करते हुए एकादशी को दीपावली का उत्सव मनाया था.
- एक अन्य मान्यता है कि दीपावली के समय गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट (तिब्बत) का युद्ध जीतकर दिवाली के ठीक ग्यारहवें दिन अपने घर लौटी थी. युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई थी. राज्यसभा सांसद
अनिल बलूनी ने धूमधाम से मनाने की अपील की थी
राज्यसभा सांसद और बीजेपी के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी ने इगास को धूमधाम से मनाने की अपील की थी. बलूनी ने कहा था कि ये पर्व हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं. इन्हें भव्य तरीके से मनाया जाना चाहिए. अनिल बलूनी पहाड़ के लोकपर्वों को लोकप्रिय बनाने की मुहिम में जुटे हुए हैं.