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उत्तराखंड में बेतरतीब शहरीकरण बना जंजाल, ग्रामीण क्षेत्रों का सिकुड़ना जारी - Migration in Uttarakhand village

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में शहरीकरण काफी तेज से बदला है. नतीजा ये है कि शहर तेजी से बढ़ता जा रहा है और गांव उसी रफ्तार से सिकुड़ते जा रहे हैं. आंकड़े कहते हैं कि 2011 जनगणना के मुताबिक, राज्य गठन के समय शहर में जो आबादी 21 प्रतिशत थी, वो अब बढ़कर 36% हो गई.

Increasing population in the cities of Uttarakhand
उत्तराखंड के शहरों में बढ़ती आबादी

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Published : Jul 5, 2022, 4:21 PM IST

Updated : Jul 9, 2022, 4:42 PM IST

देहरादूनःउत्तराखंड में समय के साथ-साथ शहरीकरण भी पांव पसार रहा है. इसे विकास के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन योजनागत विकास के रूप में नहीं. आंकड़े बताते हैं कि राज्य स्थापना के बाद राजधानी देहरादून समेत बाकी जिलों में शहरी क्षेत्र की आबादी बढ़ी है. लेकिन जाहिर तौर से ग्रामीण क्षेत्र सिकुड़ते चले गए हैं.

उत्तराखंड में भी देश के बाकी राज्यों की तरह समय के साथ यूं तो शहरी क्षेत्र का बढ़ना जारी है. लेकिन शहरीकरण के विस्तार की तेजी इस पहाड़ी राज्य में बाकी राज्यों से कुछ ज्यादा है. आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि प्रदेश में काफी तेजी से शहरी आबादी बड़ी है और ग्रामीण क्षेत्र के साथ आबादी सिमटती की चली गई है. वैसे तो यह समय की मांग और लोगों की जरूरत के लिहाज से होने वाला बदलाव है. लेकिन इसमें चिंता की बात यह है कि शहरीकरण के नाम पर विकास की जो बात कही जा रही है, वह किसी तय कार्य योजना के लिहाज से नहीं है. यानी जो विकास हो रहा है वह बेतरतीब है और सुविधाओं से बेअसर भी है.

उत्तराखंड के शहरी इलाकों में दिनों दिन आबादी बढ़ती जा रही है.

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि राज्य गठन (2000) के बाद शहरी आबादी और ग्रामीण जनसंख्या के आंकड़े काफी तेजी से बदले हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों के शहरीकरण से लेकर गांव से शहरों की तरफ पलायन का आंकड़ा चिंता पैदा कर रहा है.
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शहरीकरण को यूं तो इंसानी जरूरत के रूप में देखा जाता है. लेकिन जरूरी है कि यह शहरीकरण योजनागत रूप से हो, और जब शहरीकरण की बात हो तो इसमें सुविधाओं कि उन सब श्रेणी को शामिल किया जाए. जो शहरीकरण के लिहाज से लोगों को उचित सहूलियत भी दे. वैसे राज्य में शहरीकरण को लेकर तेजी के संकेत राज्य गठन के बाद से ही मिलने लगे थे. साल 2011 की जनगणना ने राजधानी देहरादून में आए नए आंकड़ों के जरिए इस बात को साबित भी किया.

2011 की जनगणना के मुताबिक गांव की आबादी तेजी से कम हुई है.

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राज्य में पंचायतों को निकायों में तब्दील किया गया. लेकिन इस लिहाज से मूलभूत सुविधाओं में इजाफा नहीं हो पाया. एकाएक जनसंख्या बढ़ने और शहरों की तरफ पलायन होने से शहरी क्षेत्रों में जन दबाव बढ़ा है. हालांकि, इस दौरान ट्रांसपोर्टेशन के लिहाज से सड़कों का जाल बिछाने की कोशिश की गई. लेकिन स्वास्थ्य शिक्षा रोजगार जैसे मामलों में काम नहीं हो पाया.

उधर जिन क्षेत्रों में ग्रामीण होने का ठप्पा हटाकर शहरी क्षेत्र करने का तमगा दिया गया, वहां योजनाबद्ध तरीके से लोगों को नहीं बताया गया. यही नहीं, योजनाओं के लिहाज से भी बिना अध्ययन किए व्यवस्थाओं को बदहाली की तरफ ढकेल दिया गया.

Last Updated : Jul 9, 2022, 4:42 PM IST

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